तेरी मेरी कहानी
तेरी मेरी कहानी


दीदी, कुछ पैसे दे दोगी क्या! थोड़ी जरूरत है। हो सके तो इस महीने काम के पैसे थोड़े बढ़ा दीजिए ना!"
"यह कैसी बात कर रही है तू कमला! मैंने पहले ही कहा था कि साल में एक ही बार पैसे बढाऊंगी। फिर ऐसी क्या जरूरत आ गई तुझे । अभी तो कोई तीज त्यौहार भी नहीं। इस महीने को शुरू हुए अभी 10 दिन भी नहीं हुए फिर!"
यह सुनकर उसका मुंह उतर गया और वह कुछ ना बोली।
"अच्छा मुंह क्यों फुला रही है। बता तो सही क्यों चाहिए तुझे पैसे!"
"दीदी वह मेरी बहन की लड़की आई हुई है ना तो उसके लिए कुछ खरीदना था। मेरे बच्चे जब उसके यहां जाते हैं तो वह भी कुछ ना कुछ देती ही है तो मेरा भी कुछ फर्ज तो बनता ही है।"
"जो इस महीने के पैसे दिए थे, उनसे क्यों नहीं ले आती!"
"अब क्या बताऊं आपको दीदी। सारे पैसे मेरा आदमी रखता है। कहता है तुम औरतों को हिसाब किताब रखना नहीं आता। छोटे-छोटे खर्चों के लिए उसके आगे हाथ फैलाना पड़ता है। अगर मेरी ससुराल से कोई आया होता तो तुरंत पैसे दे देता लेकिन यहां बात मेरे मायके की है । पैसे देते हुए 4 बात सुनाएंगा। अगर बहन की बेटी ने सुन लिया तो
कितना बुरा लगेगा और मेरी क्या इज्जत रह जाएगी। इसलिए आपसे कह रही थी। कुछ पैसे तो मैंने बचा कर रखे हैं, कुछ आप दे दोगी तो बात बन जाएगी। और जो आप पैसे बढ़ाओगी ,वह उसे नहीं बताऊंगी। कुछ पैसा मेरे हाथ में भी तो होना चाहिए। कितना बुरा लगता है, काम करते हुए भी उसके सामने हाथ पसारना पड़ता है। आप बड़े लोगों में सही है। आदमी औरत बराबर है। सही कह रही हूं ना दीदी!"
उसकी बात सुन कृष्णा चुप हो गई। फिर धीरे से बोली "अब क्या कहूं। बस इतना समझ ले, तेरी मेरी कहानी एक ही है।"
"मैं समझी नहीं !"कमला ने प्रश्न भरी नजरों से उसकी और देखते हुए पूछा।
कृष्णा उठी और बिना कुछ कहे, उसे पैसे दे अपनी आंखों में उभर आई पीड़ा को छुपाने के लिए चुपचाप अंदर चली गई।