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Sushma Tiwari

Others

3.9  

Sushma Tiwari

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हाँ तुम ही थे

हाँ तुम ही थे

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तेज हवाओं ने खिड़की के पल्ले को आपस में टकराने पर मजबूर किया हुआ है। मैंने भी बिस्तर से उठ कर अलसाई आँखों को खोल कर खिड़की को बंद किया। मौसम विभाग ने तूफान की चेतावनी दी है तो बिजली विभाग पहले ही तैयारी कर लाइट काट ली है। चेतावनी है तो मोबाइल की बैट्री और ईंवर्टर की बैट्री भी बचा कर रखनी है। खिड़की से बाहर देखा तो रूमानी मौसम देख आज फिर उसकी याद आ गई। पहला प्यार पहला साथी ऐसे मौसम में आना लाज़मी है। काश! तुम आज पास होते। तुम संग बिताए हर एक पल याद आ रहे हैं।

पेपर पैड और पेन निकाल कर सोचा क्यों ना तुम्हें ख़त लिख कर ही यादें ताजा कर लूं।


मेरे प्रिय रेडियो, 


सच! बहुत याद आती है तुम्हारी। आज भी जब ये ख़त लिख रही हूँ तो तुम से लिपटे हुए भूरे चमड़े के कवर की खुशबु मेरे नथुनों तक ना जाने कैसे पहुंच रही है। अजीब सा स्पन्दन हृदय को महसूस हो रहा है, जैसे किसी पुराने प्रेम को अपनी अनकही बाते बता रहे हो। तुमसे बिछड़े पंद्रह साल हो चुके हैं। हमारा तुम्हारा साथ कितने दिनों का था ये पूरी तरह से तो याद नहीं पर इतना याद है कि किशोरावस्था का के प्रिय पलों के एकमात्र साथी तुम्हीं रहे हो।

जब तुम पहली बार घर आए थे मैं बहुत छोटी थी। उत्सुकता से तुम्हें छूने और तुम से निकलती देश दुनिया की सारी आवाजें मुझे अपनी ओर खिंच रही थी। माँ ने झिड़क दिया था, तुम नानाजी के लिए लाए गए उपहार थे। हम मिलते ही जुदा हो गए थे, पर कभी कभार छुट्टियों में तुम्हें नानाजी के पास देखते ही आँखों में चमक आ जाती थी। नानाजी जानते थे मेरा तुमसे लगाव, और तुम्हारी खुराक बस नानाजी की टॉर्च से निकली पुरानी बैट्रीयां!

फ़िर दिन गुजरते गए और एक दिन नानाजी हमें छोड़ गए। जाते जाते तुम्हें हमारे घर भेजने का संदेश दिया था, मेरे लिए उनकी निशानी। तुम्हें हाथ में लेते ही मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई जैसे बच्चे को उसका प्रिय खिलौना मिल जाए। तुम संग मैंने देर रात तक गाने सुने.. धीमी आवाज में जाने कब तक। तुम संग मैंने फ़िल्में सुनी है..आज सोच कर अजीब लगता है पर वो अनुभव अलग होता जब किरदारों को चेहरा मेरी कल्पनायें देती थी। धीरे धीरे तुम्हारा मेरा साथ गहरा होता गया, जाने कितनी बार लगा जैसे अब तुम शायद साथ ना दो पर मैंने तुम्हारा ऑपरेशन तक कर डाला था। सब हँसते थे.. वॉकमैन और फिर सीडी प्लेयर छोड़ मैं तुम्हारी दीवानी थी, सब कहते तुम रेडियो की डॉक्टर हो, इस को बजा सकती हो तो कुछ भी कर सकती हो।

माँ का घर छुटा तो घरवालों ने नया रेडियो लाया, लेटेस्ट.. नए गुणों के साथ, बिजली से चलने वाला, टू ईन वन.. पर जो भी हो सच कहूँ.. वो कभी नहीं बजा मुझसे। महानगर के सुविधाओं से लैस घर में उसे भी एक कोना मिला। सुनो तुम बिन फिर मैंने कभी रात को संगीत नहीं सुना सच! तुमसे मेरा प्रेम सच्चा था और तुम्हारा मुझसे.. माँ ने बताया तुम से कोई संगीत ना निकला मेरे बाद। हाँ मेरे कहने पर तुम कबाड़ में नहीं गए और नानाजी की याद के तौर पर बक्से में बंद हो.. पर तुमसे जुड़ी मेरे एहसास बस मैं और तुम ही समझ पाएंगे।


तुम्हारी प्रिय।


ये ख़त तो डायरी में यूँ ही रह जाएगा पर तुम्हारी यादें तो दिल में हमेशा यूँ ही ताजा रहेगी। और तुम्हारी जगह अभी तक कोई नहीं ले पाया है।


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