तजुर्बा
तजुर्बा
माँ मुझे प्रिया बिल्कुल पसंद नहीं है।ऐसा मत बोलो बेटा,प्रिया बहुत अच्छी लड़की है। मैंने देखा उसको, संयुक्त परिवार में रहती है, बहुत सरल और मृदुभाषी है।
यह आप इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो, देखा तो आपने बड़ी भाभी को भी था, उन्होंने क्या किया, पूरा घर का माहौल खराब कर दिया।
बेटा उसे पिताजी ने देखा था, उन्होंने उसे नहीं, उसके घर के पैसों को देखा था।पैसे वाले घर की होने के घमंड के कारण,वह हमारे घर में घुल-मिल नहीं रही है।
सुदीप ने रिया से प्रेम विवाह किया।बस इसी बात को लेकर, बड़ी बहू बार-बार ताना मारती है, और दोनों में झगड़ा होता है।
प्रिया जी आकर झगड़ा करने लगी तो? आप कैसे कह सकते हो कि वह इस घर को सुधार लेगी।
बेटा इस बार तेरी माँ का तजुर्बा कह रहा है। मान जा बेटा, मेरे बिखरते घर को बचाने के लिए, प्रिया का इस घर में आना बहुत जरूरी है।
ठीक है,जैसी आपकी मर्जी, फिर मुझे कुछ मत कहना। प्रिया हितेश की शादी हो जाती है, प्रिया घर में बहू बनकर आ जाती है।
उसे घर का माहौल बहुत अजीब लगता है। कोई किसी से बात नहीं करता।वह धीरे-धीरे सबको अपने प्रेम से जीतने की कोशिश करने लगती है। जेठानियों को लाख तिरस्कार के बावजूद भी प्रिया हारी नहीं है।उन्हें प्रेम से अपना बना ही लेती है।
आज दिवाली के दिन, तीनों बहुएं जब पारंपरिक वेशभूषा में तैयार होकर, जब सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं, तो जानकी के आंख से टप-टप आँसू गिरने लगे। जानकी ने तीनो बहुओं को अपने सीने से लगा लिया।
प्रिया ने अपने त्याग और समर्पण से वह संभव कर दिखाया,जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। रिश्तों को प्यार से सींचे तो फूल बनकर महकने लगते हैं ।