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Mohanjeet Kukreja

4.9  

Mohanjeet Kukreja

चाहा था जिसको !

चाहा था जिसको !

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चाहा था जिसको मैंने, मिला ही नहीं

गोया कोई ताल्लुक़ कभी था ही नहीं !


मजबूरी अब ऐसी भी क्या रही होगी

शायद उसके पास मेरा पता ही नहीं !


उसका तो हाल-ए-दिल पता नहीं मुझे

मुझको शिक़ायत भी है, गिला ही नहीं !


लहू का क्या, वो आज तलक रिस्ता है

ज़ख्मों को अपने कभी सिया ही नहीं !


उसके बग़ैर जो कटी, ज़िंदगी ना थी

ज़िंदा ज़रूर रहा मगर जिया ही नहीं !


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