Ekta Rishabh

Children Stories

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Ekta Rishabh

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वादा, एक माँ का !

वादा, एक माँ का !

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ये कहानी है तितली की.., मेरी तितली की।


"जिसे रंग पसंद है, फूल पसंद है और पसंद है ढेर सारी तितलियाँ...।"

"बहुत प्यारी है मेरी तितली नीली ऑंखें, रेशमी बाल, गुलाबी होंठ, सबसे सुन्दर, सबसे प्यारी और सबसे अलग, हाँ सबसे अलग है मेरी प्यारी तितली।"

ये तब आयी थी मेरे जीवन में जब कोई उम्मीद ही नहीं थी माँ बनने की, शादी के दस सालों बाद एक दिन एक आहट हुई और और मेरी जिन्दगी में खुशियाँ बन तुम आ गई।


दो महीने की हुई थी तू, एक दोपहर तुझे सुला कुछ काम करने लगी और हाथों से पीतल का गुलदस्ता छूट के गिर पड़ा। मैं डर गई थी की तुम कहीं डर के रोने ना लग जाओ लेकिन घोर आश्चर्य में पड़ गई मैं, रोना तो दूर तुम्हारी तो नींद भी नहीं टूटी। ऐसा कैसे हो सकता था? इतनी तेज़ आवाज और तुम्हारी नींद भी ना टूटी। फिर क्या था पूरे दिन मैं बस भाग भाग के कभी दरवाजा पीटती तो कभी कटोरी चम्मच बजाती रही, लेकिन तुमने एक बार पलट के नहीं देखा ना डरी और ना ही रोई।


दृश्य साफ था मेरे आँखों के सामने, मेरे दिल का हाल क्या था उस वक़्त ये शायद शब्दों में बयां करना मेरे लिये संभव ना हो। मैं और तुम्हारे पापा डॉक्टर से मिले सब टेस्ट हुए जो डर था वही हुआ तुम ना बोल सकती थी ना ही सुन। माँ का दिल था जो सच देख के भी सच से मुँह मोड़ रहा था, फिर दूसरे और ना जाने कितने डॉक्टर और हॉस्पिटल के चक्कर काटे हमने लेकिन जो सच था वो तो सच था। टूट गई मैं और तुम्हारे पापा झूठ नहीं कहूँगी हफ्तों लग गए इस बात को समझने में और खुद को संभालने में लेकिन तुम्हारी मुस्कुराहट ने हमें हौसला दिया।

कैसे संभालेंगे तुम्हें?  कैसे समझेंगे अपनी बच्ची की बातों को उसकी भावनाओं को?

रातों को नींद ना आती। तुम बड़ी हो रही थी और यकीन मानो ऐसा एक दिन नहीं था ऐसा एक पल नहीं था जब मैंने तुम्हारे इशारों को समझा नहीं।

हाँ ! तुम्हारी तोतली बोली में माँ सुनने को ये कान जरूर तरसते है, तुम्हारे शोर से ये घर नहीं गूँजता, लेकिन तेरी प्यारी सी मुस्कान उन ग़मों को भी छिपा देती है।


तुम्हारा स्कूल शुरू हुआ स्पेशल बच्चों का स्कूल तुम्हें अलग तरीके से पढ़ाया जाता और मुझे भी कई बातें सिखाई जाती। वहाँ की टीचर्स जब तुम्हारी तारीफ करते आँखों की नमी नहीं छिपा पाती मैं। तुम्हारी बनाई पेंटिंग से हमारे घर का कोना कोना सजा है। जब बहुत छोटी थी मेरे साथ पार्क जाती और वहाँ रंग बिरंगी तितलियाँ देख ऐसे चहकती जैसे बरसों की जान पहचान हो और तुम्हारा नाम हमने तितली रख दिया।

आज मेरी तितली दस साल की है स्कूल जाती है ढेरों दोस्त बनाती है, हँसती है, खिलखिलाती है मुझे अपने आगे पीछे खूब भगाती है।

घंटों अपने रंगों की दुनिया में खोई रहती है।

तेरे चेहरे पे आये हर भाव को जानती हूँ, तेरी अनकही हर बातों को सुनती हूँ मैं। शब्दों की जरूरत ही नहीं हम दोनों के बीच।

ऐसी कोई बात ही नहीं, ऐसी कोई भावना ही नहीं जो तू मुझे समझा ना सके और मैं समझ ना सकूँ।


कभी कभी सोचती हूँ तू बोलती तो कैसे बोलती? कैसी आवाज होती तेरी? क्या कह के मुझे बुलाती मम्मी या मम्मा...नहीं नहीं मुझे माँ ही बुलाती तू, माँ ही तो बनी मैं जब तू आयी मेरी जिन्दगी में। किसी मायने में तू किसी दूसरे बच्चे से कम नहीं।

"मेरी बच्ची तुझे मैं इतना काबिल बनाऊंगी की तेरी इन कमियों के तरफ किसी जा ध्यान जा भी ना पायेगा।

जीवन के हर कदम पर जब भी तू पीछे पलट के देखेगी तेरी माँ वही तेरे पीछे खड़ी मिलेगी।"

" ये वादा है एक माँ का अपनी बेटी से अपनी तितली से...।"



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