जीत
जीत
घर की जिम्मेदारियां अब बढ़ गयी है, अमूमन कई खर्चे भी बढ़ गए, एक एक करके ट्रेक्टर की किश्त भी चुकानी है, खेत का कार्यभार भी बढ़ गया है, लोगो की कर्जदारी भी है, कुछ साहूकारों से भी लेनदेन बचा है, अनेक कामो की लिस्ट भी बनानी है, घर मे छोटे भाई की शादी भी है, पर सबका भार अब मैं ही हूं जबतक सभी काम व्यवस्थित नही हो जाते, मैं चैन से नही बैठ सकता, अब तो भाई की शादी के बाद ही सुकून की नींद लूंगा और काफी दिन की थकावट और जिम्मेदारियों के बोझ की गठरी ने उसे इतना अधिक कमजोर बना दिया कि अगली सुबह राजेश उठा ही नही, क्या काम की थकावट से नींद लग गयी? क्या भागदौड़ से जमकर राहत ली जा रही थी? क्या राजेश सुंदर सपना देख रहा था एक हँसते खेलते परिवार का। इतने सारे????????????प्रश्नचिन्ह एक साथ
सबका प्रत्युत्तर, हाँ राजेश गहरी नींद में आराम फरमा रहा था, इतनी गहरी नींद जिससे आजतक कोई बाहर आया ही नही है। अचानक से पड़े दिल के दौरे ने राजेश को हमेशा के लिए सुला दिया अब घर का मुखिया मर चुका था। एक बार भी किसी ने राजेश के दर्द को बांटने की उत्कंठा नही जतायी और दिल के दर्द और परेशानियों से राजेश चल गया बहुत दूर अब फिर कभी नही आने वाला काश रोकर बोझ कम कर लेता राजेश?? ये छोटी सी कहानी जो एक बहुत बड़ी सीख देती है कि लड़के थोड़े कठोर जरूर होते है, पर दर्द उन्हें बहुत होता है, वो अंदर ही अंदर हताश होते रहते है, जिससे उन्हें दिल के दौरे जैसे भयंकर आकस्मिक बीमारी अपने साथ ले जाती है।
जरूरत है उनके साथ सहानुभूति से पेश आए...!!!