कुछ ठीक करने का बहाना
कुछ ठीक करने का बहाना
कितनी दफ़ा सोचा,
खोल दूँ घर की
सारी खिड़कियां,
सारे दरवाज़े,
आने दूँ हवा
सकारात्मक,नकारात्मक -दोनों !
कीड़े मकोड़ों से भर जाए कमरा,
मच्छड़ काटते जाएं,
सांप, बिच्छू भी विश्राम करें
किसी कोने में ।
भर जाए धूलकणों से कमरा,
सड़कों पर आवाजाही का शोर
कमरे में पनाह ले ले ...
अपने अपने हिस्से की ख़ामोशी में,
घर घर ही नहीं रहा,
अनुमानों के सबूत
इकट्ठा हो रहे,
टीन का बड़ा बक्सा भी नहीं
कि भर दूँ अनुमानों से,
यह काम का है,
यह बेकार है ,
सोचते हुए हम सबकुछ बारी बारी
फेंकते जा रहे हैं !
और जो है,
उसको बेडबॉक्स में रख देते हैं,
और भूल जाते हैं ।
महीने, छह महीने पर जब खोलते हैं
तो फिर बहुत कुछ बेकार
कचरा लगता है
और उसे हटा देते हैं ।
यही सिलसिला चल रहा है
जाने कब से !
अगर आज भी कुछ सहेजा हुआ है
तो कुछ चिट्ठियाँ,
कुछ नन्हे कपड़े,
यादों की थोड़ी सुगन्धित गोलियाँ
खोल दूँगी खिड़की, दरवाज़े
तो झल्ला झल्लाकर
कुछ ठीक करने का बहाना तो होगा,
मोबाइल भला कोई जीने का साधन है !!!