दुर्गे दुर्जन दूर करो
दुर्गे दुर्जन दूर करो
आज दुर्गा अष्टमी है। जगह जगह कन्या पूजन का आयोजन किया जा रहा है। पास में ही बड़े घर वाली आंटी ने भी कन्या पूजन रखा था।
उनकी कन्याओं की गिनती में एक कन्या कम पड़ रही थी तो काम करने वाली आया ममता को बुलाया और उससे उसकी आठ साल की बबली को कन्या पूजन के लिए बुलाया। उस आठ साल की बच्ची को समझ में नहीं आ रहा कि तैयार होकर मां के काम वाले बड़े घर में क्यों जाना है ?
बार बार माँ से पूछने पर मां ने समझा दिया कि आज के दिन छोटी लड़कियों के रूप में माँ दुर्गा स्वयं धरती पर आती हैं।
इसलिए दुर्गा स्वरूप समझ कर आज उनकी पूजा की जाती है।
तब बबली बोली "'तो मैं भी दुर्गा हूं ? "
"हां, सभी लड़कियां दुर्गा ही होती हैं।" मां ने जल्दी से जवाब दिया। उसे काम पर जाने की जल्दी थी।
कन्या पूजन खत्म होने के बाद माँ के साथ ही घर जाने का इन्तजार करती बबली सजी धजी बैठी थी। तभी मालकिन के बड़े लड़के ने पानी मांगा ।माँ के व्यस्त होने के कारण माँ ने बबली को पानी देकर मालकिन के बड़े लड़के के कमरे में दे आने को कहा। उसे काम जल्दी से खत्म करने की हड़बड़ी थी। फिर कमरे के अन्दर जो कुछ होने लगा वह बबली की समझ में नहीं आ रहा था। उसने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की। उसके कानों में यही शब्द गूंज रहे थे कि आज के दिन छोटी लड़कियों के रूप में स्वयं दुर्गा मां धरती पर आती हैं। शक्ति स्वरूप बन कर।
कुछ ही देर में कमरे का फर्श फूलदान से फटे मालकिन के लड़के के सर के रक्त से लाल हो उठा।
आज दुर्गा अष्टमी जो थी।
आज इस कलयुग में सार्थक करती दुर्गा अष्टमी।