"तुम्हारा प्यार"
"तुम्हारा प्यार"
अपने सर की ओर देखकर।
कितने दिनों में मेरे बाल फिर से निकल आएंगे। सीसे के सामने खड़ी नूतन प्रदीप से पूछती है।
" कीमोथैरपी के बाद कम से कम २० से २५ दिन तो लग ही जायेंगे शायद...
लंबी गहरी सांस भरते हुए प्रदीप बोला।
लेकिन तुम क्यों परेशान हो,
बाल है आने तो हैं ही आज नहीं तो कल।
वैसे तुम बिना बालों के भी बहुत हसीन दिखती हो।
प्रदीप ने माहौल को थोड़ा हल्का करते हुए कहा।
तुम को तो हर वक्त मजाक ही सूझता है और मैं इसी गम में मरी जा रही हूं कि बिना बालों के मैं अजीब लग रही हूं..
लंबी गहरी सांस लेते हुए निराश नूतन बोली।
ओह..! तुम तो नाहक ही परेशान हो रही।
सब ठीक हो जायेगा। चिंता मत करो।
हां सब ठीक हो ही जायेगा कभी ना कभी....
नूतन अपनी गिरती सेहत को देख रूआंसा से हो गई।
प्रदीप अखबार को किनारे रखते हुए नूतन को बांहों में भर कर बोला मैं हूं ना चिंता नहीं करना।
ऊपर वाले पर मुझे पूरा विश्वास है, तुम्हें भी करना होगा।
अच्छा प्रदीप कल अगर मैं न रही तो...?
एक अजीब सवाल नूतन ने प्रदीप से पूछा।
तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? तुम्हारे बिना जीवन जीने की कल्पना करना मुश्किल है और ऐसे सवाल मेरे लिए असंभव से लगते है। तुम हो तो मैं हूं वरना ये जीवन बस ऐसे ही है, जैसे "बिना पानी के मछली।"
अब ये दवाइयां खा लो और थोड़ा आराम कर लो, ऐसे उल्टी पुलटी बातें सोचोगी तो तुम और बीमार पड़ जाओगी।
प्रदीप जानता था कि जिस कैंसर से नूतन जूझ रही है वो ठीक नहीं होने वाली पर ऐसे भी उसे मरने नहीं दे सकता, चाहे कितना भी पैसा खर्च हो जाए उसे अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाऊंगा। बड़े से बड़े हॉस्पिटल में इलाज कराऊंगा और जरूरत पड़ी तो इलाज के लिए विदेश भी ले जाऊंगा।
गहरी सोच में डूबे प्रदीप ने आंखों में छिपे आंसुओं को पोंछते हुए अपना बैग लिया और कार स्टार्ट करते हुए ऑफिस की ओर चल पड़ा।
ऐसे ही दिन निकलते रहे और नूतन की हालत दिन प्रति दिन बिगड़ती जा रही थी। अब उसका बिस्तर से उठना भी मुश्किल हो गया।
उसे खाना पीना, नहलाना, कपड़े पहनाना आदि सब काम प्रदीप ही कर रहा था तो नूतन को बड़ा अफसोस होता कि अगर वो ठीक होती तो ये दिन नहीं देखने पड़ते, प्रदीप को मेरे लिए इतने कष्ट नहीं झेलने पड़ते, पर वो करे भी तो क्या नियति से मजबूर है....!!!
एक शाम नूतन बिस्तर पर लेटे लेटे शादी की फोटोज देख कर भावुक हो गई। उसे अपनी शादी के हर लम्हें की याद उसकी आंखों में घूमने लगे।
मुझे इसमें से एक अच्छी सी फोटो को बड़े फ्रेम में करवाना है, क्या तुम करवा दोगे उसने प्रदीप से पूछा..?
हां करवा दूंगा लेकिन तुम्हें इतनी जल्दी क्या सूझा, प्रदीप ने नूतन से पूछा।
बस सोचती हूं समय रहते जरूरी काम करवा लूं क्या पता जीवन की अंतिम सांस कब छूट जाए...!!
और फिर मेरे नहीं रहने पर तुम कहीं मुझे भूल जाओ या कभी तुम्हें मेरी याद आए तो कम से कम मेरी तस्वीर को देखकर तुम्हारा दिल हल्का हो सके इसलिए...!
प्रदीप ने उसे गले लगा दिया, उसके सिवाय इसके हाथ में कुछ था भी नहीं...!
आज दो महीने बाद जब नूतन इस दुनिया से रुखसत हो कर चली गई। उसकी बड़ी सी तस्वीर जो उसने खुद पसंद की थी दीवार के बीचों बीच टंगी है और प्रदीप उसे एक टक देखकर बस यही कहे जा रहा है कि "मैं नहीं जानता मुझे भी कब तक तुम्हारे बिना इस जीवन में जीना है लेकिन मेरी आखिर सांस तक तुम मेरी यादों में रहोगी।"
"तुम्हारा प्यार".....!!!
हमेशा मेरे साथ मेरे इस दिल में खुशबू की तरह अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रहेगी।
तुम जहां रहो खुश रहना।
इस जीवन में मेरा तुम्हारा साथ बेशक इतना ही था पर उस जहां में ये सदा सदा साथ रहेगा।
मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूं....!
"आज हम हैं कल हमारी यादें रहेंगी
जब हम ना होंगे तब हमारी बातें रहेंगी
कभी पलटोगे ज़िन्दगी के ये हसीं पन्ने,
तब शायद आप की आंखों में भी बरसातें रहेंगी।"