टीचर्स डे
टीचर्स डे
अपने छात्र जीवन में मैंने सोलह बार शिक्षक दिवस मनाया है और शिक्षक बनने के बाद बत्तीस बार । कुल मिलाकर 48 बार शिक्षक दिवस मनाया है मगर इन तमाम सालों में एक साल का शिक्षक दिवस मुझे सबसे अधिक याद है । सन् 1976/77 की बात है । मैं मुजफ्फरपुर में चैपमैन गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ती थी आठवीं कक्षा में । मेरी सहेली नसीमा परबीन थी जिसके पापा जिला हाई स्कूल में प्रिंसिपल थें । उन्होंने शाम के वक्त एक कोचिंग क्लास शुरू किया था । सिर्फ उन बच्चों के लिए जिनकी पढ़ाई किसी भी कारण से पिछड़ गई थी और जो आर्थिक रूप से असमर्थ थे अलग से ट्यूशन लेने के लिए । एक तरह से यह समाज सेवा अभियान था । मैं एक ऐसे परिवार से आती हूं जहां समाज सेवा पूजा माना जाता है । इसलिए मैंने भी इस शिक्षा दान अभियान में अपनी हिस्सेदारी दर्ज करवाई । हर रोज अपने खेलने के समय पर जिला स्कूल के पिछले हिस्से में जहां स्कूल के प्रिंसिपल साहब का निवास था पहुंच जाती थी । उसके बाद कोचिंग क्लास शुरू होता था । उसी स्कूल के एक शिक्षक और हम दो सहेलियां वहां पढ़ाया करते थें । बहुत अच्छा लगता था बच्चों को पढ़ाना , उन्हें डांटना और कभी कभी सज़ा देना भी । अगर कोई मुश्किल सवाल होता तब एक शिक्षक जो हमारे साथ थे बड़े बच्चों के लिए वह सुलझा देते थे हमारा सवाल । इस तरह बहुत अच्छे से चलता रहा कोचिंग क्लास । कभी कभी सरप्राइजिंग चेकिंग भी होती थी । मगर कभी भी हमारे क्लास में कोई शैतानी या शरारत नहीं पाई गई और ना ही अनुशासन का उल्लघंन हुआ ।
"वक्त गुजरता गया और आया "शिक्षक दिवस " प्रिंसिपल सर ने हमारे लिए एक पार्टी रखी । यूं तो ना हम बच्चों से कोई ट्यूशन फीस लेते थे और ना ही हम शिक्षकों को कोई तनख्वाह मिलती थी । बस इसी तरह किसी किसी दिन पार्टी जरूर मिलती थी । उस दिन भी पार्टी हुई । समोसा मिठाई , नमकीन , कचौड़ी और कोल्डड्रिंक आया । चाय बिस्कुट तो हर रोज मिलता था । पार्टी के बाद मेरा एक स्टूडेंट मुझे एक गिफ्ट का पैकेट पकड़ाया और धीरे से बोला "घर जाकर खोलना मैम " मैंने कहा लेकिन क्यों लाएं ये गिफ्ट और कहां से लाए ?" वो नज़रें नीची करके बोला "मां ने दिया है आपके लिए देखो आपका नाम भी लिखा हुआ है ।" मैंने पलट कर देखा सचमुच लिखा था "हैप्पी टीचर्स डे , मेरी सबसे अच्छी सबसे प्यारी सरिता मैम " मैंने बहुत प्यार से उसके सर पर हाथ रखा और उसके बाल खराब कर दिए ... वो शरमाने लगा । वैसे तो कोई और उसका बाल बिगाड़ दे तो बहुत गुस्सा होता था । उसमें एक बड़ी कमी थी कि वो स्पष्ट बोल नहीं पाता था इसलिए वो खुद से कुछ खफा खफा सा रहता था । कोई उसकी बात समझ नहीं पाता था तो वो चिढ़ जाता था फिर चुप हो जाता था । मुझे पहले दिन ही बता दिया गया था कि राहुल को दूसरे तरीके से समझाना होगा और बहुत धैर्य से इसको सुनना और समझना होगा । उस दिन वो गुस्सा नहीं हुआ बल्कि पांव छूकर प्रणाम बोला था ।
उसकी परवरिश किसी सुसंस्कृत माता-पिता के संरक्षण में हो रही थी । अच्छा लगा था मुझे । जब लौटने को हुई तो ध्यान दिया कि गिफ्ट सिर्फ मुझे ही मिला था बाकी दोनों टीचर्स के हाथ खाली थे । मैं घर आई और छुपा कर रख दिया । जब रात को डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार इकट्ठा हुआ डिनर के लिए तब आदतन टेबल टॉक में सभी शामिल होते थे । पहले दादाजी , पापा और भैया लोग दिन भर का रिपोर्ट देते थे फिर हम तीनों बहनों की बारी आती थी । मां और दादी मां आखिरी में कुछ बोलती थी । लेकिन बेहद उत्साहित और उमंग से भरी हुई मुझे और सब्र नहीं हो रहा था इसलिए मैंने दादाजी से बोला सब लोग पहले मेरी बात सुनिए , आज मुझे गिफ्ट मिला है "टीचर्स डे" पर जब खोला तो आइना निकला जिसे देखकर बड़े भैया ने कहा "देखो तुम्हारा स्टूडेंट क्या दिया है आइना जिसका संदेश है कि पहले अपनी शक्ल तो देखो मैडम जी फिर मुझे पढ़ाने आना , कुछ तो आता नहीं है और मैडम बनकर चली आती हैं।" छोटे भैया और दीदी हंसने लगी और मैं रोने लगी थी तब दादाजी ने कहा कि एक बात के दो मतलब होते हैं और तुम्हारा स्टूडेंट यह सोचकर दिया है कि "मैडम मुस्कुराती हुई आप कितनी अच्छी लगती हैं , देखिए और हमेशा मुस्कुराते रहिए ।" मुझे दादाजी की बात अच्छी लगी और मैं रोते-रोते ही मुस्कुराने लगी । खाना ख़त्म हुआ फिर हम सब अपने अपने बेड पर सोने चले गए । मैंने एकांत में फिर वो आइना निकला और अपनी सूरत देखकर मुस्कुराने लगी .... उस घटना के गुजरे हुए सदियां गुज़र गई मगर आज भी मुझे मेरा वो स्टूडेंट याद आता है । पता नहीं वो कहां होगा क्या कर रहा होगा ? 1980 के बाद स्कूल छुटा , नसीमा छुट्टी और भी बहुत कुछ छुट गया मगर कुछ यादें आज भी याद आती हैं । हालांकि आगे चलकर मैं आर्मी में आई और ब्रिगेड स्कूल में जाॅब ज्वाइन किया 1993 से 2012 तक मैं टीचर्स डे मनाती रही । रिटायरमेंट के बाद भी सैकड़ों शुभकामनाएं , दो दर्जन कार्ड और आठ दस गिफ्ट मिलते हैं लेकिन इन तमाम उपहारों पर भारी था वो उपहार जो गहन पीड़ा , दर्द और तकलीफ़ में भी मुस्कुराते रहने को बाध्य करता है । हाॅस्पिटल के आई सी यू सेक्शन में एडमिट रहने पर भी जब कोई हाल पूछता था तब स्माइल के साथ ही जवाब देती थी । मुझे मेरा एक स्टूडेंट कितनी बड़ी सीख सीखला गया । किसी को शिक्षा देने के लिए ज्ञान बांटने के लिए कोई निश्चित मापदंड निर्धारित नहीं की गई है । एक स्टूडेंट भी अपने टीचर को कुछ सीखा सकता है और मुझे तो एक ऐसा सबक सिखाया जो पचपन पार भी मुझे याद है मैंने अपने जीवन में उतार लिया इसलिए मैं हमेशा मुस्कुराती रहती हूं और कहती हूं - ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है।