तुरूप का इक्का
तुरूप का इक्का


विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेष
फोटोग्राफर। किसी भी घटना की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए फोटोग्राफ अहम भूमिका निभाते है। सूचनाओं के आदान-प्रदान में उपलब्ध जानकारी के साथ एक फोटोग्राफ साथ में हो तो बात ही क्या। हजारों सबूत और सैकड़ों गवाहों पर एक फोटोग्राफ भारी पड़ता है। अगर मीडिया संस्थानों की बात की जाए तो वहां पर फोटोग्राफ की भूमिका का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। हर खबर के साथ फोटोग्राफ। खबर चाहे कितनी भी बड़ी, कैसी भी हो, फोटोग्राफ के बिना अधूरी सी लगती है। कई रिपोर्टरों के बीच चक्करघिन्नी बना फोटोग्राफर हरेक की जरूरत को पूरा करते-करते अपनी खुद की जरूरत ही भूल जाता है। हां यह अलग बात है कि फोटोग्राफर को अपनी सत्यता बताने के लिए किसी सबूत या गवाह की आवश्यकता नहीं होती, उसके फोटोग्राफ ही उसके दिन भर का हाल बयां कर देते है। किसी भी रिपोर्टर को अपनी न्यूज की सत्यता साबित करने के लिए फोटोग्राफर की आवश्यकता होती है। दिन भर कंधे पर बैग टांगे अपने आकाओं का हुकूम बजाने के साथ ही यहां-वहां हर घटना को अपने कैमरे में कैद करने के बाद निश्चित समय पर सेंटाक्लॉज की भांति हरेक रिपोर्टर को मनचाहा फोटोग्राफ उपलब्घ कराने वाले फोटोग्राफर को तुरूप का इक्का कहा जा सकता है। जबकि वास्तव में यह तुरूप का इक्का अपने बादशाह का गुलाम होता है। हमेशा बुरे वक्त को अच्छे में बदलने के लिए यही इक्का काम आता है। जब कभी समाचार पत्रों में न्यूज के निर्धारित स्पेस में शब्दों का अकाल पड़ता है, तब ऐसे में फोटोग्राफ और फोटोग्राफर की अहमियत को समझना बहुत आसान है।