व्यंगचित्र...!
व्यंगचित्र...!
व्यंगचित्रात। तुलाही मलाही।
आज पाहिलेही।मुकेपणी।।
सुंदर गोंडस।तू नीट नेटकी।
मी ही होतोच की।बावळट।।
चड्डी ती फाटकी।तोकडा सदरा।
धरुनी पदरा।मातोश्रीच्या।।
ती म्हणे मजला।जा जरा बाजूला।
बगीचा सजला।प्रेमाचा रे।
मी मनी लाजलो।थोडाच थिजलो।
पुरता विजलो।पाहोनिया।
तू बेरकी राणी। तुझी वेणी फणी।
गोड दातकणी। भुललो की।।
आता आठवते।सारे चुकलेले।
तेच मनसुबे।फसलेले।।
व्यंगचित्र तुझे।आजही दिसते।
मन हे फसते। अनेकदा।।
गेले वैभव सारे।व्यंगची राहिले।
सारेच साहिले । तुझ्या साठी।
व्यंगचित्रकार। मी देतो आकार।
उमटे ओंकार। हृदयात।।
सारेच निराळे।जगावेगळे हे।
नाते जडे पहा। जीवनात।।
प्रेमात सारे ग।क्षम्यअसे म्हणे।
नसते ते कधी।व्यंगचित्र।।
