ऋतु परिवर्तन
ऋतु परिवर्तन
ऋतु परिवर्तन
राय बदलती रही , वक़्त की हर नज़ाक़त पर ,
कस कर पकड़े रहा,पर ,अपने-उसूलों का पिटारा ॥
चाह इतनी कि ,आतीं रहें ,
नित नयी कपोंलें ,
पाता रहा ,
अपने ,
पीत – पर्णों से छुटकारा ॥
राय बदलती रही ,
वक़्त की हर नज़ाक़त पर ,
कस कर पकड़े रहा,
पर ,
अपने-उसूलों का पिटारा ॥
चोटों से लहरों की,
बचाने , उनकी नींवों को ,
बन गया ,
पथरीला एक
निर्जन किनारा ॥
“ चटाख”.......
फिर एक शीशा दरक़ा ,
हो गयी सुबह ,
आ कर ,
इस पत्थर ने बताया
आयेंगे ऐसे और भी कई ,
पीछे खड़ी है भीड़
लगा के कतारा ॥
आज फिर विपर्ण होगी
शाख़ कोई
नव कपोंलों की आस में ,
बदरंग ठूंठ , फिर भी रहेंगे
थके परिंदों का सहारा ॥
---------- रविकान्त राऊत