Shalini Dikshit

Others

4.5  

Shalini Dikshit

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वो लड़की खोई-खोई सी

वो लड़की खोई-खोई सी

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सर्दी की उस शाम जानकी कम्युनिटी सेंटर से मॉडल टाउन जाने वाली बस में चढ़ी तो हमेशा की तरह उस लगभग खाली बस में वो उदास सी लड़की संदली बैठी दिखाई दी।

संदली खुद में खोई हुई थी लेकिन सवालों के बवंडर में खुद को घिरा पाकर वो घुटन सी महसूस कर रही थी।

"तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?"

लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है, "आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं?"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जवाब का इंतजार हो उसे।

जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

"संदली, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?" प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

"जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।" मुसकुराती हुई संदली ने खिसक कर अपनी सीट पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

"कैसी हो? क्या चल रहा है आजकल?" जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

"बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज-पढ़ाई...." संदली ने जबाब दिया। "आप सुनाइये।"

"बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।" चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

"अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई। संदली का कृत्रिम उत्साह जानकी समझ गई और उसको खुशी भी हुई कि जहाँ आजकल के युवा दूसरों की भावनाओं की जरा सी भी कदर नहीं करते वहीं यह लड़की देखो इतनी परेशान सी दिख रही है उसके बाद भी उसे जानकारी का दिल रखने के लिए उत्साह दिखाया।

जानकी के घर के पास ही एक प्राइवेट गर्ल्स हॉस्टल है जहां संदली पिछले कुछ सालों से रहती है वह शायद किसी छोटी जगह से है तभी उसको जल्दी हॉस्टल में रहने आना पड़ा स्कूल आते-जाते अक्सर जानकी उसको देखती थी और मुस्कुरा देती उसके बाद संदली ने उसे नमस्ते करना शुरू कर दिया और ऐसे ही धीरे-धीरे दोनों की पहचान हो गई।

पहले हमेशा संदली हंसती खिलखिलाती सी महसूस होती थी एक हवा के झोंके की तरह पर पिछले एक साल से उदास रहती है यह बात जानकी को अच्छी नहीं लग रही थी और उसको कई दिनों से इच्छा थी कि वह बात करे लेकिन मौका नहीं मिल रहा था आज बस ने शायद यह मौका दे दिया है।

"हां मैं बताती हूँ; पहले तुम बताओ आज इतनी परेशान से क्यों देख रही हो क्या थक गई हो।" जानकी ने संदली से कहा।

"आंटी हॉस्टल वाले रिनोवेशन का काम शुरू करने वाले हैं तो हॉस्टल खाली करना है, बस इसीलिए थोड़ा परेशान हूँ। अब इतनी जल्दी दूसरी जगह कहां ढूंढू यह सब नहीं समझ पा रही हूँ।" संदली थोड़ी चिंता के साथ बोली।

"तुम तो जानती हो संदली मैं अकेले रहती हूँ, दोनों बच्चे अपनी-अपनी जगह पर सेटल है कभी-कभी आते हैं तो तुम चाहो तो मेरे घर में रह लो मैं गेस्ट रूम तुम्हारे लिए खाली कर दूंगी।" जानकी ने संदली से कहा।

जानकी को सोच के थोड़ा अच्छा लग रहा था कि अगर संदली उसके घर में रहने लगी तो उसका अकेलापन भी थोड़ा दूर हो जाएगा और उसको वह लड़की पसंद भी है, एक अनकहा सा स्नेह हो गया था उसके साथ।

"वाह आंटी जी यह तो आपने बहुत ही अच्छी बात बताई यह एरिया मुझे बहुत पसंद है क्योंकि मेरा कॉलेज और कोचिंग सब यहां से पास है। मैं यहाँ से दूर नहीं जाना चाहती थी। लेकिन........?" संदली ने खुश होते होते चिंता जताई।

"क्या लेकिन?"

हॉस्टल में तो टिफिन आ जाता था अब देखती हूं यहाँ आ पाएगा कि नहीं।

"अरे पागल लड़की मैं मेरा खाना तो बनाती हूँ, साथ में तुम्हारा भी बना लूंगी। तुम कौन सा बीस रोटियां खाओगी पेइंग गेस्ट तरीके से रह लेना।" जानकी बोली।

"बहुत अच्छा आंटी जी आपने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी मैं घर पर बात करके फिर आपको पक्का बताता हूं। अच्छा चलिए अब आप बताइए क्या क्या सीख रही है क्या कर रही है आजकल।" संदली ने हंसकर पूछा।

"बताऊंगी बताऊंगी लेकिन देखो अभी तो स्टॉप आ गया अपना अब तो उतरना पड़ेगा।" जानकी मुस्करा कर बोली।

"ओह हाँ!" संदली भी हंस पड़ी

आज काफी दिनों बाद संदली को जानकी ने हंसते देखा था उसको अच्छा लगा ।

चार दिन के बाद ही संदली अपने पापा के साथ पूरा सामान लेकर के जानकी आंटी के घर में रहने आ गई उसके पापा से मिलकर जानकी को बहुत अच्छा लगा वह भी बहुत ही हंसमुख टाइप के इंसान थे अब उनको समझ में आ रहा था कि संदली क्यों इतने अच्छे स्वभाव की है। संदली के पिता जानकी को बहुत धन्यवाद दे रहे थे।

"जानकी जी आपकी वजह से अब मुझे मेरी बेटी की चिंता नहीं है वरना कहाँ ढूंढने जाते, आपको तो इतने समय से जानती है आपके बारे में हमसे भी बात करती रहती है।" संदली के पिता बोले।

सदली में बिल्कुल भी आलस नहीं है उसने फटाफट अपना रूम व्यवस्थित कर लिया। रात के खाने में जब जानकी ने उसको आवाज दी तो वह बाहर आ के उसने टेबल पर पानी रखा प्लेट्स लगाई और किचन से खाना भी ले आई, फिर बोली, "आंटी आप बैठिये आज मैं खाना परोसती हूँ।"

उसके बाद दोनों ने एक साथ खाना खाया, संदली अपने रूम में चली गई। जानकी को ऐसा लग रहा है कि आज उसने बहुत दिनों बाद बहुत अच्छे से पेट भर के खाना खाया है अकेले रहते रहते बोर हो गई थी अब संदली का साथ उसको बहुत अच्छा लगने वाला है वह समझ चुकी थी।

सुबह कॉलेज जाते समय संदली बहुत ही साधारण मुड़े- तुड़े कपडे पहन कर कमरे से बाहर आई और जानकी को बाय बोल के कॉलेज चली गई। जानकी को अंदाजा था कि कुछ तो बात है जो संदली को अंदर ही अंदर खाए जा रही है, जिससे उसके चेहरे की रौनक चली गई है । अब तो यही रहती है धीरे-धीरे मैं उससे बात करूंगी पता करूंगी जानकी ने सोचा।

संदली कॉलेज से आई तो जानकी कहीं जाने के लिए तैयार थी।

"अरे आंटी आप कहां जा रही हैं?"

"मैं मेरी जुंबा क्लास में जा रही हूं हफ्ते में तीन दिन जाती हूं।" जानकी बड़े स्टाइल में बोली।

"जुंबा डांस क्लास क्या बात है आंटी!" संदली हंसते हुए आश्चर्य में बोली।

हाँ तो, में नहीं जा सकती क्या? मैं बुड्ढी हो गई हूं यही कर रही हो तुम "--जानकी ने छेड़ा।

"नहीं-नहीं आंटी बुड्ढी कब कहा आपको।"

"अभी मैं सिर्फ ५५ की हूं समझी और जुंबा डांस में कर लेती हूँ; हाँ थक जल्दी जाती तो बैठ जाती हूं। लेकिन अच्छा तो लगता है मुझे उस क्लास में जाकर।"

"अगर तुम चाहो तो संडे के संडे तुम भी चला करो मैं बात कर लूंगी तो महीने में चार दिन के कम पैसे लेंगे।"

"ठीक है आंटी अभी आप जाइये मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ।" संदली जानकी को दरवाजे की तरफ ले जाते हुए बोली।

"अच्छा तुम कहो तो आज नहीं जाती हूं डांस क्लास में चलो हम दोनों चाट खाकर आते हैं।"

"नहीं आंटी में तो अभी कॉलेज से आई हूँ।" संदली थोड़ा तुतला कर बोली।

"कोई बात नहीं तुम थोड़ी देर आराम कर लो, मैं चाय बनाऊंगी; चाय पिएंगे उसके बाद हम चाट खाने जाएंगे, थोड़ा घूम के आएंगे; मैं आज क्लास नहीं जाती हूं" जानकी बिना रुके बोलती चली गई।

"सो स्वीट! आंटी आई लव यू!"

कुछ देर बाद-

दोनों बाहर निकल गई मार्केट घूमने और चाट खाने के लिए संदली के बहाने जानकी भी थोड़ा इंजॉय कर रही थी उसको भी बहुत अच्छा लग रहा था। जानकी एक ठेले के पास चाट खाने के लिए रुकी पर बाइक पर खड़े दो लड़के अजीब निगाहों से संदली को देख रहे थे।

संदली बोली, "नहीं आंटी यहां नहीं , दूसरी जगह जाते हैं।"

फिर उन लोगों ने दूसरी जगह चाट खाई है और अब घर भी आ गए लेकिन संदली का मूड उखड़ा-उखड़ा ही रहा उसने ढंग से बात भी नहीं करी जैसे कुछ डर रही हो।

जानकी ने आज पूरा मन बना लिया है कि वह घर में जाकर आज तो संदली से बात करने ही वाली है अगर संदली उचित समझेगी तो उसको बताएगी बाकी वह ज्यादा दबाव नहीं डालेगी उस पर।घर पहुँच संदली तो अपने कमरे में चली गई और उसने अंदर दरवाजा बंद कर लिया आज वैसे भी रात में किसी का ज्यादा खाना खाने का मन तो है नहीं पेट भर गया है जानकी भी थोड़ा आराम करने लगी।दो ढाई घंटे हो गए जब वह एक बार भी बाहर नहीं आई तो जानकी खुद ही उसके रूम में गई

"संदली मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

"हाँ जी आंटी कहिए।"

"कुछ व्यक्तिगत बात पूछनी है, तुम बुरा मत मानना।"

"अरे आँटी ऐसा क्या पूछेंगी जो हमें बुरा लगे, बुरा क्यों मानूं आपकी बात का?"

"देखो बेटा मैं तुम्हारी माँ जैसी हूं और मुझे लगता है कि अगर कुछ ऐसा है कि तुम मुझसे कहना चाहती हो तुम्हें मुझे कहना चाहिए मैंने देखा वहां दो लड़कों को देखकर तुम कुछ सहम सी गई थी; क्या कोई समस्या है, कुछ परेशान करते हैं तुम्हें? क्या बात है तुम मुझसे कहो, बिल्कुल मत डरो मुझ पर पूरा विश्वास करो, अगर मुझसे नहीं कह सकती हो तो फिर अपनी मां से कहो सब बातें, लेकिन इस तरह से तुम्हारा परेशान रहना ठीक नहीं है।"

यह सुनकरसंदली जानकी के गले लग गई और फूट-फूट कर रोने लगी।

"आंटी मैं अच्छी लड़की नहीं हूं मैं बहुत बुरी लड़की हूं मैं बहुत बुरी लड़की हूं रोते-रोते संदली ने अपनी पूरी दास्तान सुनाई....

मैं ट्वेल्थ क्लास में पढ़ती थी एक लड़का बार-बार मुझे प्रपोज करता था मुझसे बहुत अच्छी बातें करता मुझे पढ़ाई के बारे में बताता कैरियर के बारे में बताता कि पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए कैरियर बनाना बहुत इंपॉर्टेंट है मुझे उसकी बातें अच्छी लगती धीरे-धीरे वह मुझे अच्छा लगने लगा वह मुझसे छः- सात साल बड़ा था। कॉलेज में कुछ रिसर्च कर रहा था। मुझे लगता की वह बहुत समझदार है कितनी समझदारी की बातें करता हैं, मैं उनकी हर बात मानने लगी थी एक दिन वह मुझे अपने किसी दोस्त के रूम में ले गया, वहां उसने बहुत सी बातें की और फिर धीरे-धीरे हमने सारी सीमाएं तोड़ दी मैंने बहुत मना किया लेकिन वह बोला तुम तो जानती हो ना मैं बहुत समझदार हूँ, मैं कैसे कोई गलत काम कर सकता हूँ, मना करने के बावजूद भी आंटी मुझे भी कहीं ना कहीं वह सब कुछ अच्छा ही लग रहा था और ना चाहते हुए भी वह सब कुछ हुआ।

बाद में मैं बहुत घबरा गई मैंने उससे पूछा, "शादी तो करोगो न?"

कुछ देर संदली चुप रही फिर बोली, "मुझ से बाद में धीरे-धीरे उसने मुझसे मिलना छोड़ दिया जब से कॉलेज गई हूँ तो वह उसी कॉलेज में है और कई बार लड़कों के साथ मुझे अजीब तरह से देखता है ऐसे शो करता है कि मैं बहुत खराब हूँ, यह सब मुझे बहुत परेशान करता है और यह सब मुझे बहुत खराब लगता है, यह मैं मम्मी से भी नहीं कर सकती वरना उनको बहुत दुख होगा। मैं क्या करूं? यह सब सोच- सोच के अंदर से लगता है कि मैं एक बुरी लड़की हूँ। मैं अच्छे घर की लड़की हूँ मुझे बुरा नहीं होना चाहिए था फिर भी मैं बुरी लड़की हूँ।" कहते हुए संदली की आँखों से आंसू बहने लगे।

जानकी जी बहुत देर उसको गले से लगाए रही फिर बोली, "तुम बुरी लड़की बिल्कुल भी नहीं हो।"

संदली ने गर्दन उठा के सवाल किया, "आंटी में बुरी लड़की नहीं हूं?"

 "हाँ तुम बिल्कुल भी बुरी लड़की नहीं हो, तुम तो बच्ची थी तुम से गलती हो गई और बच्चों से गलती हो जाती है और उसका तुम्हें एहसास भी है, अब उसी बात को हमेशा अपने ऊपर लादे रहकर तुम अपना जीवन तो बर्बाद नहीं कर सकती ना? हाँ मैं मानती हूं तुम से गलती हो गई लेकिन अपनी इस गलती से शिक्षा लेकर तुम सजग रह सकती हो लेकिन इस तरह अपना जीवन खराब नहीं कर सकती अपनी पढ़ाई को प्रभावित नहीं होने दे सकती।"

"क्या कह रही आंटी आप मुझे वह सब भूल जाना चाहिए मुझे बार-बार याद नहीं करना चाहिए कि मैंने ऐसा सब किया?"

"हाँ बिल्कुल याद करने की कोई जरूरत नहीं है जो हुआ उसको भूल जाओ, मन लगाकर पढ़ाई करो और अपना कैरियर बनाओ।"

"लेकिन आंटी मुझसे कौन शादी करेगा क्या मेरी कभी शादी भी होगी?"

"अभी तुम्हारी उम्र शादी के बारे में सोचने की नहीं है, पढ़ाई करके कैरियर बनाने के बारे में सोचने की है, हाँ जब शादी की बात आएगी तब खुद उस लड़के से सारी सच्चाई बता देना उसके बाद अगर वह तुमसे शादी करे तो ठीक है पर झूठ बोलकर किसी भी रिश्ते की नींव मत रखना। जरूर एक दिन तुम्हारे जीवन में बहुत अच्छा लड़का आएगा अब यह सब सोचना बंद करो और आराम से सो जाओ।" जानकी ने संदली के सिर पर हाथ रखते हुए कहा।

अगले दिन सुबह कॉलेज जाते समय उसी पुरानी हंसती, खिलखिलाती, महकती संदली को देखकर जानकी अपने आप पर बहुत गर्व महसूस कर रही थी।


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