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Priyanka Gupta

Others

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Priyanka Gupta

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ज़िन्दगी का हाथ थाम लिया था

ज़िन्दगी का हाथ थाम लिया था

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जब आपके अंदर कोई नन्ही जान सांस ले रही होती है तो उससे रोमांचक शायद ही कोई अनुभव होता होगा ? और जब यह पता न हो कि सांस लेने वाला है या वाली है ,तो रोमांच और बढ़ जाता है .गर्भावस्था के प्रारम्भ से लेकर जब तक नन्ही जान बाहर कि दुनिया में कदम नहीं रख देती ,यह उत्सुकता बनी ही रहती है कि नया मेहमान आने वाला है या आने वाली है .

मेरे मामले में मुझे ही नहीं पूरी फॅमिली को उत्सुकता से भी ज्यादा एक बेटी की चाह थी .पति नीलेश की न तो कोई बहिन थी और न ही बुआ .वहीँ उनसे बड़े भाई सुदेश भैया और नीति भाभी के भी एक बेटा ही था .

गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर ने ३-4 बार सोनोग्राफी करवाई ,हर बार सोनोग्राफर से पूछा ,"बेबी गर्ल है या बेबी ब्वॉय। "लेकिन सोनोग्राफर ने बताने से इंकार करते हुए हर बार यही कहा ,"यह गैर कानूनी है। आपको जेल जाना है तो कुछ और अपराध कर लेना ,लेकिन मुझे जेल नहीं जाना। " इधर जब भी नीति भाभी से बात होती तो वह एक न एक बार पूछ ही लेती ,"तुम्हे क्या लगता है बेटा है या बेटी। "नीति भाभी को भी था कि घर में एक बेटी तो होनी ही चाहिए ;घर में बेटा तो था ही।

उधर मेरी खुद की बहिन को भी लगता था कि उसके एक भांजी ही होनी चाहिए ताकि उसे तरह -तरह के कपड़े पहना सके ;उसकी चोटियां बना सके ,उसके क्यूट -क्यूट पिन लगा सके । मैं बेटी की माँ बनूंगी या बेटे की ;अभी तो यह केवल ईश्वर को ही पता था।बेटी की चाह तो थी ही ;लेकिन उससे भी ज्यादा एक स्वस्थ बच्चे की चाह थी ;चाहे बेटा हो या बेटी।

समय तो पंख लगाकर उड़ जाता है . बेटा है या बेटी ऐसा सोचते -सोचते ,शर्त लगाते -लगाते , बच्चे के माँ के गर्भ से बाहर की दुनिया देखने का समय भी आ ही गया।मैं प्रसव पीड़ा में थी ; असहनीय दर्द हो रहा था ;ऐसे लग रहा था जैसे असंख्य शूल चुभ रहे हो ;लग रहा था कि पीड़ा से मर ही जाऊंगी ;तब तो लग रहा था कि जो भी है ,जल्दी से बाहर आये और मैं इस पीड़ा से मुक्त हूँ ;कभी तो यह भी लग रहा था सी -सेक्शन ही करवा लूँ ;कभी लग रहा था यह कहाँ फंस गयी हूँ;। और तभी मेरा सारा दर्द काफूर हो गया और एक अद्भुत सी शांति का अनुभव हुआ। बच्चे ने बाहर की दुनिया में कदम रख दिया था।समझ आ गया था कि नयी ज़िन्दगी को लाने के लिए मृत्यु से होकर गुजरना पड़ता है .ज़िन्दगी देना अपने आप में इतना खुशनुमा एहसास है कि सारा दर्द ,पीड़ा ,तकलीफ एक सेकंड में ही भूल जाते हैं .

मैंने डॉक्टर से पूछा ,"डॉक्टर बेबी गर्ल या बेबी ब्वॉय। " डॉक्टर ने कुछ सेकण्डों के बाद बताया ,"मीनल ;इट्स बेबी गर्ल। "ऐसा सुनते ही मैं ख़ुशी से झूम उठी। मैं अपनी बेटी को अपने हाथों में लेना चाहती थी ;उसे चूमना चाहती थी। लेकिन डॉक्टर ने मुझे उसे दूर से ही दिखाया। उस नन्हीं सी जान को सांस लेने में थोड़ी सी तकलीफ थी ;इसलिए उसे ऐन आई सी यु में शिफ्ट कर दिया गया था।

मुझे अपने सपने को देखने के लिए और उसे अपने हाथों में थामने के लिए 15 -18 घंटे इंतज़ार करना पड़ा। यह इंतज़ार मेरी ज़िन्दगी का सबसे लम्बा इंतज़ार था। लेकिन इंतज़ार का फल मीठा ही होता है। १८ घण्टे बाद मेरा सपना ,मेरी ज़िन्दगी ,मेरी बेटी मेरे साथ ,मेरे पास थी और मैंने पहली बार अपनी ज़िन्दगी का हाथ थाम लिया था।


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