स्पंदन
स्पंदन
मेरे अल्फाज न जाने भाषा
न उदबोधन न परिभाषा
न छंद दोहों का बन्धन,
न साधना शास्त्रों का मन्थन
न कलाकृति का प्रर्दशन।
हर कल्पना से परे
घूँघट में सुहागन की छटा
मयूर नृत्य सावन की घटा,
रात की रानी कुमुदनी की छ्टा।
जब तक जीवन है "प्यार"है कविता
पावन वाणी का आर्तनाद है,
सपनों का नीड़ है
हर अक्षर अक्षर है,
हर नगमा पियूष पावन तरंग है।
जब तक प्यार है
नीर क्षीर विवेक मौन समर्पण
जीवन का स्पन्दन है।

