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Basudeo Agarwal

Others

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Basudeo Agarwal

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32 मात्रिक छंद "मन्दभाग"

32 मात्रिक छंद "मन्दभाग"

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(32 मात्रिक छंद / समान सवैया / सवाई छंद)

फटा हाल दिखला ये अपना, करुण कहानी किसे बताते।

टपका कर आँखों से मोती, अन्तः वाणी किसे सुनाते।

सूखे अधरों की पपड़ी से, अंतर्ज्वाला किसे दिखाते।

अपलक नेत्रों की भाषा के, मौन निमन्त्रण किसे बुलाते।।


रुक रुक कर ये प्यासी आँखें, देख रही हैं किसकी राहें।

बींधे मन के दुख से निकली, किसे सुनाते दारुण आहें।

खाली लोचन का यह प्याला, घूमा रहे क्यों सब के आगे।

माथे की टेढ़ी सल दिखला, क्यों फिरते हो भागे भागे।।


देख अस्थि पिंजर ये कलुषित, आँखें सबकी थमतीं इस पर।

पर आगे वे बढ़ जाती हैं, लख कर काया इसकी जर्जर।

करुण भाव में पूर्ण निमज्जित, एक ओर ये लोचन आतुर।

घोर उपेक्षा के भावों से, लिप्त उधर हैं जग के चातुर।।


देख रहे हैं वे इसको पर, पूछ रही हैं उनकी आँखें।

किस धरती के कीचड़ की ये, इधर खिली हैं पंकिल पाँखें।

वक्र निगाहें घूर घूर के, मन्दभाग से पूछ रही ये।

हे मलीन ! क्यों अपने जैसी, कुत्सित करते दिव्य मही ये।।


मन्दभाग! क्यों निकल पड़े हो, जग की इन कपटी राहों में।

उस को ही स्वीकार नहीं जब, डूब रहे क्यों इन आहों में।

गेह न तेरा इन राहों में, स्वार्थ भरा जिन की रग रग में।

'नमन' करो निज क्षुद्र जगत को, जाग न और स्वार्थ के जग में।।




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