देशप्रेम
देशप्रेम
दीप्ति लम्बे, घुंघराले बालों वाली ,गोरे रंग, शील स्वभाव और अपने माता-पिता का ख्याल रखने वाली बिटिया... सुहासिनी की बेटी के साथ ही पढ़ती थी।शांत स्वभाव कर्तव्यनिष्ठ,मितव्ययी ..यूँ कह सकते हैं _कि सर्वगुण सम्पन्न थी।
अपनी शादी के कपड़े भी उसने खुद डिजाइन किए और सिले। सुहासिनी जब भी उसके घर जातीं तो उसकी खूब तारीफ करतीं और कहतीं ," शादी का लहंगा खरीद लो बेटा ! शादी कोई रोज -रोज तो नहीं होती "।
"अरे आंटी! एक रात के लिए इतनी मंहगी खरीदारी... मुझे नहीं लगता कि इसमें समझदारी है।"
"बात तो सही कह रही हो दीप्ति! यही सब बातें ही तो तुम्हें औरों से अलग श्रेणी में रखती हैं।"
एक अन्तराल बाद...
"सुहासिनी! तुमने यह चित्र देखा ? पति राज ने अखबार हाथ में लेकर दिखाते हुए कहा।"
"चित्र देखा था ,पर खबर नहीं पढ़ी,पढ़कर दुख पहुंचता है।वैसे मैं अखबार नहीं पढ़ती और न टी वी ही देखती हूँ।"
"चश्मा लगाओ और ध्यान से देखो ये फोटो जो छपी है। अपनी दीप्ति ही है न ? क्या नाम था उसके हसबैंड का। याद करो! देखो इस अखबार में पढ़ो !"
"क्या मेजर शहीद हो गये ?"
"हाँ आज उनका पार्थिव शरीर गाँव लाया जा रहा है।"
"यही नाम था न ? जो पेपर में लिखा है और गाँव भी ,और फोटो में भी दीप्ति ही है। मैंने फोटो देखी तो थी पर उतने ध्यान से नहीं । ये अच्छा नहीं हुआ। बिल्कुल भी नहीं । यह शहीद होना, ये ताबूत,ये नारे, ये सम्मान .....पता नहीं क्यों ... नहीं अच्छे लगते मुझे। जला दो ये अखबार और थोड़ी देर एकांत में बैठने दीजिए मुझे।."
"तुम क्या समझती हो कि इस खबर से मुझ पर कोई असर नहीं हुआ। मेरा दिल ही जानता है । "
"शायद आदमियों को असर नहीं पड़ता हो । इसीलिए तो वह युद्ध प्रिय होते हैं। क्यों करते हैं लोग ? ये खून-खराबा ?आपको पता है जब दीप्ति की शादी हुई थी तो वर पक्ष की ओर से सिंधोरा नही आया था। बस एक छोटी सी प्लास्टिक की डिब्बी में सिंदूर था । जब दूल्हे ने उससे दीप्ति की मांग भरी तो दीप्ति के पापा कितने नाराज हो गये थे और उन्होंने उसी समय कहा था। आपसे कहलवाया था न! .कि हमारे यहाँ सिंधारे में भर कर सिंदूर आता है और आप वह भी नहीं लाए । वह उसके पूरे जीवन काम आता है।"
"तब वर पक्ष के लोग बोले थे कि हमारे यहाँ सिंधारे नहीं चलते । इसलिए बाजार में भी नहीं मिले।"
"अरे भाई! हमने आपकी डिमांड अपने शहर से दूसरे शहर में जाकर पूरी की ,कि बारातियों को बीच रास्ते में नाश्ता करना है और हमने इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठा ली। आप सिंधारे की बात को भी पूरा नहीं कर पाए। हमसे पहले बता दिया होता तो ये काम भी हम ही कर लेते।"
"दीप्ति की मम्मी अपने अंतिम दिन पूरे कर रहीं थीं। उनका पूरा शरीर पीला पड़ चुका था । इसके बावजूद वे पूरे समय शादी की सभी रस्में पूरी करवा रहीं थीं। वे बोलीं ," रहने दीजिए हम अपनी तरफ से मंगा कर दे देंगे।" बात मत बढ़ाइए। पर पिता का गुस्सा देखते ही बन रहा था ,वे बहुत खिन्न थे।
"हाँ तुमने देखी है पूरी शादी और विदाई के बाद ही आयीं थीं।" पति राज बोले थे..
दूसरे दिन अखबार में फिर खबर छपी थी...गाँव ***में मेजर ****का अंतिम संस्कार किया गया तो पूरा वातावरण जब तक सूरज -चाँद रहेगा *** का नाम रहेगा के नारों से गूँज उठा ,और सभी ने सजल नेत्रों से मेजर ****को अंतिम विदाई दी.... दादा ने अपने पोते को भी फौज में भेजकर देश की सेवा करने की बात कही.....पर बहू दीप्ति ने कहा,, " पिता जी यह तो अभी बहुत छोटा है। मुझे फौज में सेवा देने का अवसर दीजिए । मैं हर तरह से अपने देश की सेवा करने के योग्य हूँ। वातावरण फिर जोशीले नारों से गुंजायमान मान था बहू हो तो कैसी हो ? दीप्ति जैसी हो !जब तक सूरज चाँद रहेगा....
यही तो फर्क है सोच में। आप नहीं समझेंगे! एक पिता अपनी बेटी के अमंगल की दूरगामी सोच से भी विचलित हो जाता है और एक देश अपने लिए बलिदान माँगता है,,काश ! देश.... राष्ट्र ...भी पिता की ही तरह अपने बच्चों के लिए विचलित होते....काश..... सुहासिनी यह कहते हुए खुद पर काबू नहीं रख सकीं और सिसकने लगीं।
