वह वेरोनिका ही है(अंतिम भाग 6)
वह वेरोनिका ही है(अंतिम भाग 6)
अब तक आपने पढ़ा कि वेरोनिका अजीत को अपहरण के बाद से थाने से अपने घर ले आई और उसके साथ बैठे बैठे अपने अतीत में गुम होती रही। उसे चंदन का मिलना, आनंद का पैदा होना और चंदन का कैंसर से स्वर्गवास हो जाना याद आता रहा । चंदन की मौत की याद करके उसकी आंखों से गंगा जमुना निकली ।
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अजीत को उसके पास लेट कर वेरोनिका ने अपने सीने से लगा लिया और उसके बालों पर हाथ फिराते हुए सो गई।
अब वेरोनिका की जिंदगी सिर्फ अजीत के चारों ओर घूमने लगी थी। ऐसा महसूस होता था कि जैसे स्नेह और प्यार की प्यासी वेरोनिका के जीवन में यह बच्चा मरुस्थल की झील या नखलिस्तान बनकर आ गया था ।वेरोनिका अब दो से तीन बैच बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। उसे ताकि उसे यथोचित पैसा मिल जाए जिससे वह अजीत की देखरेख कर सकें, और जब अजीत स्कूल जाता तो उस समय वह आस-पास के गरीब बच्चों की फ्री क्लास लेती रहती थी।
अजीत का खाना, अजीत का पहनना ,अजीत का सोना, जागना अजीत का पढ़ना, अजीत का खेलना ।ऐसा लगता था शायद यही वेरोनिका की जिंदगी के सबसे अहम हिस्से हो गए थे।
अजीत धीरे-धीरे पढ़ाई में वेरोनिका की देखरेख में होशियार और ज्यादा होशियार होता चला गया। धीरे-धीरे बह क्लास में सबसे अधिक अंक लाने लगा। हर परीक्षा देता तो अजीत था, पर ऐसा लगता था जैसे कि हर परीक्षा सिर्फ वेरोनिका ही दे रही हो। वेरोनिका ने एक दिन अजीत से कहा "अजीत तुम मेरे बेटे ही नहीं, तुम मेरे शिष्य भी हो। गुरु होने के नाते और एक शिक्षक होने के नाते मेरा कर्तव्य है कि मैं तुम्हें शिक्षा के क्षेत्र में अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दूं। ओर तुम्हारा भी कर्तव्य है कि जो भी गुरु दें ,उसे पूरे सम्मान के साथ ग्रहण करो और अंगीकार करो।"
मां की तरफ देखते हुए अजीत ने कहा" मां आपका हर बात ,हर वाक्य ही मेरे लिए शिक्षा है। वही एक आदेश भी है। जिस पर अमल करना और चलना मेरा कर्तव्य है और उसमें कभी कोई कोताही नहीं होगी।"
अजीत कक्षा 10 में जब पहुंचा तो वेरोनिका उसके साथ पढ़ाई लिखाई में इस तरीके से जुड़ गई जैसे कक्षा 10 की परीक्षा न होकर उनके जीवन की यही अंतिम परीक्षा हो।
यद्यपि अजीत खेल कूद में भी हिस्सा लेता था पर अधिकांश समय वह वेरोनिका के साथ या फिर अपने आप बैठ कर छोटी-छोटी अनजानी कांसेप्ट को एक एक कर, सबको क्लियर करता रहता था।
बोर्ड की परीक्षा के दौरान पेपर को हल करने में यदि किसी भी विषय में उससे कोई छोटी सी भी गलती हो जाती थी, तो वेरोनिका को भी बहुत बुरा लगता था ।और अजीत को तो ऐसे लगता था जैसे उससे कोई बहुत बड़ा नुकसान हो गया हो।
एक-एक करके बोर्ड के सारे पेपर हो गए और तब जाकर अजीत 2 दिन के लिए पढ़ाई से सच्चे अर्थों में फ्री हो पाया।
वेरोनिका अजीत को लेकर मथुरा आगरा और फतेहपुर सीकरी का किला दिखाने के लिए 4 दिन के टूर पर चली गई।
इतने बरसों बाद अजीत और वेरोनिका पहली बार इतनी दूर घूमने निकले थे। अब अजीत बड़ा हो चुका था। वेरोनिका का एक अच्छे बेटे की तरह ज्यादा ही ख्याल रखने लगा था।
ढेर सारी मस्ती करने के बाद वे लोग द्वारकाधीश के मंदिर पहुंचे वहां वेरोनिका ने अजीत के लिए जीवन में सुखी होने के लिए और अच्छी पढ़ाई करने के लिए दुआएं मांगी।
अजीत ने भगवान से अपनी मां की दीर्घायु और स्वास्थ्य की कामना की।
बोर्ड का रिजल्ट आया। अजीत पूरे मध्यप्रदेश में दूसरे स्थान पर था ।वेरोनिका जहां खुशी से पागल हुई जा रही थी ,अजीत वही अपनी कम मेहनत को लेकर उदास बैठा आंखों से आंसू बहा रहा था।
वेरोनिका भगवान के प्रसाद की मिठाई लेकर अजीत के पास आई और उसे अपने गले से लगा कर बधाई देकर मिठाई खिलाई तो रोते हुए अजीत ने कहा "मां! मैं आपका सपना पूरा नहीं कर पाया!! मैं पहली रैंक पर नहीं आ पाया मुझे क्षमा कर दो।"
वेरोनिका ने कहा" बेटा मेरा सपना तो सिर्फ तुम्हारी पढ़ाई था ,जिसे तुमने बखूबी कर दिखाया। इसके अलावा मुझे और तुमसे और कोई अपेक्षा नहीं है ।बस पूरे जी-जान से मेहनत कर हमेशा इमानदारी से पढ़ाई करते रहो मेरी बस यही कामना है।"
इसी तरीके से समय गुजरता रहा। कक्षा 11 में कोई भी बच्चा अजीत के आसपास के भी नंबर नहीं ला पाया था।
अजीत अजीत अब कक्षा 12 में आ गया । अब एक बार फिर बोर्ड परीक्षा का भूत अजीत के सिर पर चढ़कर बोलने लगा ।
विद्यालय का वार्षिकोत्सव करीब था अजीत को भी स्टेज डिबेट में भाग लेना था तथा एक नाटक में भाग लेना था पर अजीत ने पढ़ाई के कारण इन में भाग लेने से मना कर दिया । स्कूल के प्राचार्य ने यह बात वेरोनिका को बताई। वेरोनिका ने अजीत से कहा "सिर्फ पढ़ाई में आगे होने से कोई व्यक्ति बड़ा नहीं हो सकता ।हर व्यक्ति का सर्वांगीण विकास बहुत जरूरी है। तुम्हें खेलकूद पढ़ाई और आत्मिक विकास साथ साथ करना ही होगा।"
मां की आज्ञा मानकर अजीत डिबेट और नाटक भाग लिया जिसे सभी लोगों द्वारा सराहा गया । अजीत को डिबेट में प्रथम और नाटक में दित्तीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।
इसी बीच दिसंबर माह में वेरोनिका को पैरालिसिस हो गया। रात को सोने के बाद वेरोनिका जब
सुबह उठना चाहती थी तो वह उठ ही नहीं पाई।उससे से ढंग से बोलते भी नहीं बन रहा था। उसका बाया अंग काम ही नहीं कर रहा था
अजीत तुरंत वेरोनिका को ऑटो रिक्शा में डालकर अस्पताल ले गया ।डॉक्टर ने वेरोनिका को एक इंजेक्शन दिया और अजीत से कहा" बेटा आप इन्हे समय पर हस्पताल ले आए इस कारण यह ठीक हो जाएंगी और पहले की तरह चल फिर भी पाएंगी। पर इसमें लगभग 2 माह का समय लग सकता है। उनका पूरा ध्यान रखना पड़ेगा ।
अजीत अब मां को भी संभालता था और अपनी पढ़ाई भी करता था। वार्षिक बोर्ड परीक्षाएं सिर पर थीं। वेरोनिका अजीत की हालत पर बहुत चिंता करती थी
वह अजीत से अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान देने की बात करती रहती थी।
धीरे धीरे कुछ ही सप्ताहों में ओनिका की हालत में काफी सुधार हो गया।
अब बोर्ड की परीक्षा के लिए सिर्फ बाइस दिन ही शेष थे। अजीत ने पूरे मन से पढ़ाई की और परीक्षा की तैयारी हो भी गई।
बोर्ड के पेपर शुरू हो गए अजीत हर पेपर में अपनी छमता के अनुसार प्रश्नों के उत्तर लिखता रहा।
जब परीक्षा परिणाम आया तो कक्षा 12 में मध्य प्रदेश बोर्ड में अजीत टॉपर रहा।
रिजल्ट निकलने पर वह दौड़ा दौड़ा आया ।वेरोनिका को उसने अपनी बाहों में उठा लिया और बोला" मां आज मैंने आपका सारा सपना सच कर दिया ।आज मैं पूरे मध्यप्रदेश में बोर्ड के एग्जाम में आपके आशीर्वाद से सबसे अधिक अंक लेकर आया हूं। आपने मेरे लिए जो कुछ किया है यह उसकी तुलना में सिर्फ आपके चरणों की धूल के बराबर है अब तो आप खुश है ना मां।"
रोते हुए वेरोनिका ने कहा "हां बेटा। आज मैं बहुत खुश हूं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे जो ईश्वर मुझसे हमेशा मुझसे मेरी सबसे कीमती चीज छीनता ही रहा था, आज पहली बार उसने मुझे वह सब दे दिया जो मैंने मांगा था।
आगे की पढ़ाई के लिए अजीत ने पहले ही निश्चय कर लिया था कि सबसे कम पैसों में होने वाली पढ़ाई करेगा।और स्कॉलरशिप के साथ वह BA ऑनर्स ही करेगा। इससे वह अपनी मां के पास भी रह पाएगा और उनकी देखभाल भी कर पाएगा । अच्छी तरीके से पढ़ाई करके आईएएस की तैयारी भी साथ ही साथ करता रहेगा।
उसने वही किया भी ।प्रतिवर्ष वह छोटी से छोटी कांसेप्ट को भी बहुत अच्छे तरीके से समझता रहा तथा छोटे-छोटे प्रोजेक्ट बना कर मैं अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों की भी पढ़ाई में मदद करता रहा ।और परिणाम वही हुआ जिसकी अपेक्षा थी।
B.A. में भोपाल यूनिवर्सिटी का टॉपर अजीत अंकसूची लेकर अपनी मां के सामने खड़ा था।
आज वेरोनिका का मन फूला नहीं समा रहा था। वह भोजपुर भगवान भोलेनाथ के मंदिर अपने बेटे के साथ गई और बेटे की उज्जवल भविष्य की और दीर्घायु की कामना की। पर अजीत ने भगवान से सिर्फ यही मांगा कि मेरी मां के जो भी सपने हैं वे सभी पूरे हो। बस मेरी मां हमेशा खुश रहे।
अजीत ने इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस के लिए ने फार्म भर दिया था और उसकी तैयारी तो वह पिछले 3 सालों से कर ही रहा था। लगातार प्रयत्न से उसकी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी बड़ी अच्छी तरीके से हो रही थी।
IAS के प्रिलेमिनरी एग्जाम में तथा मुख्य परीक्षा में उसका प्रतिशत बहुत अच्छा रहा। तथा अंत में वह दिन आ गया।
जब उसका इंटरव्यू होना था।
वह अपनी मां का आशीर्वाद लेकर और वेरोनिका की तरह भगवान भोलेनाथ की भभूति माथे पर लगा कर हाफ सफेद शर्ट और नीला पेंट पहन का कर इंटरव्यू देने गया ।इंटरव्यू यूपीएससी ऑफिस दिल्ली में था
जब उसका नंबर आया तो उसके साधारण कपड़े और चेहरे पर तेज इंटरव्यू लेने वाले सदस्यों को बहुत प्रभावित कर गए।
उससे सभी सदस्यों ने अनेक प्रश्न पूछे और हर एक प्रश्न का जवाब इस तरीके से देता रहा जैसे कक्षा में योग्यतम प्रोफ़ेसर से बच्चे क्वेश्चन पूछ रहे हो और प्रोफेसर उनके जवाब बच्चों को समझा समझा कर दे रहा हो।
अंत में चयन समिति के चेयरमैन ने उससे प्रश्न पूछा "आपका कक्षा दस , बारह और बीए में हर जगह सर्वश्रेष्ठ परिणाम है फिर आप IAS ही क्यों बनना चाहते हैं?"
मुस्कुराते हुए अचानक ही अजीत गंभीर हो गया । उसकी आंखों में थोड़ी सी नमी उतर आई और भरे गले से वह बोला "सर मैं एक अनाथ बच्चा हूं मेरे मां बाप बचपन में ही मर गए थे। मेरी जिस मां ने मेरा पालन पोषण किया, मेरी खातिर आपकी जान खतरे में डाल दी और मुझे नया जीवन दिया।उसने, जब मैं कक्षा 5 में था तब एक बार मुझ से कहा था "इतना कम पढ़ कर तुम कैसे कलेक्टर बनोगे? लगता है तुम मेरे सपने पूरे नहीं कर पाओगे ।"
बस उसी दिन से मैंने जीवन का एक ही उद्देश्य बना लिया था कि जैसे भी हो मुझे मेरी मां का यह सपना जरूर पूरा करना है। बस उसी के लिए मैं दिन-रात लगा रहा ।कक्षा 10 कक्षा 12 ,BA, यह सब उसके छोटे-छोटे पड़ाव थे। पर उनको मैंने अपनी मां के सपनों के अनुरूप ही उन्हें ढाला और मैंने ना तो डाक्टरी की तरफ रुझान किया और ना ही इंजीनियरी की तरफ। सिर्फ मां के सपने को पूरा करने के लिए ही मैंने सिर्फ, सिर्फ और सिर्फ आईएएस की तैयारी की। आज आपके सामने मैं जो भी प्रदर्शन करना चाहता हूं और कर रहा हूं ,उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य है। मां के सपनों में ,मैं वही रंग भर दूं जो उनकी इच्छा है।"
चेयरमैन अपनी सीट से खड़े हो गए और शायद ऐसा कभी भी नहीं होता कि कोई चेयरमैन किसी कैंडिडेट की पीठ थपथपाये।पर ऐसा शायद आईएएस साक्षात्कार के इतिहास में पहली और अंतिम बार हुआ की चेयरमैन ने अपनी सीट से उठ कर अजीत की पीठ थपथपाई।
जब यूपीएससी का रिजल्ट आया। एग्जामिनेशन और इंटरव्यू में मिलाकर अजीत को सर्वाधिक अंक प्राप्त हुए और उसने आईएस की परीक्षा में भी टॉप किया।
वेरोनिका की खुशी का आज कोई ठिकाना नहीं था। वह फिर भोजपुर भोलेनाथ के मंदिर में अपने बेटे के साथ गई और भगवान को हृदय से धन्यवाद दिया।
अब उसका बेटा अजीत आईएएस ऑफिसर था ।
समय यूं ही भी तरह बीतता रहा एक दिन अजीत बोला मां मैं एक बार जाकर आनंद से मिलना चाहता हूं आप मेरे साथ चलोगी। वेरोनिका के मन में भी अपने बेटे को देखने की बहुत इच्छा थी। वह अजीत को लेकर बेंगलुरु में आनंद के घर पहुंच गई।
आनंद अपनी मां को देखकर बहुत खुश हुआ। पर उसे अपने पुराने कर्मों को याद करके बड़ी ग्लानि हो रही थी। अजीत बोला "भैया ईश्वर ने जो भी आप से करवाया शायद उसकी यही एक इच्छा थी। यदि मां भोपाल नहीं आई होती तो मुझे कौन पालता। मुझे मां का प्यार कहां मिलता । यह मेरा भाग्य था कि आपने मां को भोपाल जाने के लिए विवश कर दिया। उसके लिए मैं आपका हमेशा आभारी रहूंगा ।
आनंद की आंखों में पश्चाताप के आंसू भरे हुए थे।
