विदेश-यात्रा
विदेश-यात्रा
बचपन मेरा गांव में बीता और विधार्थी जीवन आस-पास के जिलों में ..
शिक्षा पूर्ण होने के बाद कुछ दिन दिल्ली और उत्तर काशी तक गये तो थे मगर अपने रोजगार के सिलसिले में ।
जब हम इण्टरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे थे तो मेरे रिश्ते के नाना मेरा हाथ देखकर बोले थे चालीस वर्ष की आयु में विदेश की यात्रा लिखी है मेरे हाथ की लकीरों में ।और धन तो बहुत आयेगा..
आज पैसों का लालच किसको नहीं है । मैं भी पढ़ते समय से आज तक अपनी हाथ की लकीरों को देख-देखकर जी रहा हूँ ।
बात सिर्फ एक की नहीं थी । हमारे क्षेत्र के जाने माने ज्योतिषाचार्य को एकबार जब मैंने अपना हाथ दिखाया तो उन्होंने भी मुझे 2012 तक ही कहा था कि तुम्हें विदेश की यात्रा लिखी है । यहाँ तक कि मेरी पहली विदेश यात्रा अमेरिका का बताया था , रेखा क्या दिखाया उसने मुझे, मैं आज भी देखता हूँ वो जहाँ लकीर का A बना है मेरी हथेली में ।
मगर किस्मत मेरी जो अपने देश में भी कुछ नहीं कर सका विदेश क्या क्या कर पायेगी वह ।
मगर इधर दो साल की कड़ी मेहनत से जब मुझमे लेखन की इच्छा बढ़ी फिर वही पुरानी बातें मन को परेशान करती हैं । लालच भी रहती है दिल में हो ना हो नाना और उस ज्योतिष की बात सच हो जाये..!
दिल कहता है मगर मन रोक देता है क्योंकि उसे पता है इस दुनिया में बढ़ने के ज्यादतर दो ही रास्ते हैं - जुगाड़ और पैसा ! यह जिनके पास नहीं है वो अपनी सारी कलाओं और गुणों को लेकर मौत का इंतज़ार करे जो निश्चित है यहाँ।
क़िस्मत है कभी भी बदल जाती है । ये ही मन में भाव लेकर मैंने लेखन कार्य तेजी से शुरू किया है ।मगर राजनीति यहाँ हर जगह मिलेगी आपको देखने में ।अपना भला दुनिया चाहती है दूसरे को पीछे ढकेल कर लेकिन ईश्वर की सौगन्ध मुझ में ये बात नहीं है । हमें दुनिया से लेना ही क्या , क्या आश जगायें मन में जब वह बेचारे ख़ुद परेशान हैं ।
अब सिर्फ मैं अपने आप को पन्द्रह बीस साल का मेहमान मानता हूँ । चालीस तो निकल गये जैसे तैसे बाकी भगवान है मेरे साथ। उसकी भी तो कुछ जिम्मेदारी बनती है ,हमी कहाँ तक परेशान हों ।
भेजा है तो रास्ते भी दिखायेगा , कैसी चिंता - किसका डर ! बहुत होगा मर जायेंगे जो तय है।हो सकता है घूम ही लूँ बुढ़ापे में मगर यह सब तो मेरे पाठकों पर निर्भर है ।
अधूरी पहेली सी बनी हुई है मेरी इच्छा उस विदेश की यात्रा को लेकर......!
