श्री मुरारी लाल जी–कैड़ी वाले
श्री मुरारी लाल जी–कैड़ी वाले
श्री मुरारी लाल जी इस संक्षिप्त कहानी के लेखक बिल्लू (अतुल) के बाबा हैं.
श्री मुरारी लाल जी का जन्म अब से (सन २०१९ से) १०८ वर्ष पूर्व सन १९११ में होली की पड़ेवा, होली के रंग या फाग या दुल्हैनडी के दिन कैड़ी में हुआ.
कैड़ी गाँव का नाम है, जनपद व् तहसील शामली, ज़िला मुज़फ्फरनगर (ऊ.प्र.). निकट गाँव बाबरी है.
श्री मुरारी लाल जी ने सन १९३१ में रूड़की इन्जीनीरिंग कालेज, रूड़की से सिविल इन्जीनीरिंग में इन्जीनीरिंग पास की.
फिर सरकार के कामों के ठेकेदार के तौर पर ठेके लेने लगे, सरकारी ठेकेदार.
मुज़फ्फरनगर में बस गए. ९ – डी, नई मंडी में अपने बाबा जी के नाम श्री बलदेव सहाय जी नाम से बलदेव सदन बनवाया.
ऊत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में बहुत सारे बड़े बड़े काम किये, जैसे कि लोहिया हैड पॉवर हाउस (निकट पीलीभीत), ढालीपुर पॉवर हाउस (निकट डाक पत्थर / देहरादून), साईंफन / स्पिलवे देवरिया / पडरौना (निकट गोरखपुर), कालागढ़ डैम (निकट जिम कार्बेट पार्क), हरेवली बैराज (निकट बिजनौर), चिल्ला पॉवर हाउस (निकट हरिद्वार), आदि.
धीरे धीरे अपने छोटे भाई श्री वेद प्रकाश जी (बिल्लू के छोटे बाबा जी), एक दामाद श्री राजकुमार जी (बिल्लू के बड़े फूफा जी) व् अपने ५ पुत्रों को (जिसमे बिल्लू के पापा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी भी थे) अपने साथ ही लगा लिया.
बिल्लू सन १९५९ में मुज़फ्फरनगर में पैदा हुआ.
बिल्लू के बाबा श्री मुरारी लाल जी सभी बच्चो को रोज रात को सोने से पहले कहानी या सच्चे किस्से सुनाते थे. कुछ सच्चे किस्से अपने पुरखों के होते थे. उन में से कई सच्चे किस्से कई बार सुनाये, जिससे कि कुछ अच्छी सीख मिल सके.
एक किस्सा ऐसे है कि:
"बात लगभग सन १९२५ की है. उस समय उनकी (श्री मुरारी लाल जी की) आयु १४ बरस रही होगी. उस समय श्री मुरारी लाल जी अपने बाबा श्री बलदेव सहाय जी, पिता श्री जानकी दास जी (बिल्लू के पड़बाबा जी) व् परिवार के साथ कैड़ी गाँव में ही रहते थे.
एक सह्रदय व् धार्मिक बनिया परिवार.
कैड़ी गाँव की उस समय कुल आबादी रही होगी, मुशकिल से २००० लोग. सभी जात पात के लोग, ब्राह्मण, जाट, बनिए, मुसलमान.
गाँव में अचानक कुछ आप्दायें आने लगी. श्री बलदेव सहाय जी सरपंच तो नही थे. लेकिन गाँव में उनकी इज्जत बहुत थी. पंचों व् बड़े बुजुर्गो की बैठक हुई. किसी को भी कुछ समझ नही आ रहा था.
श्री बलदेव सहाय जी ने सुझाया कि यह आप्दायें उस गाँव के बुजुर्गो के संचित पापों के कर्मफल हैं, जिसके लिए उन बुजुर्गो को पश्चाताप व् प्रायश्चित करना चाहिए और ईश्वर से क्षमा मांगनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए की उनसे कोई गलत कार्य ना हो.
उन्होंने यह भी सुझाया कि प्रेम व् सेवा से प्रभु जल्दी रीछते हैं / खुश होते हैं. उनके सुझाव पर यह तय किया गया कि गाँव के अल्प आय व्यक्तियों / परिवारों को रोज कोई ना कोई तीनों समय भोजन करायेगा, यानीकि गाँव में कोई भूखा नही रहेगा. उस व्यवस्था की जिम्मेदारी कुछ उन बुजुर्ग लोगो के परिवारों ने स्वयं लेली और कुछ और खुशहाल परिवारों को सौंप दी.
सभी ने अपने अपने इष्ट की वंदना की व् क्षमा मांगी और प्रार्थना की कि उन से कोई गलती ना हो और सभी परिवारों ने पूर्ण निष्ठा से अल्प आय व्यक्तियों / परिवारों के भोजन व्यवस्था का निर्वाह करना शुरू कर दिया.
सारा गाँव एक ही परिवार.
उसके बाद से जब तक श्री बलदेव सहाय जी जीवित रहे, गाँव में कभी कोई आपदा नही आई."
गाँव के लोग आज भी कहते हैं कि कैड़ी गाँव में कभी कोई भूखा नही सोता, जबकि आज वहां की जनसंख्या १ लाख से कम नही होगी.
श्री मुरारी लाल जी ने अपने आठ बच्चों, बड़े भाई के आठ बच्चों व् एक छोटे भाई के चार बच्चों का भी पालन पोषण किया.
और कुछ परिवार से बहारी लोग भी उनकी सह्रदयता से पढ़ लिख गए और यहाँ तक कि उनमें से एक नें इंजीनिरिंग भी पास की.
श्री मुरारी लाल जी ने सन १९७२ में ठेकेदारी कार्य से अवकाश ले लिया.
सन १९७३ से सन १९७५ के समय में मुज़फ्फरनगर से १० किलोमीटर हरिद्वार रोड पर रामपुर तिराहे पर जमीन खरीद कर रोज खुद खड़े हो कर अपने बाबा जी श्री बलदेव सहाय जी के नाम पर एक बड़ा अस्पताल बनवाया, जिसमे अपनी सारे जीवन की ज्यादातर जमा पूंजी खर्च कर दी. उससे वहां के आस पास के लगभग १० गाँव के मरीजों को तुरंत उपचार मिलने लगा.
उसी समय रूड़की इंजिनीरिंग कालेज को एक सालाना स्कालरशिप चलाने के लिए ५०,०००/- रूपये भी दिए.
इसी दौरान बिल्लू के पापा श्री राजेन्द्र कुमार अग्रवाल जी ने कैड़ी में अपने बाबा जी श्री जानकी दास जी के नाम पर एक स्कूल बनवाया. उससे पहले स्कूल में पढ़ने के लिए वहां के बच्चों को ५ किलोमीटर पैदल चल कर बाबरी गाँव जाना पड़ता था.
श्री मुरारी लाल जी सन १९७५ के बाद से रोज सुबह शाम पैदल घूमने जाते थे. उस दौरान मुज़फ्फरनगर नई मंडी व् शहर के बहुत से लोगो से मिलना हो जाता था. उनमे से कुछ हम उम्र लोगो से बात चीत होती थी. उनके दुःख दर्द सुनते थे.
सन १९७३ से १९७७ व् उसके बाद सन १९७९ से १९८० में बिल्लू महावीर चौक (मुज़फ्फरनगर में जहाँ बिल्लू के पापा ने अपना घर बनवा लिया था) से अपने बाबा जी श्री मुरारी लाल जी से रोज मिलने ९ – डी, नई मन्डी जाता था.
एक दिन बिल्लू से बोले कि उन बुजुर्गो के हालात सुन सुन कर अब उनकी एक ही इच्छा है कि मुज़फ्फरनगर में एक ओल्ड मैन्स हाउस (old age home - वृद्धााश्रम) हो.
उनके चेहरे पर उन के साथ घूमने वाले बुजुर्गो की पीड़ा साफ़ झलक रही थी. कहने लगे कि अस्पताल बनवाने में सारा पैसा ख़तम हो गया. यह आवश्यकता उन्हें १९७३ में ही महसूस हो गयी होती, तो वह एक ओल्ड मैन्स हाउस जरूर बनवाते.
श्री मुरारी लाल जी ने ८५ वर्ष की आयु में सन १९९१ में शरीर छोड़ दिया.
१९८० से १९९१ के बीच भगवान् की याद में ही मग्न रहते. बिलकुल निर्विकार, कोई ख्वाइश नही, न कोई गिला, विरक्त.
हां, उनकी मुज़फ्फरनगर में ओल्ड मैन्स हाउस की हसरत बिल्लू के दिलों दिमाग में बाकी है.