ये आँखें बहुत कुछ बोलती हैं
ये आँखें बहुत कुछ बोलती हैं
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पलक झपक कर आँखें हमसे,
गिर कर उठना सिखलाती हैं ।
मन के कोमल भाव समेटे,
आँखें तनती, सकुचाती हैं ।।
जुबां जिसे कहने से डरती,
आँखें बरबस कह जाती हैं ।
दामन सच का थामे आँखें,
राज़ दिलों के खोलती है ।।
ये आँखें बहुत कुछ बोलती हैं ।
आकार एक में रहकर आँखें,
अविचल रहना सिखलाती हैं।
पलक बंद हों, फिर भी आँखें,
पल में दुनिया दिखलाती हैं ।।
आजीवन आँखें हम सब को,
हर पल राहें बतलाती हैं ।
मृत्युपरान्त भी आँखें कुछ पल,
अपनों की बांट जोहती हैं ।।
ये आँखें बहुत कुछ बोलती हैं ।
