कम्पास !
कम्पास !
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हाथों में कभी हमारे भी पेंसिल-कंपास था
पढ़ते थे भूले से, रिजल्ट फर्स्ट क्लास था !
चेहरों पर स्माइल रहती थी हम सबके सदा
कोई भी टीचर करता कितना ही हरास था !
हर एक सुन्दर लड़की ड्रीम-गर्ल दिखती थी,
दुनिया हसीं और सब कुछ ही झक्कास था !
इंटरनेशनल ट्रेवल हमें सूझा तक नहीं कभी
देसी सोच का अंत अपना रोहतांग पास था !
कॉलेज से निकल सोचते थे झंडे गाड़ देंगे
पता न था हरा दूसरी साइड पर ग्रास था !
इक-तरफ़ा लव अफेयर्स देवदास बना गए
जब भी ख़ुद को देखा... हाथों में ग्लास था !