किसान के दुःख दर्द
किसान के दुःख दर्द
किसान के
दुःख दर्द को
कौन बाँट
सकता है
कुछ तो फटे
हाल रहता है
कुछ तो
रहना पड़ता है
बन्डी पहनता है
धोती की लंगोटी
हर दम लगाता है
तभी तो मेहनत से
खेतो खलियानों मे
खून पसीना को
तन से बहाता है
कड़ी मेहनत करता है
वैशाख जेठ की
गर्मी मे भी खेतों
मे मेहनत करता है
कितनी भी ठंड पड़े
सुबह सुबह ही जल्दी
उठकर पानी खेतों मे
फसलो को देता है।
ठंड से हाथो की
ठुठरन को कैसे
वो सह लेता है
देख फसल को
जब लहलहाती है
मन ही मन खुश
हो जाता है ।
ठंडी गर्मी और
बरसात के मौसम को
ऐसे किसान सह लेता है ।
किस्मत ने यदि साथ
दिया तो फसल
सही हो जाती है
नही तो अक्सर
तुषार और कभी
इल्ली सभी फसल
खा जाती है ।
फिर सिर पर
हांथ धरे रोता है
बस अपनी ही
किस्मत पर रोता है ।