तीन सौ सत्तर
तीन सौ सत्तर
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कोई व्यक्ति कॉलोनी में नया आया था, देर शाम पहुँचा था! थका हुआ आया था वो और खा पीकर सो गया! जैसे ही पौ फटी, वैसे ही उठकर, दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर वो दूध लेने निकला! पास की डेयरी में जाकर उसने दूध ख़रीदा और बदले में दुकानदार को उसने पाँच सौ की हरी पत्ती पकड़ा दी! दुकानदार ने पैसे लेकर जितना माँगा गया था उतना दूध पकड़ा दिया और खुल्ले पैसे दुकानदार ने उसे पकड़ा दिए! खुल्ले पैसे गिनने के बाद वो ख़ुशी से उछलने लगा और चिल्लाने लगा,"मुझे ३७० मिल गया!" दुकानदार ने उसे उछलते देखा और दुकान में उसी समय पहुँचे ग्राहक को वो इशारा किया जिसका अर्थ ये निकलता है कि फलां बन्दा बौरा गया है! ख़ैर! डेयरी के मालिक ने उस ग्राहक को उसके द्वारा बताये गए दूध के पैकेट दे दिए! ग्राहक ने भी क़ीमत चुकाने के लिए पाँच सौ का नॉट डेयरी-मालिक को पकड़ा दिया! मालिक ने गल्ला खोला तो उसमें खुल्ले पैसे की कमी पायी, उसने देखा तो पहले आया हुआ ग्राहक अब भी नाच रहा था, ३७० मिलने की ख़ुशी में! दुकानदार ने उस नाचते हुए ग्राहक को इशारे से बुलाया और पूछा कि उसके पास ३० रुपये खुले हैं, उसने हामी से सर हिलाया! उसने उसे ४०० रुपये दिए वापिस किये और उससे ३७० को मिलाकर ३० रुपये वापिस ले लिए! ४०० रुपये मिलते ही वो रोने लगा कि उसे ३७० ही वापिस चाहिए न ३५० न ४००! वो उस दिन के बाद से हर दिन डेयरी पे आता है और ३७० को लेकर विरोध दर्ज़ करता है और रो-पीटकर चला जाता है और मालिक भी अब ज़िद में आ चुका है कि अब आकर कितना भी रो ले इसे ३७० नहीं ही दूंगा वापिस!