Deepak Kaushik

Others

5.0  

Deepak Kaushik

Others

तुम पशु नहीं हो

तुम पशु नहीं हो

2 mins
356


बात पुरानी है। समझें तो कहानी है। समझें तो संस्मरण। घटना तब की है जब देश में दूरदर्शन एकमात्र चैनल हुआ करता था। प्रत्येक रविवार दूरदर्शन एक फिल्म दिखाता था। उस दिन रविवार था और मैं दूरदर्शन पर प्रसारित फिल्म देख रहा था। अचानक मुझे घर के मुख्य द्वार, जो लोहे का था, पर पत्थर फेंके जाने की आवाज सुनाई देने लगी। कमरे के दरवाजे पर टंगे पर्दे से झांककर देखा तो बाहर मुख्य द्वार के किनारे बने ‌‌‌‌‌‌‌‌स्तंभ पर एक बंदर बैठा दिखाई दिया। पत्थर उसी को लक्ष्य करके आ रहे थे। मैं कमरे से बाहर निकल आया। मुख्य द्वार पर आकर देखा, कुछ बच्चे बंदर को पत्थर मार रहे थे। मैंने बच्चों को डांटा-

"उसे पत्थर क्यों मार रहे हो? मैं भी मारूं तुम लोगों को पत्थर?"

मेरी डांट सुनकर बच्चे भाग खड़े हुए। अब मैंने बंदर की तरफ ध्यान दिया। बंदर मध्य वय का था। न पूर्ण युवा, न बच्चा। किशोर वय का। मैंने उसकी पीठ सहलायी। अब बंदर तो बंदर। उसने तत्काल अपने दांत दिखाकर घुड़की दी। मैंने झट से अपने हाथ पीछे खींच लिए और वापस आकर फिल्म देखने लगा। अभी मुश्किल से दस मिनट भी नहीं बीते थे कि वो बंदर स्तंभ से नीचे उतरा और बड़े इत्मीनान से चलता हुआ कमरे में आया। उसे अपनी ओर आते देख मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि देखें यह क्या करता है। बंदर आया और मेरी गोद में चढ़ कर बैठ गया। अब मैंने उसकी पीठ भी सहलाई, सिर पर भी हाथ फेरा। इस बार उसने कोई विरोध नहीं दर्शाया। कुछ ही देर वो मेरी गोद में बैठा था कि मुख्य द्वार पर खटखटाहट सुनकर बाहर आया। एक युवक, जो लगभग मेरी ही वय का था, मुख्य द्वार पर था। वो बंदर अभी भी मेरी गोद में था। मुझे देख युवक बोला-

"ये मेरा पालतू बंदर है। इसे मुझे दे दीजिए।"

"तुम्हारा पालतू है तो यहां कैसे आ गया। पता है यहां इसे बच्चे पत्थर मार रहे थे।"

"आज न जाने कैसे खुला रह गया और इधर भाग आया है।"

"खैर! तुम्हारा है तो तुम इसे ले जाओ।"

मैंने उसे गोद से उतार कर युवक को देने की कोशिश की। लेकिन बंदर एकदम से मुझसे चिपट गया। वो मेरी गोद से उतरने को तैयार ही नही था। किसी तरह उसे उसके मालिक को देने के बाद मैं वापस फिल्म देखने लगा। परंतु अब मेरा मन फिल्म में नहीं रम रहा था। बार बार मेरे मन में यही बात आ रही थी कि ईश्वर ने पशुओं में भी कितनी गज़ब की समझ दी हुई है। उन्हें अपने शत्रु और मित्र का भान कितनी जल्दी हो जाता है। शायद हम मनुष्यों से बहुत जल्दी।



Rate this content
Log in