मां शेरावाली
मां शेरावाली
मां दुर्गा के भव्य मंदिर के शीर्ष पर लगे चार ध्वनि प्रसारक यंत्र(लाउड स्पीकर) मां का भजन गा-गाकर चारों दिशाओं को गुंजायमान कर रहे थे।भक्तों के आने जाने का तांता लगा हुआ था।जैसे तिल रखने की भी जगह ना हो मंदिर प्रांगन भक्तों की भीड़ से खचाखच भरी हुई थी। कुछ फर्श पर बिछे दरी पर बैठ कर तो कुछ खड़े-खड़े हाथ जोड़कर,बच्चे-बूढ़े,स्त्री और पुरुष सभी भक्ति-भाव में डूबे मां दुर्गा की मनोहारी प्रतिमा को निहारते जा रहे थे।सभी मां के स्नेह के याचक,सभी मां की अनुकम्पा के आकांक्षी थे।
थोड़ी ही देर में मां की संध्या आरती शुरू होने वाली थी इसलिए निरंतर दर्शनाभिलाषी भक्तों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी।जो भक्त स्त्रियां मां को संध्या धूप-दीप अर्पण करने आ रही थीं वो भी मां के गर्भगृह के दहलीज पर दीप प्रज्वलित कर कतार में खड़ी होती जा रही थीं। मां के अपनी आरती में सम्मिलित होने दिव्य आगमन की प्रतीक्षा में रत।
और यह सारा कौतुहल..... ऊंचे आसन पर विराजमान जगजननी मां दुर्गा अपनी स्नेहमयी आंखों से वात्सल्य की वर्षा कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए देखे जा रही थी।उनके मुख-मंडल पर चिरस्थाई मुस्कान इतनी जीवंत थी कि जैसे मां अब बोल पड़ेंगीं।
भक्तजन मंत्र-मुग्ध से मां को निहारते नहीं थक रहे थे कि तभी पीछे से जोर-जोर से नगाड़ों के बजने की आवाजें आने लगीं। मंदिर के कार्यकर्ता नगाड़े वालों के लिए भीड़ में रास्ता बनाते हुए मंदिर के दालान की और बढ़े चले आ रहे थे। उत्साहित श्रद्धालुओं ने तत्परता दिखाते हुए उन लोगों को अंदर जाने के लिए स्वत: रास्ता दिया और नगाड़े वाले मंदिर के अंदर मां की बेदी के करीब पहुंच गये और एक तरफ कोने में खड़े होकर नगाड़े बजाने लगे।
मंदिर के पुजारी जी आ चुके थे। उन्होंने मां का आवाहन कर आरती शुरू की। पंडित जी के आरती गायन,शंख, घंटे और नगाड़े की आवाजों से वातावरण मुखरित हो उठा था।आरती के बाद श्रद्धालुओं के भाव पूर्ण जयकारे से जैसे दसों दिशाएं मां की भक्ति में सराबोर हो उठी हों,जैसे कुछ क्षण के लिए स्वर्ग धरा पर उतर आया हो ।