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Shahana Parveen

Others

4.9  

Shahana Parveen

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बसंत ने बदला जीवन

बसंत ने बदला जीवन

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सोहन लाल के दादा परदादा पंजाब के एक गाँवमें ं पले बड़े हुए और यहीं पूरा जीवन व्यतीत कर लिया। इसी गाँवमें ं वे सब खेती करते थे ।

आज उनके पौत्र यह सब खेत संभालते हैं। सोहन लाल जी तीन भाई हैं । सोहन लाल सबसे बड़े हैं और मोहन लाल दूसरे नंबर के बेटे हैं । एक छोटा भाई पढ़ लिखकर विवाह के बाद नौकरी करने अमेरिका चला गया। सोहन लाल और मोहन लाल यहीं पंजाबमें रहकर अपने पुरखों की विरासतमें मिली खेती बाड़ी को संभालने का काम करते हैं। दोनो के दो पुत्र व दो पुत्रियाँ हैं। बेटियों की शादी कर दी गई है ।अब खुद सोहन लाल जी व उनके पुत्र तथा मोहन लाल जी अपने बेटों के साथ बड़े प्रेम भाव से संयुक्त परिवारमें रहते हैं। पिताजी ने तीनों भाईयो के हिस्से की ज़मीन बराबर बराबर बांट दी थी। ना कोई लड़ाई , ना झगड़ा सब कुछ ठीक है। जो भाई बाहर अमेरिकामें हैं उसकी ज़मीन भी सोहन लाल , मोहन लाल और इनके पुत्र संभालते हैं। कहने को तो इन्होने खेतोंमें काम करने हेतु नौकर रखे हुए हैं परन्तु फिर भी खुद साथ मिलकर काम करवाना इन्हें अच्छा लगता है।


सब कुछ ठीक चल रहा था एक दिन अचानक अमेरिका से छोटा भाई आ गया। सब परिवार वाले उसे देखकर प्रसन्न हुए और आदर सत्कारमें लग गए। पर ये क्या उसका तो मूड खराब था। उसने किसी से ढंग से बात भी नहीं की। सोहन लाल और मोहन लाल के बहुत आग्रह करने पर बताया कि वह यहाँ से सदा के लिए छोड़कर अमेरिका में ही बसने की सोच रहा है और सबको वहीं ले जाने आया है। वह बोला-"जल्दी से ये खेत बेचो और हमारे साथ चलकर वहीं रहो।" सुनकर सोहन लाल और मोहन लाल को बहुत बुरा लगा। वे बोले, " हमारे दादा परदादा ने बड़ी मेहनत से यह खेत खलिहान बनाए हैं। उनका बचपन, जवानी, बुढ़ापा सब यहीं व्यतीत हुआ । अब हम इस विरासत कोे छोड़कर कैसे कहीं जा सकते हैं?"


 सोहन लाल ने समझाया कि वे भी यही आकर रहे सबके साथ , बहुत अच्छा लगेगा। अमेरिका वाला भाई तो ज़िद पर अड़ा था। बहुत समझाया पर वह भाई तो जैसे अमेरिका से प्रतिज्ञा करकेे चला था कि अब भारत में रहना ही नहीं है। वह अपनी ज़मीन बेचने की बात करता है । सोहन लाल को बहुत बुरा लगा दुख भी हुआ पर वह क्या कर सकते थे। मजबूर थे। जब वह बहुत समझाने पर भी नहीं माना तो सोहन लाल ने कहा :-" ठीक है ,तुम्हारी जैसी इच्छा।"...." पर हम नहीं जायेगें।" खामोशी छा गई कमरे में । मोहन लाल बोले:-" ऐसा करो अगर तुम अपना मन बना चुके हो अपने खेत बेचने का , तो कल तड़के जल्दी उठना और अपने खेतो पर जाकर एक दृष्टि डालकर देख लेना कि कितने खेत हैं और कब बेचना है?" कहकर वह उठे और अपने कमरे में चले गए।

परिवारमें जैसे काला अंधकार सा छा गया हो।सब उदास थे सिवाय अमेरिका वाले भाई के। छोटे भाई का कमरा ऊपर था। छोटा भाई अपने कमरेमें सोने चला गया।

सुबह सूर्य की पहली किरणों के आँखो पर पड़ने से उसकी आँख खुल गई। छोटे भाई ने उठकर खिड़की से बाहर झांककर देखा। बाहर का दृश्य बेहद सुंदर था। सूर्योदय होने पर ऐसा लग रहा था मानो चारों ओर किसी ने सुनहरी आभा फैला दी हो। खेत भी अधिक दूरी पर नहीं थे। वहाँ खिड़की से दिखाई दे रहे थे। बसंत का महीना आरंभ हो चुका था। खेतों में पीले पीले फूल मन को मदहोश कर देने लाले थे। वहीं वृक्षों पर बैठे पक्षी चहचहा रहे थे। चारों ओर लग रहा था कि सवेरा हो चुका है। किसान खेतों में हल चला रहे थे। छोटे भाई को सबमें बहुत अपनापन महसूस हुआ। उसने सोचा अमेरिका में कभी इतना सुकून, अपनापन नहीं लगा जितना आज महसूस हो रहा है। एकदम शुद्ध हवा सासों को चीरती हुई जा रही थी। चिड़ियों का चहचहाना लग रहा था मानो कोई संगीत बज रहा हो। छोटे भाई ने कभी सोचा भी नहीं था कि यहाँ का बसंत कितना मनमोहक होगा। वह जल्दी से तैयार होकर नीचे गया। भाई साहब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। सोहन लाल बोले-" छोटे खाना खालो, इसके बाद खेत चलेगें।" छोटे भाई ने जल्दी से खाना खाया और दोनों भाईयों के साथ खेत की तरफ चल दिया।

थोड़ी दूरी पर ही खेत थे। जैसे ही उसने खेत की मुंडेर पर पैर रखा उसका ध्यान वहाँ लगे छोटे छोटे पौधों पर गया जो देखने में बेहद सुंदर लग रहे थे। कोयल की कू कू से सारा वातावरण गूंज रहा था। पीले पीले फूल ऐसे लग रहे थे मानो किसी ने स्वर्ण के दीपक खेतों में जला दिए हों। एक मिनट के लिए छोटा भाई भूल ही गया कि वह वहाँ किस काम के लिए आया है। सोहन लाल अपने छोटे भाई से खेत से सम्बंधित बातें करते हैं पर वह तो खोया हुआ है वहाँ की वादियों में। वहाँ के सभी लोगों ने छोटे भाई का बहुत सम्मान किया। वहाँ पास ही में चारपाई , बैंत की कुर्सियां रखी थी , वहाँ बैठाया। इतना प्यार, दुलार वो भी अजनबियों से पाकर छोटा बदल सा गया। उसे वहाँ नन्हीं नन्हीं कलियाँ ऐसी प्रतीत हो रही थीं कि कह रही हो.. जीवन में आगे बढ़कर सबके साथ चलो। सबको प्रेम दो और बदले में प्रेम लो। दोपहर का खाना भी वहीं सबके साथ छोटे भाई ने खाया । एकदम नया स्वाद, नया आनंद उसमे भर गया। शाम तक वह वहीं रहा। घर वापिस आकर उसने रात का खाना खाया और सोहन लाल ,मोहन लाल से बोला-" भाई साहब मुझे क्षमा कर दीजिए मैं अपने घमंड में भूल गया था कि मेरा वतन बहुत सुंदर है। मैं बहुत बड़ी गलती करने जा रहा था पर प्रकृति ने मुझे पाप करने से बचा लिया।" उसकी आँखो से झरझर आसूँ बहने लगे। बड़े भाई और परिवार के सभी सदस्यो ने उसे गले लगाया। फिर वह बोला-" मैं अपना समय पूरा करके अपने देश वापिस आऊगाँ।मेरे खेत मुझे बुला रहे हैं।" कहकर वह बहुत भाव विभोर हो गया।

अगले दिन वह बहुत बदला हुआ था उसने बसंत ऋतु को धन्यवाद दिया जिसके कारण उसको असीम सुख की प्राप्ति हुई। इस बार घरमें बसंत ऋतु कभी न समाप्त होने वाली खुशियाँ लाई थी।।




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