ज़िन्दगी गुजर ही जायेगी Prompt 12
ज़िन्दगी गुजर ही जायेगी Prompt 12
"दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है। तुम अभी जाकर रोहण से अपने व्यवहार के लिए माफ़ी माँगो। गलती भी तो तुम्हारी ही है। ",चित्रा ने अपनी साथी लेक्चरर रोमा को समझाते हुए कहा।
"हां चित्रा ,तुम बिलकुल सही कह रही हो। रोहन की मम्मी को माइनर हार्ट अटैक आया था और वह उन्हें लेकर इमर्जेन्सी में हॉस्पिटल गया था। उसी दिन मेरा जन्मदिन था ;वह मुझे फ़ोन नहीं कर सका था। जब मैंने फ़ोन किया तो उसने मैसेज कर दिया था कि बिजी है। लेकिन मैं तो पता नहीं क्या -क्या समझ बैठी और उसे बहुत कुछ भला-बुरा लिखकर वाट्स अप पर मैसेज कर दिया। मुझे उसकी स्थिति समझनी चाहिए थी और इतना रिएक्ट नहीं करना था। मैं आज ही जाकर उससे अपने किये की माफ़ी माँग लूँगी। ",रोमा ऐसा कहकर अपनी क्लास लेने चली गयी थी।
चित्रा ने भी तो इसी गुस्से के कारण अपने किसी अज़ीज़ को हमेशा -हमेशा के लिए खो दिया था। चित्रा और सुमन बहुत अच्छे दोस्त थे और दोस्त से भी बढ़कर थे। सुमन एक सीधी साधी लड़की थी ;जो कि एक बहुत ही पारम्परिक परिवार से संबंध रखती थी। चित्रा बचपन से ही काफी दबंग प्रवृत्ति की थी और अपने पापा की एकलौती बेटी थी। चित्रा की माँ का उसके बचपन में ही देहावसान हो गया था। माँ की मृत्यु के बाद पापा वैरागी से हो गए थे ;चित्रा का पालन -पोषण दादी ने ही किया था। चित्रा जब कॉलेज में आयी ;तब दादी का भी देहावसान हो गया था। अब चित्रा ही स्वयं की और अपने पापा की देखभाल करती थी। आर्थिक रूप से चित्रा का परिवार ठीक था ;बाज़ार में कुछ दुकानें थी ,उनके किराए से एक ठीकठाक आमदनी हो जाती थी ;जो चित्रा और उसके पापा के लिए पर्याप्त थी।
जिस उम्र में दूसरी लड़कियाँ ,लड़कों के प्रति एक आकर्षण का अनुभव करती हैं ;वहीं चित्रा को कोई लड़का आकर्षित नहीं करता था। कॉलेज में चित्रा की दोस्ती सुमन से हुई। चित्रा ,सुमन के प्रति एक अलग सा आकर्षण अनुभव करती थी। अगर सुमन का हाथ ,चित्रा को छू जाता था तो चित्रा के सारे शरीर में बिजली से कौंध जाती थी। यह वह दौर था जब सेक्शन 377 को लेकर देश में आंदोलन चल रहे थे।
चित्रा को धीरे -धीरे समझ आने लगा था कि वह किसी लड़की के साथ ही अपनी ज़िन्दगी बिता सकती है। सुमन भी अपने आपको चित्रा के साथ काफी सुरक्षित सा महसूस करती थी। चित्रा उसकी पढाई में भी मदद किया करती थी। एक बार सुमन चित्रा के घर पर आयी हुई थी और किसी बात पर चित्रा ने सुमन को गले से लगाकर उसके गालों पर अपने होंठ रख दिए थे। उस दिन दोनों दोस्तों को ही अपने नए रिश्ते और जज्बातों का एहसास हुआ था।
दोनों का मिलना -जुलना ,साथ -साथ घूमना -फिरना जारी था। चित्रा पढ़ -लिखकर लेक्चरर बनना चाहती थी। वह सुमन से कहती थी कि ,"जैसे ही मेरी नौकरी लगेगी ;हम दोनों यह शहर छोड़ देंगे। हम दोनों अपनी एक नयी दुनिया बसायेंगे। "
सुमन कहती ,"कैसे यार ?लोग हमें स्वीकार नहीं करेंगे। हम दोनों अकेले कैसे रह पाएंगे ?"
चित्रा कहती ,"दो लोग अकेले कैसे हो सकते हैं ?लोग धीरे -धीरे हमें समझ ही जाएंगे। "
"लेकिन हमारे बच्चे तो हो ही नहीं पाएंगे। मुझे तो बच्चे बहुत ही पसंद हैं। ",सुमन कहती।
"पागल ,बच्चे तो गोद ले लेंगे। आजकल तो मेडिकल साइंस ने इतनी प्रगति कर ली है कि टेस्ट टयूब तकनीकी के ज़रिये हम अपना बच्चा भी कर सकेंगे। ",चित्रा कहती।
सपने बुनते-बुनते दोनों की ज़िन्दगी चल रही थी। तब ही दोनों के फाइनल ईयर के एग्जाम आ गए। लास्ट एग्जाम के दिन सुमन ,चित्रा से मिले बिना जल्दी से अपने घर चली गयी थी। चित्रा को चिंता हुई ;वह भी उसके घर चली गयी।
जैसे ही वह सुमन के घर पहुँची ;वहां का नज़ारा देखते ही उसकी त्यौरियां चढ़ गयी। सुमन को देखने लड़के वाले आये हुए थे। चित्रा ने आव देखा न ताव गुस्से में सबके सामने बोलने लगी कि ,"सुमन तुम यह क्या कर रही हो ?यह क्या तमाशा है ?तुमने मुझे बताना तक जरूरी नहीं समझा। तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो ?चलो उठो ,हम यहाँ से अभी कहीं दूर चले जाएंगे। "
चित्रा ,सुमन का हाथ पकड़कर उसे ले जाने लगी। सुमन तो एकदम बुत बन गयी थी ;उसे चित्रा से ऐसे गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। "चित्रा ,तुम जाओ और तमाशा मत करो। ",सुमन ने भीगी आँखों से कहा।
जैसे ही वह सुमन के घर पहुँची ;वहां का नज़ारा देखते ही उसकी त्यौरियां चढ़ गयी। सुमन को देखने लड़के वाले आये हुए थे। चित्रा ने आव देखा न ताव गुस्से में सबके सामने बोलने लगी कि ,"सुमन तुम यह क्या कर रही हो ?यह क्या तमाशा है ?तुमने मुझे बताना तक जरूरी नहीं समझा। तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती हो ?चलो उठो ,हम यहाँ से अभी कहीं दूर चले जाएंगे। "
चित्रा ,सुमन का हाथ पकड़कर उसे ले जाने लगी। सुमन तो एकदम बुत बन गयी थी ;उसे चित्रा से ऐसे गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। "चित्रा ,तुम जाओ और तमाशा मत करो। ",सुमन ने भीगी आँखों से कहा।
चित्रा को बड़ी मुश्किल से भेजा गया। सुमन की मम्मी ने बात सम्हालते हुए कहा ,"सुमन की बहुत ही अच्छी दोस्त है। बिन माँ की बेटी है ;इसीलिए इतना बौखला गयी है। "
लड़के वालों को सुमन पसंद आ गयी थी और उन्होंने रिश्ते के लिए हाँ कह दी थी। सुमन के मम्मी -पापा ने भीगी आँखों से हाथ जोड़ते हुए कहा ,"बेटा ,तुम जो भी फैसला लोगी ;उस पर तुम्हारी तीनो छोटी बहिनों का भविष्य निर्भर होगा। "
सुमन ने अपने पापा को आज से पहले कभी इतना कमजोर नहीं देखा था। उसने तो हमेशा ही उन्हें दबंग और रौबदार व्यक्तित्व के रूप में ही देखा और समझा था।
सुमन ने शादी के लिए हां कह दिया था और उसने चित्रा को एक खत भी लिखा कि ,"चित्रा ,तुम्हारे दो पल के गुस्से ने हमारी ज़िन्दगी बदल दी। लड़के वालों के बार में खुद मुझे उस दिन सुबह ही पता चला था ;इसीलिए तुम्हें बिना बताये जल्दी आ गयी थी। सोच रखा था कि कोई बहाना बनाकर मना कर दूँगी। लेकिन तुमने मुझे ऐसी परिस्थिति में डाल दिया है कि अब मैं कुछ नहीं कर सकती।मेरे एक इंकार का खामियाजा मेरी बहिनों को भुगतना होगा। उम्मीद है ;तुम मुझे समझोगी। वैसे मुझे लड़का ठीक ही लगा। उसके साथ भी ज़िन्दगी ,तुम्हारे साथ जितनी तो नहीं ;लेकिन अच्छी ही गुजर जायेगी। "
चित्रा ,सुमन के खत को पढ़ती जा रही थी और उसकी आँखें बरसती जा रही थी। उसके बाद चित्रा आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे शहर आ गयी थी और लेक्चरर भी बन गयी। उसने अब एक बेटी को गोद ले लिया है और उसने अपनी बेटी का नाम सुमन रखा है।
