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Prashant Shinde

Others

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Prashant Shinde

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श्री लक्ष्मी व्यंकटेश प्रसन्न

श्री लक्ष्मी व्यंकटेश प्रसन्न

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।।श्री लक्ष्मी व्यंकटेश प्रसन्न।।

अभंग (६६६४)

व्यंकट रमणा।गोविंदा गोविंदा।

उठा की एकदा। हो गोविंदा।।धृ।।

मुखमार्जन हे। लवकर करा।

थोडी त्वरा करा। व्यंकटेशा।।

धूप दीप की हो । पहाआले हाती।

खंडित ही मती।झाली की रे।

काकडा आम्हांसी।आटपून दे रे।

आळस सोड रे। आता बाजू।

स्नान पण कर ।भल्याच पहाटे।

अप्रूप हे वाटे।भक्तालागी।।

दुधाभिषेक ही। होऊ दे तुझा रे।

भक्त पाहती रे । सुखसुखे।

चंदन भाळीचे। लेप लेपू दे रे।

दागिने घालू रे। सुशोभित।।

सजवितो तुला।माझ्याच मायेने।

नित्य नियमाने।मनसोक्त।

बघ सुकोमल। रूप हे देखणे।

नाही काही उणे। तुझ्यात रे।

प्रसन्न देवा तू ।आता आशीर्वाद।

देऊन प्रसाद। कृपा कर।।

आरती सजली।भूपाळी घुमली।

तहान शमली। दर्शनाची।।

तूच भगवन्त।सदा हृदयात।

आणि अंतरात ।राहतोस।

तुझा मी रे दास।सदाच समीप।

नाही मोजमाप। हृदयात।

सदैव राहसी।तूच अंतरात।

प्राण हा तनात। तुझ्यासाठी।।

व्यंकट रमणा।गोविंदा गोविंदा।

उठा की एकदा। हो गोविंदा।।धृ।।

सुप्रभात...!


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