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निशा का प्यार

निशा का प्यार

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समेट चला किरण कनीका

आदित्य अपनी आगोश में

समा बदल गया शाम का

तिमीर पथरा गया गगन गोश में

ओढ़ चुनर तारों सी सजी

शृंगार कर लिया दुल्हन सा

शर्मिली निशा शरमा रही

सुनील विभावरी छा गयी

बेकल सुहाग मन की धरा पर

बिखर गया पुलक प्रगाढ़ सा

मलय संदली बहता चला

रात के हर एक प्रहर में

मिले नैन से नैन प्रियावर से

लब खिले निकटतम निकट ते

प्रणय प्रसून गुल पंखुड़ियों सा

सेज पर गया बिखर बिखर

स्नेह रागिनी गाये चाँदनी चंचल

निशीथ संग हरसिंगार वल्लरी

दमदमाती बहत चली

पुछत चंदा विनीत सा

कहो मेरी चंदन कियारी सजी

एक बदली लथबथ कुछ यूँ छायी

सुहाग मन उफ़ान उठा

खिली प्रिया उर कलीयाँ मोगर

मंद बयार कुछ बहत चला

थोड़ी झुकी निशा अधरों पे

कुछ नैन प्रिया के यूँ झुके

कसक बढ़ी प्रणय तणी

चंदा की आगोश में विभावरी

मूँदे नयन छुप गई छुयीमूई

सुरम्य स्वप्न लिये नैनन में॥



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