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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Children Stories Inspirational

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Children Stories Inspirational

उस दिन का अप्रैल फूल डे

उस दिन का अप्रैल फूल डे

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एक दिन मेरी पोती मेरे पास आई बोली दादी जी ये अप्रैलफूल डे क्या है हम क्यों मनाते हैं? किसी को उल्लू(मूर्खतापूर्ण ) बनाना तो गलत बात है ।दूसरी बात अपना भारतीय नवसंवत्सर भी अप्रैल में होता है कभी-कभी तो 1अप्रैल को ही होता है। बिल्कुल सही कहा बेटा !ये भी एक सोची समझी नीति के तहत गुलामी की मानसिकता है ताकि हमारा ध्यान नववर्ष से हट जाये ।चलो आज मैं अपने बचपन का एक संस्मरण सुनाती हूं ।


उसकी बात सुनकर मेरे सामने अपने स्कूल के दिनों का घटनाक्रम साकार हो गया,जिसे पोती के साथ-साथ आप सभी से साझा कर रही हूं। मेरी कक्षा मे 2 लडकियां थी पामेला और ऐना। वैसे तो नाम अनामिका था पर उसे ऐना अधिक पसन्द था( दोनो नाम काल्पनिक है ) दोनो मे बहुत अधिक बनती थी।


वैसे तो दोनों पढ़ने में होशियार, एकाग्र ,सबसे बड़ी खासियत मिलनसार और खुशमिजाज थी ।स्कूल की प्रत्येक गतिविधि व कार्यक्रम में सोत्साह पूर्वक भाग लेती थी पर कभी-कभी उनका पाश्चात्य प्रेम आड़े आ जाता उनका भी क्या दोष उन दोनों के पर बाबा को अंग्रेजों के जमाने में रायबहादुर की पदवी से नवाजा जो गया था उनकी पारिवारिक निकटता का कारण शायद यही रहा हो जो अब तीसरी पीढ़ी तक दोस्ती अक्षुण्ण थी ।


कभी दोनों आपस में बोलती, यह गरीबों के घर तो मखमल में टाट का पैबंद है ।अपने यहां के लोग भारतीय तो गंवार असभ्य अंधविश्वासी बेअक्ल व जाहिल होते हैं मैं उनकी बातें सुनती पर कोई सटीक जवाब ना सूझ पडता ।


मैं उनका विरोध करना या नीचा दिखाना नहीं चाहती थी बस उनको यह अहसास कराना चाहती थी कि यह हमारी स्वयं की मानसिकता है कि हम स्वतंत्र होने के बाद भी अंग्रेजी सभ्यताओं के गुलाम और पक्षधर है हमारे पहनावे खानपान में क्या बुराई है अपनी जलवायु देश के अनुकूल है भाषा तो अपना गौरव और निज अभिमान की बात होती है ।


संस्कृत तो सभी भाषाओं की जननी है। अपना तो गौरव गरिमा पूर्ण इतिहास रहा है नालंदा ,शांतिनिकेतन, तक्षशिला जोकि 2700 वर्ष पहले निर्मित किया गया था विक्रमशिला ,वल्लभी व पुष्पगिरि आदि विश्वविद्यालय थे फिर हम कैसे अनपढ़ जाहिल हमी ने तो दुनिया को पढ़ना लिखना सिखाया ।


एक दिन मैंने अपनी प्रिय सखी सुनंदा के साथ प्लान बनाया संयोग से उस साल भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 1 अप्रैल को थी ।हम दोनों ने अपनी कक्षा के और भी 15 -20 बच्चों को बुलाया सुनंदा के घर के पिछवाड़े की छोटी सी बगिया में नव संवत्सर के आगमन की खुशी में अग्रिम पूर्व संध्या कार्यक्रम रखा उसको जगह-जगह प्राकृतिक पुष्पों फलों पत्तियों से सजाया।


सभी को मां के हाथों की बनाई मिठाई नमकीन के जलपान की व्यवस्था की दादी के हाथों बनी ठंडाई के भी स्वाद का आयोजन रखा।

हमारे बड़े भाई बहनों ने भी सहयोग किया इस अवसर पर मेरे और सुनंदा के माता-पिता बाबा दादी जी पड़ोसी भी सम्मिलित हुए हमने पामेला और एना को भी बुलाया था यह 2 दिन का प्रोग्राम था इसमें अंताक्षरी अपने क्षेत्रीय नृत्य वाद-विवाद प्रतियोगिता कविता गायन भी हुआ।


हमने बगिया को केलों अमिया इमली झरबेरी और मकोय बेर जैसी बहुत सी खाने पीने की चीजों से सजाया था यह सलाह मेरे दादाजी ने एक संदेश के तौर पर दी थी हम गुब्बारे या पतंगी कागज का प्रयोग नहीं करेंगे ताकि कचरा नहीं फैले और पर्यावरण स्वच्छ रहे हमने आम्रपत्रो अशोक पत्रो को झंडियां बनाने में प्रयोग किया। बबूल की फलियों से भी सजावट की। केले अमियों को उछल उछल कर तोड़ तोड़ कर खाया ।


अंत में बाबा जी ने अपने आने वाले संवत्सर के बारे में बताया पेड़ पौधों का महत्व समझाया प्रत्येक चीज जीवन में उपयोगी है नष्ट ना करें अपने देश के गौरवमय इतिहास के बारे में बताया सबको बहुत ही आनंद आया ।


     बाबा जी ने सबको तुलसी का पौधा और अन्य पौधों को भेंट स्वरूप दिया ताकि सबको बागवानी के प्रति लगाव हो साथ ही बाबा जी ने सबको कल प्रातः सूर्योदय में प्रार्थना व हवन के लिए आमंत्रित किया।


     मजे की बात यह रही मेरे किसी पड़ोसी ने जो मेरी कक्षा अध्यापिका की पहचान वाली थी उनको भी बुला लिया था मेरी कक्षा अध्यापिका और अंग्रेजी अध्यापिका दोनों साथ में रहती थी वह भी आई उनको भी यह कार्यक्रम बहुत अच्छा लगा बोली ऐसे कार्यक्रम हर मोहल्ले में हो तो हमारे बच्चे अपने परंपरागत इतिहास गौरव को जान सकेंगे ।

      अचानक ,मेरी अध्यापिकाओ को घर वापसी में ऐना व उसकी बहन मिल गई दोनों ने नमस्ते कर पूंछा दीदी आप इस समय कहां से आ रही हैं ??

उन्होंने बताया सुनंदा के घर में छोटा सा कार्यक्रम था दीदी की बात पूरी भी नहीं हुई थी , ऐना ने चौकते हुए पूछा !क्या कोई ऐसा कार्यक्रम वास्तव में था वह तो हमें भी बुलाया था हम तो अप्रैल फूल डे सोचकर नहीं गए थे ??

      अब दीदी ने बताया कार्यक्रम तो बहुत ही अच्छा आनंद पूर्ण था तुम दोनों को भी मजा आता और तुम दोनों तो वैसे भी बिना बनाए ही अप्रैल फूल (उल्लू )बन गईं। हो सके तो कल सूर्योदय के कार्यक्रम में पहुंच जाना।

ओ मेरी दादी जी ये तो बहुत अच्छी कहानी रही ।अच्छा अब सो जाओ।

          



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