कब से
कब से
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मैं कब से क्या ढूँढ रहा हूँ .........!
मैं क्या ........?
कब से ,
क्या ढूँढ रहा हूँ।
अवचेतन मन के,
चेतन से।
बरसों से ही,
यहीं चेत रहा हूँ।
मैं तब से,
उस चेतन को,
ढूँढ रहा हूँ।
सब भूल -भूलावा है।
एक शून्य दिखावा है।
जगत को रचने वाले का,
अजब तमाशा है।
मैं गजब तमाशा सारा,
कब से झेल रहा हूँ।
मैं तब से ,
अपने भीतर को,
टटोल रहा हूँ।
मैं ज्ञान को बना के पतवार,
शिवमय आनंदसागर को ढूँढ रहा हूँ।
