बेबसी
बेबसी
इतने दिनों से कहाँ थे? मैंने थोड़ा सख़्त लहजे में डाँटते हुए पूछा... वह चुप-चाप नज़रें झुकाए मौन खड़ा था।
आर्यन, कुछ पूछ रही हूँ तुमसे? तुम्हें पता भी है, जबसे स्कूल खुले हैं, तबसे कुल 12 हाजिरी हैं तुम्हारी ! (मेरा लहजा कुछ और सख़्त हो चला था) महज 11-12 साल का आर्यन एकदम मौन साधे खड़ा था।
अच्छा एक बात बताओ, क्या तुम्हारा पढ़ने को मन करता है? हाँ...उसने स्वीकृति में सिर हिलाया।
तो फिर बेटा स्कूल क्यों नहीं आते ! (मैंने थोड़ा -सा नरम पड़ते हुए कहा)।
वह अब भी चुप्पी साधे हुए था....
अच्छा बताओ,"क्या कहीं काम पर जाते हो"?
नहीं...उसने 'ना' में सिर हिलाया। तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?" पिताजी क्या करते हैं? मैंने जैसे प्रश्ननों की झड़ी सी लगा दी थी..... कुछ नहीं करते, उसका जवाब था।
तो फिर ख़र्च कैसे चलता है? माँ काम पर जाती है (उसने धीरे से कहा)। कितने बहन भाई हो? मैने पूछा...
बड़ा भाई और दो बहन (उसने ऊपर देखते हुए कहा)
बड़ा भाई कितना बड़ा है? मैंने पूछा...बड़ा है आप जितना, उसका जवाब था। क्या वो कुछ काम करता है? नहीं, उसने नज़रें नीची करते हुए कहा।
तो फिर क्या करता है घर पर ?
नशा करके सो जाता है'. ... इसका मतलब माँ ही पूरे घर का बोझ उठा रही है ! क्या कभी सोचा है तुमने कि माँ ने तुम्हें स्कूल क्यों भेजा? इसीलिए न कि तुम पढ़ -लिख कर उसका सहारा बनो, मैंने उसे समझाते हुए कहा।
अच्छा चलो, अभी तो तुम्हारी माँ कमा कर ला रही है, ख़ुदा न ख़्वास्ता कल को वो बीमार पड़ गई या फिर उसे कुछ हो गया तो ! फिर क्या करोगे? तुम भी क्या भाई की तरह बनना चाहते हो, मेरा इतना कहना था कि जो दर्द उसने अभी तक समेट रखा था, उसकी आँखों से सैलाब की तरह बह निकला। बाल मन था न ! थोड़ी सी सहानुभूति पाते ही भावुक हो उठा।
देखो बेटा, मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि अगर तुम स्कूल नहीं आए तो माँ का सहारा कैसे बनोगे?
(मैंने स्थिति सँभालते हुए कहा) मैं जाता हूँ न माँ के साथ काम पर(न चाहते हुए भी उसके मुख से ये शब्द निकल गए) तुम क्या करते हो वहाँ पर, मैंने पूछा। माँ होटल में झाडू बर्तन करती है और मैं पौछा लगाता हूँ। (उसने थोड़ा झेंपते हुए कहा)
कितनी विचित्र बात है न, आर्यन जो अब तक यही कह रहा था कि वो कहीं काम नहीं करता, माँ के ऊपर बात आने पर वह सच को छिपा न सका। सच ही तो है, एक माँ से बढ़कर त्याग कोई नहीं कर सकता। आज भी कहीं न कहीं पेट की भूख के समक्ष शिक्षा महत्वहीन सी प्रतीत हो रही थी और मैं बेबसी और शिक्षा को एक तराजू में तौल रही थी कि इस समय किसका पलड़ा भारी है ? आर्यन जैसे न जाने कितने ही बच्चे सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं के बावजूद भी शिक्षा ग्रहण करने से वंचित रह जाते हैं। पारिवारिक जिम्मेदारी के बोझ तले उनकी मासूमियत व बाल मानसिकता दब कर रह जाती है। रह जाता है तो सिर्फ --"दोषारोपण"