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हाथी - 6

हाथी - 6

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अगले दिन पौ फटते ही बच्ची जाग जाती है और सबसे पहले पूछती है:

 “हाथी कहाँ है ? क्या वो आ गया ?”

 “आ गया,” मम्मा ने जवाब दिया, “मगर बस, उसने कहा है कि पहले नाद्या हाथ-मुँह धो ले, फिर हाफ-बॉइल्ड अण्डा खा ले और गरम-गरम दूध पी ले।”

 “क्या वो बहुत भला है ?”

 “भला है। खा ले, बच्ची। हम अभी उसके पास चलेंगे।”

 “क्या वो मज़ेदार है ?”

 “थोड़ा सा। गरम स्वेटर पहन ले।”

अण्डा जल्दी से खा लिया गया, दूध पी लिया गया। नाद्या को उसी पहियों वाली गाड़ी में बैठाया गया, जिसमें वह बचपन में, तब घूमा करती थी, जब इत्ती छोटी थी कि उसे बिल्कुल भी चलना नहीं आता था। उसे डाईनिंग हॉल में लाया गया।    

जैसा नाद्या ने हाथी को तस्वीर में देखा था, उससे तो ये सचमुच का हाथी कहीं ज़्यादा बड़ा निकला। ऊँचाई में वो दरवाज़े से बस कुछ ही छोटा है, और लम्बाई में डाईनिंग हॉल का आधा। उसकी चमड़ी खुरदुरी है, उस पर मोटी-मोटी सलवटें पड़ी हुई हैं। पैर मोटे-मोटे, जैसे खम्भे हों। लम्बी पूँछ के आख़िर में झाडू जैसी कोई चीज़ थी। सिर पर बड़े-बड़े गूमड़ थे। कान बड़े-बड़े, जैसे बुर्डोक के चौड़े-चौड़े पत्ते, और वे नीचे की ओर लटक रहे थे। आँखें बिल्कुल छोटी-छोटी, मगर उनसे होशियारी और भलापन छलक रहा था। दाँत नुकीले और बाहर निकले हुए। सूण्ड, जैसे लम्बा साँप और उसके अंत में थे दो नथुने, और उनके बीच जैसे एक लचीली ऊँगली हिल रही थी। अगर हाथी अपनी पूरी सूण्ड फैला दे, तो शायद वो खिड़की तक पहुँच जाएगी।

बच्ची को ज़रा भी डर नहीं लग रहा है। वह, बस, इस जानवर की विशालता से कुछ स्तब्ध रह गई थी। मगर उसकी आया, सोलह साल की पोल्या, डर के मारे चीखने लगी।

हाथी का मालिक, जर्मन, गाड़ी के पास आता है और कहता है:

 “गुड मॉर्निंग, मैडम। प्लीज़, घबराईये नहीं। टॉमी बहुत भला है और बच्चों से बेहद प्यार करता है।

बच्ची जर्मन की ओर अपना छोटा सा दुबला-पतला, विवर्ण हाथ बढ़ाती है।

 “नमस्ते, कैसे हैं आप ?” वह जवाब देती है। “मैं इत्ता सा भी नहीं डर रही हूँ। अच्छा, तो इसका नाम क्या है ?”

 “टॉमी।”

 “नमस्ते, टॉमी।” बच्ची कहती है और सिर झुकाती है। क्योंकि हाथी इतना बड़ा है, इसलिए वह उससे ‘तू’ नहीं कहती। “आपको रात में ठीक से नींद तो आई ना ?”

वह उसकी ओर हाथ भी बढ़ाती है। हाथी अपनी हिलती हुई मज़बूत ऊँगली में सावधानी से उसकी पतली-पतली ऊँगलियाँ लेकर से हौले से दबाता है और वह डॉक्टर मिखाईल पेत्रोविच के मुकाबले में काफ़ी नज़ाकत से ऐसा करता है। ऐसा करते हुए हाथी सिर हिलाता है, और उसकी छोटी-छोटी आँखें बिल्कुल बारीक हो जाती हैं, जैसे हँस रही हों।

 “क्या ये सब समझता है ?” बच्ची ने जर्मन से पूछा।

 “ओ, बेशक, सब कुछ, मैडम !”

 “मगर, बस ये बोलता नहीं है ?”

 “हाँ, बस, बोलता ही नहीं है। मालूम है, मेरी भी एक बेटी है, इतनी ही छोटी, जितनी आप हैं। उसका नाम है लीज़ा। टॉमी उसका अच्छा, बहुत अच्छा दोस्त है।”

 “और, टॉमी, क्या आपने चाय पी ली ?” बच्ची हाथी से पूछती है।

हाथी फिर से अपनी सूण्ड खोलकर बच्ची के मुँह पर गर्म, तेज़ साँस छोड़ता है, जिससे बच्ची के सिर के हल्के बाल चारों ओर उड़ने लगते हैं।

नाद्या ठहाके लगाती है और ताली बजाती है। जर्मन प्यार से हँसता है। वह ख़ुद भी ऐसा ही बड़ा, मोटा, और भला है, जैसा हाथी है, और नाद्या को ऐसा लगता है कि वे दोनों एक दूसरे जैसे हैं। शायद, वे रिश्तेदार हों ?”

 “नहीं, उसने चाय नहीं पी, मैडम। उसे गन्ने का रस बहुत पसन्द है। उसे ‘बन्स’ भी बहुत पसंंद हैं।

बन्स से भरी ट्रे लाई गई। बच्ची हाथी को खिलाने लगी। वह आसानी से अपनी ऊँगली से बन पकड़ता है और सूण्ड को छल्ले की तरह मोड़कर, सिर के नीचे कहीं छुपाता है, जहाँ उसका मज़ेदार, तिकोनी, रोएँदार निचला होंठ चल रहा है। सुनाई दे रहा है कि कैसे ‘बन’ सूखी चमड़ी से कुरकुर करता है। ऐसा ही टॉमी दूसरे ‘बन’ के साथ भी करता है, और तीसरे के साथ भी, और चौथे के और पाँचवें के साथ भी, और धन्यवाद स्वरूप सिर हिलाता है, और उसकी छोटी-छोटी आँखें खुशी के मारे और ज़्यादा सिकुड़ जाती हैं। और बच्ची खुशी से ठहाके लगाती है।

जब हाथी ने सारे ‘बन्स’ खा लिए, तो नाद्या अपनी गुडियों से उसका परिचय करवाती है:

 “देखिए, टॉमी, ये सजी-धजी गुड़िया – ये सोन्या है। ये बहुत भली बच्ची है, मगर थोड़ी ज़िद्दी है और सूप नहीं खाना चाहती। और, ये है नताशा – सोन्या की बेटी। उसने पढ़ाई शुरू कर दी है और उसे पूरी वर्णमाला आती है। और ये – मात्र्योशा। ये मेरी सबसे पहली गुड़िया है। देख रहे हैं ना, उसकी नाक नहीं है, और सिर चिपका हुआ है, और बाल भी नहीं हैं। मगर, बुढिया को घर से तो नहीं ना निकाल सकते। सही है ना, टॉमी ? पहले वह सोन्या की मम्मी हुआ करती थी, मगर अब हमारे यहाँ रसोईन का काम करती है। तो, टॉमी, चलो, खेलते हैं: आप बनोगे पापा, और मैं – मम्मा, और ये सब बनेंगे हमारे बच्चे।”

टॉमी राज़ी हो गया। वह मुस्कुराता है, मात्र्योश्का को गर्दन से उठाता है और अपने मुँह में रख लेता है। मगर, ये सिर्फ मज़ाक है। गुड़िया को हौले से चबाकर, वह उसे वापस बच्ची के घुटनों पर रख देता है, हाँ, वह कुछ गीली थी और मुड़ भी गई थी।

फिर नाद्या उसे दिखाती है तस्वीरों वाली बड़ी वाली किताब और समझाती है:

 “ये घोड़ा है, ये गाने वाली चिड़िया, ये है बन्दूक।।।ये रहा पिंजरा, पंछी के साथ, ये बाल्टी, आईना, भट्टी, फ़ावड़ा, कौआ।।।और ये, देखिए, ये है हाथी ! वाक़ई में, बिल्कुल आप जैसा नहीं है ना ? टॉमी, क्या हाथी कहीं इतने छोटे होते हैं ? “

टॉमी को पता है कि दुनिया में इतने छोटे हाथी कहीं नहीं होते। उसे ये तस्वीर बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। उसने ऊँगली से पन्ने का किनारा पकड़ कर उसे पलट दिया।

खाना खाने का समय हो गया, मगर बच्ची को हाथी से दूर हटाना नामुमकिन था। जर्मन ने मदद की:

 “इजाज़त दीजिए, मैं सब इंतज़ाम करता हूँ। वे एक साथ खाना खाएँगे।”

उसने हाथी को बैठने का हुक्म दिया। उसकी बात मानकर हाथी बैठ जाता है, जिससे पूरे घर का फर्श चरमरा जाता है और अलमारी में रखे बर्तन खड़खड़ाने लगते हैं, और निचली मंज़िल पर रहने वालों की छत से प्लास्टर गिरने लगता है। उसके सामने बच्ची बैठती है। उनके बीच में मेज़ रखी जाती है। हाथी की गर्दन पर टेबल-क्लॉथ बांधा जाता है, और नए दोस्त खाना खाने लगते हैं। बच्ची मुर्गी का सूप और कटलेट खाती है, और हाथी – अलग अलग तरह की सब्ज़ियाँ और सलाद। बच्ची को छोटा-सा पेग ‘शेरी’ का दिया जाता है, और हाथी को – गरम पानी में एक गिलास रम डालकर देते हैं, और वो ख़ुशी-ख़ुशी अपनी सूण्ड बाऊल में डालकर उसे चूसता है। इसके बाद उन्हें दी जाती है स्वीट डिश – बच्ची को ‘कोको’ का गिलास, और हाथी को आधी केक, इस बार अख़रोट वाली। इस दौरान जर्मन पापा के साथ ड्राईंग रूम में बैठता है, वह भी उतना ही ख़ुश है, जितना हाथी, और प्रसन्नता से बियर पीता है – हाँ, इन लोगों से काफ़ी ज़्यादा।

खाने के बाद पापा के कोई दोस्त आते हैं, उन्हें प्रवेश-कक्ष में ही हाथी के बारे में आगाह कर दिया जाता है, जिससे वे डर न जाएँ। पहले तो उन्हें विश्वास नहीं होता, मगर फिर, टॉमी को देखकर, वे दरवाज़े से चिपक जाते हैं।

 “घबराईये नहीं, वह बहुत अच्छा है !” बच्ची उनको दिलासा देती है।

मगर दोस्त जल्दी से ड्राईंग-रूम में चले जाते हैं और, पाँच ही मिनट बैठकर चले जाते हैं।

शाम होने लगती है। देर हो गई है। बच्ची के सोने का समय हो गया। मगर उसे हाथी से दूर करना संभव ही नहीं था। वह, वैसे ही, उसके पास सो जाती है, और उसे नींद में अपने कमरे में ले जाते हैं। उसे पता भी नहीं चलता कि कब उसके कपड़े बदले गए।

उस रात नाद्या को सपना आय कि उसकी और टॉमी की शादी हो गई है, और उनके बहुत सारे बच्चे हैं, छोटे-छोटे, ख़ुशमिजाज़ हाथी के पिल्ले। हाथी ने भी, जिसे रात में वापस सर्कस ले गए थे, सपने में प्यारी बच्ची को देखा। इसके अलवा उसने सपने में बड़े-बड़े, गेट जितने ऊँचे, केक भी देखे, अख़रोट के और पिस्ते के।।।

सुबह बच्ची ख़ुश-ख़ुश उठी, वह एकदम तरोताज़ा थी, बिल्कुल पहले जैसी, जब वह तन्दुरुस्त थी, वह ज़ोर से और बेसब्री से चिल्लाई:

 “दू-ऊ-ऊ-ध !”

ये चीख सुनकर, मम्मा ख़ुशी से अपने बेड-रूम में सलीब का निशान बनाती है।

मगर तभी बच्ची को कल वाली बात याद आ जाती है और वह पूछती है:

 “और हाथी ?”

उसे समझाया जाता हि कि हाथी काम से अपने घर गया है, उसके घर में उसके बच्चे हैं, जिन्हें अकेला नहीं ना छोड़ा जा सकता, वह नाद्या को नमस्ते कह कर गया है और ये भी कहा है कि जब वह अच्छी हो जाए तो उसके घर ज़रूर आये, वह इंतज़ार करेगा।

बच्ची चालाकी से मुस्कुराती है और कहती है:

 “टॉमी से कह दीजिए कि मैं बिल्कुल ठीक हो गई हूँ !”


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