ख़ुद की साल गिरह पर
ख़ुद की साल गिरह पर
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उम्र के इस दौर में यह हाल है
दिल में सुकूँ, रग़ों में उबाल है !
मुट्ठी में समेटी ज़िन्दगी का
फ़िसल चला एक और साल है !
यह साल-गिरह मनाना भी
अपने आप में एक सवाल है !
ना मुस्तक़बिल में बची खुशी
और न माज़ी पे ही मलाल है !
जिए जाते हैं मगर फिर भी
यह भी क्या कम कमाल है !