बूँद
बूँद
बूँद तेरे रुप अनेक कण कण में व्याप्त
अर्न्तमन के कोने कोने प्राप्त सारे अधिकार
मन में गम्भीर मनोरोग ,हैं भयंकर विकार
तब तुम आँसू बन ढुलकती बार बार।
नन्हीं सी बूँद बन फूलों सा गुदगुदाती
चिपटी छींटों में अस्तित्व पर दाग लगाती
कभी तेज तीखी बन शूल सी चुभती
कभी थपेड़े झेल कर जीना सिखाती।
आँखों से ढरकती हृदय की भाषा बन जाती
लहरों सा थिरकना झरना बन बहना सिखाती
खुशी ,गम निराशा का पैगाम बन ज्वार उठाती
कभी भाटा बन विचारों का शमन करती।
बूँद न पड़े धरती बन जाती बंजर
चराचर सृष्टि में बन जाते कंकाल
तब आशा की बूँद ही सिखाती जीना
बद से बदतर हालात में संर्घषों से जुझना।
इसकी यही विलक्षणता एक अनेक की क्षमता जानें
सागर में तो खुद सागर,और छिटकी तो सागर इसमे
मनस्थित आसमां से बरसता बादल
हर शब्द की बूँद समन्दर है।
बूँद बूँद का संमागम ही जीवन का आगम
जो चलता रहताअविरल।