न जाने क्यों ?
न जाने क्यों ?
गुजरते हुए उसकी गलियों से
अक्सर वो याद आ ही जाती है
न जाने क्यों...?
कोई रिश्ता तो है नहीं उससे मेरा
फिर भी लगता हूँ उसके बिन अधूरा
जैसे सीता बिना राम
राधा बिना घनश्याम
न जाने क्यों...?
अरसा हुआ नैन से नैन मिले
अनुराग ज्यों का त्यों बना रहा
न जाने क्यों...?
बँधा हूँ समाज की जंज़ीरों से
हालाँकि उसको खैर नहीं
कितनी दफा कहना चाहा
मैं तेरा ही हूं कोई गैर नहीं
फिर भी तुमको समझ न आया
न जाने क्यों...?
मेघ नहीं हैं चक्षु मेरे
फिर भी उमड़ घुमड़ के बरसे
पात्र नहीं है हृदय मेरा
फिर भी भर-भर आया
दिमाग अभी भी ये सोच कर है परेशां
इतना प्यार आखिर कहाँ से आया ?
कवि नहीं हूँ फिर भी लिख रहा हूँ
कविता नहीं अपनी पीड़ा को रच रहा हूँ
देवव्रत बनूं या देवदास
पानी बनूं या बनूं प्यास
उलझन ये ही बनी रहती है
फिर लगता है अभी बाकी है एक आस
न जाने क्यों...?
एक आस
सब कुछ खो जाने के बाद
बाकी है एक आस
एक प्यारी सी आस
तुमको फिर पाने की आस
जिद है आज भी
सब कुछ लूट जाने के बाद
न जाने क्यों...?