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Veena rani Sayal

Others

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Veena rani Sayal

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वो कौन

वो कौन

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छुक -छुक -छुक करती ट्रेन स्टेशन पर आ लगी। मैंने अपना बैग उठाया और अपनी सीट पर जा बैठा।मन में बहुत से सवाल उठ रहे थे,नई -नई नौकरी जो लगी थी।घर से दूर ,कैसा होगा नया शहर,नए लोग। सांझ ढल चुकी थी।अंधेरे ने अपनी चादर फैला कर उजाला समेट लिया था।सफर लंबा था। मैंने अपना टिफिन खोला,मां ने रास्ते के लिए खाना दिया था सो थोड़ा सा खाकर,किताब पढ़ने लगा।

रात्रि का प्रथम पहर था।रात के सन्नाटे को चीरती हुई ट्रेन मंजिल की और जा रही थी।यह क्या ---ट्रेन की गति कम हो गई थी,शायद कोई स्टेशन पर पहुंचने वाली थी।खिड़की से बाहर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।सोचा सिग्नल डाउन नहीं हुआ होगा। मैं अपनी सीट से उठकर दरवाजे तक आया ट्रेन रुकी हुई थी।यह क्या जैसे ही गाड़ी आगे जाने लगी,एक बूढ़ी औरत दरवाजे की ओर लपकी। मैंने सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाया,उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच कर ट्रेन से उतार लिया।मैंने कोई कोशिश नहीं कीकि अपना हाथ छुड़ा लूं। ऊबड़ -खाबड़ रास्तों से होते हुए वह मुझे एक घर के सामने ले गई।घर के बाहर एक दीपक जल रहा था।उसने दीपक के नीचे से चाबी निकल कर ताला खोला,लालटेन जलाई।

यह एक कमरे का घर था,एक ओर पुरानी सी खाट पर दरी और कम्बल रखा था,एक कोने में चूल्हा था,पास में दो मटके और कुछ बर्तन रखे हुए थे।उसने चूल्हा जलाया और खाना बनाने लगी।सारे रास्ते बस यही कहती आई थी,बेटा, तूझे भूख लगी होगी , तू प्यासा होगा।कोई बात नही,में तेरे लिए खाना बनाऊंगी।उसने दो रोटी बनाई,एक मुझे दी और दूसरी खुद खाने लगी।खाने के बाद उसने मुझेआराम करने को कहा।तेरी ट्रेन तो अब चार घंटे बाद आएगी मैं तुझे जगा दूंगी।जा सो जा।

   Part --2   रात का अंतिम पहर था।वो मुझे उसी रास्ते से वापिस ले आई।एक बेंच पर बैठने को बोल कर खुद कहीं अंधेरे में गुम हो गई।चारों ओर घना अंधेरा था। आस - पास कुछ भी नहीं था। मैं भीतर ही भीतर डर रहा था कि तभी मुझे थोड़ी दूरी पर रोशनी दिखाई दी सोचा वह वहां होगी।पास जाने पर देखा।लालटेन की रोशनी में एक बूढ़ा आदमी,जमीन पर नजरें लगाए कुछ ढूंढ रहा था। मैंने भीतर के डर को सहेज कर सोचा कि चलो कोई तो है इस वीराने में।शायद उसे मेरे होने का आभास हो गया था।उसने नजरें उठाकर मुझे देखा और बोला,"मिल आए उससे,खाना अच्छे से खाया,आराम किया ।"

मैं हैरान था कि इसे कैसे पता चला कि मैं किसी से मिल कर आया हूं।मैने भी हिम्मत जुटा कर कह दिया,हां मिल आया।पर अंदर ही अंदर किसी अनजाने भय से डर रहा था,आखिर पूछ लिया,"बाबा वो कौन थी?"

वह बूढ़ा अपना सिर खुजलाने लगा,मानो कुछ याद कर रहा हो।वो___वो__तो ! क्या बताऊं,कौन है वो? मैं उसके पास ही जमीन पर बैठ गया।वो बोलता रहा।  "यहां पास में ही एक छोटा सा गांव था। सुना था कि बहुत बरस पहले जब यहां पहली बार रेल की पटरी बिछी और फिर स्टेशन भी बना तो गाडियां यहां रुकने लगीं।यहां का स्टेशन मास्टर अपनी पत्नी और पांच साल के बेटे के साथ,स्टेशन के बगल में ही रहने लगा।उनके बेटे को नींद में चलने की बीमारी थी।एक रात वो नींद में ही घर से बाहर निकला और एक ट्रेन में बैठ कर ऐसा गया कि वापिस नहीं आया। मां -

 बाप ने बरसों उसका इंतजार किया पर वह नहीं आया। उस लड़के की मां हर रात को आने वाली ट्रेन का इंतजार करती कि आज उसका बेटा आयेगा, वह भूखा - प्यासा होगा ।वह बूढ़ा आदमी यह सब बता रहा था पर उसकी आवाज में छिपे दर्द का एहसास मुझे हो रहा था।कुछ रुक कर वह बोला,जाओ बेटा तुम्हारी ट्रेन आने वाली है,कुछ ही देर में यह अंधेरे की चादर भी छंट जायेगी।"

 तभी छुक - छुक करती एक ट्रेन मेरे पास आकर रुकी। मैं झटपट दरवाजे की ओर लपका।सीट पर बैठते ही मैने खिड़की से बाहर उस बूढ़े को हाथ हिलाकर ,बाय करने के लिए देखा।यह क्या- वहां तो कोई नहीं था।उसी पल किसी ने मेरे कन्धे पर हाथ रख मुझे झकझोर दिया।मैने पीछे मुड़ कर देखा पर मेरी आंखें नहीं खुल रही थीं।मैने अपनी हथेलियों से आंखें मली।यह किया --टी टी मुझे कह रहा था "उठ जाओ जनाब,आपको इसी स्टेशन पर उतरना है,आपकी मंजिल आ गई।"

मैंने अपना बैग उठाया और ट्रेन के दरवाजे के पास आ गया।सोचता रहा कि जो मैंने देखा और सुना क्या था? बाद में वहां के लोगों से पता चला तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं जिनसे मिला था वो बूढ़ा- बुढ़िया तो बरसों पहले इस दुनिया से अलविदा हो चुके थे।

   


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