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Prakash kumar Yadaw

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बसंत ऋतु

बसंत ऋतु

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प्रकृति कर रही है श्रृंगार,

आ गया देखो बसंत बहार,,


माता सरस्वती की कृपा से,

सभी का स्वप्न हो साकार,,


पतझड़ की पीड़ा का वृक्ष,

एक लंबी अवधि तक सहती है,,


इस अवधि में कोयल भी,

वृक्ष से कुछ नहीं कहती है,,


वृक्ष उदास हो जाती हैं,

प्रकृति में विरह वेदना रहती हैं,,


बसंत के आने से एक बार फिर,

प्रकृति और वृक्ष होते हैं प्रसन्न,,


कोयल भी कुहकती हैं,

जब होता है बसंत का आगमन,,


प्रकृति में हरियाली छा जाती है,

प्रकृति खुशियां दोबारा पा जाती हैं,,


रंग बिरंगे फूल खिलते हैं,

प्रकृति बाग बगीचा उपवन में,,


चहुं ओर खुशहाली छा जाती हैं,

हर्ष उल्लास रहता है हर मन में,,


बसंत ऋतु संकेत करता है,

निराश नहीं होना चाहिए जीवन में,,


सुख दुःख का क्रम चलती रहती है,

इस प्रकृति में इस धरा पावन में,,


बसंत कहता भी यही है हमसे,

ज़िंदगी बदलती है परिवर्तन में,,


तो क्यों रहे उदास हम भला,

क्यों रहे संग दुःख दुष्ट लांछन में,,


फूलों को देखकर तितली भौंरे,

पुलकित होकर जश्न मनाते हैं,,


पतझड़ की पीड़ा को भी वृक्ष,

बसंत को देखकर भूल जाते है,,


बदलती है प्रकृति बसंत के साथ,

दिन के जैसे सुहानी होती हैं रात,,


चहुं ओर बसंत ऋतु के आने पर,

होती हैं खुशियों की विस्तार,,


प्रकृति कर रही है श्रृंगार,

आ गया देखो बसंत बहार,,


माता सरस्वती की कृपा से,

सभी का स्वप्न हो साकार।।


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