सूरमा
सूरमा
जब लड़कों के ‘कोरस’ की रिहर्सल ख़तम हुई तो म्यूज़िक-टीचर बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा:
“अच्छा चलो, ये बताओ कि तुममें से किस-किसने मम्मा को आठ मार्च पर तोहफ़ा दिया था ? चल, डेनिस, तू बता।”
“मैंने आठ मार्च को मम्मा को सुईयाँ रखने का छोटा सा कुशन दिया। ख़ूबसूरत। मेंढ़क जैसा। तीन दिनों तक सीता रहा, सारी ऊँगलियाँ लहुलुहान हो गईं। मैंने ऐसे दो कुशन्स बनाए।”
मीश्का ने भी जोड़ा:
“हम सबने दो-दो सिए। एक मम्मा के लिए, और दूसरा – रईसा ईवानोव्ना के लिए।”
“ये सबने कुशन्स क्यों सिये ?” बोरिस सेर्गेयेविच ने पूछा। “आपने क्या तय कर लिया था, कि सब लोग एक ही चीज़ बनाएँगे ?”
“ओह, नहीं,” वालेर्का ने कहा, “ये तो हमारे ‘कुशल-हाथ’ ग्रुप में है – हम आजकल कुशन्स बनाना सीख रहे हैं। पहले हमने छोटे-छोटे शैतान बनाए, और अब छोटे-छोटे कुशन्स की बारी है।”
“ कैसे शैतान ?” बोरिस सेर्गेयेविच चौंक गए।
मैंने कहा:
“प्लास्टीसीन के। हमारे लीडर्स, आठवीं क्लास के वोलोद्या और तोल्या छह महीनों तक हमसे शैतान बनवाते रहे। जैसे ही आते, फ़ौरन कहते, “शैतान बनाओ!” तो, हम बनाते रहते, और वे शतरंज खेलते रहते।”
“पागल हो जाऊँगा,” बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा। “कुशन्स! इस बात पर गौर करना ही पड़ेगा! ठहरो!” और वो अचानक ठहाका मारकर हँस पड़े। “और तुम्हारी, पहली ‘बी’ क्लास में कितने लड़के हैं ?”
“पन्द्रह,” मीश्का ने कहा, “और लड़कियाँ – पच्चीस।”
अब तो बोरिस सेर्गेयेविच हँसते-हँसते लोट पोट हो गए।
मैंने कहा:
“हमारे देश में औरतों की आबादी आदमियों के मुक़ाबले में ज़्यादा है।”
मगर बोरिस सेर्गेयेविच ने मेरी बात पर हाथ झटक दिया।
“मैं उस बारे में नहीं कह रहा हूँ। मुझे तो ये देखने में बड़ा मज़ा आएगा कि रईसा ईवानोव्ना को कैसे पन्द्रह कुशन्स का तोहफ़ा मिलता है! अच्छा, ठीक है, सुनो: तुममें से कौन अपनी मम्मा को पहली मई की मुबारकबाद देने वाला है ?”
अब हँसने की बारी हमारी थी। मैंने कहा:
“बोरिस सेर्गेयेविच, आप शायद मज़ाक कर रहे हैं, बस, पहली मई की मुबारकबाद ही बाकी रह गई थी।”
“ बिल्कुल नहीं, यही तो गलत है, पहली मई की मुबारकबाद अपनी-अपनी मम्मा को देना ज़रूरी है। साल में सिर्फ एक बार मुबारकबाद देना - ये बुरी बात है। और अगर हर त्यौहार मनाया जाए तो ये होगा सूरमाओं जैसा काम। कौन बताएगा कि सूरमा कौन होता है ?”
मैंने कहा:
“वो घोड़े पे होता है, फ़ौलादी ड्रेस में।”
बोरिस सेर्गेयेविच ने सिर हिलाया।
“ हाँ, ऐसा बहुत पहले होता था। और तुम लोग भी, जब बड़े हो जाओगे, तो सूरमाओं के बारे में बहुत सारी किताबें पढ़ोगे, मगर आज भी, अगर किसी के बारे में कहते हैं कि वो सूरमा है, तो इसका मतलब है कि वो बड़े दिल वाला है, साहसी है और भला इन्सान है। और मैं समझता हूँ कि हर ‘पायनियर’ को ज़रूर सूरमा होना चाहिए। जो यहाँ सूरमा है, अपना हाथ उठाए ?”
हम सब ने हाथ उठा दिए।
“मुझे मालूम ही था,” बोरिस सेर्गेयेविच ने कहा, “जाओ, सूरमाओं!”
हम अपने-अपने घरों को चल पड़े। रास्ते में मीश्का ने कहा:
“ठीक है, मैं मम्मा के लिए चॉकलेट खरीद लेता हूँ, मेरे पास पैसे हैं।”
मैं घर आ गया, मगर घर में कोई नहीं था। मैं निराश हो गया। अब, जब सूरमा बनना चाहता हूँ, तो पैसे ही नहीं हैं! तभी, जैसे जले पर नमक छिड़कने मीश्का भागते हुए आया, हाथों में ख़ूबसूरत डिब्बा था, जिस पर लिखा था : ‘पहली मई’।
मीश्का ने कहा:
”तैयार है, अब बाईस कोपेक में मैं सूरमा बन गया। और तू क्यों ऐसे बैठा है ?”
“मीश्का, तू सूरमा है ना ?” मैंने कहा।
“बिल्कुल, सूरमा हूँ,” मीश्का ने कहा।
“तब मुझे पैसे उधार दे।”
मीश्का दुखी हो गया:
“मैंने तो सारे पैसे खर्च कर दिए।”
“तो, अब क्या किया जाए ?”
”ढूँढ़ना पड़ेगा,” मीश्का ने कहा, “बीस कोपेक का सिक्का तो छोटा सा होता है, हो सकता है कि एकाध कहीं पड़ा मिल जाए, चल ढूँढ़ते हैं।”
और हमने पूरा कमरा छान मारा – दीवान के पीछे, अलमारी के नीचे, मैंने मम्मा के सारे जूते भी झटक के देख लिए, उसकी पावडर के डिब्बे में भी ऊँगली डालकर टटोल लिया। कहीं भी कुछ नहीं मिला।
अचानक मीश्का ने खाने के बर्तनों वाली अलमारी खोली:
“रुक, ये क्या है ?”
“कहाँ ?” मैंने पूछा। “आह, ये बोतलें हैं। तुझे, क्या दिखाई नहीं दे रहा है ? यहाँ दो तरह की वाईन्स हैं: एक बोतल में – काली, और दूसरी में – पीली। ये मेहमानों के लिए है, हमारे यहाँ कल मेहमान आ रहे हैं।”
मीश्
का ने कहा:
“ऐख, अगर तुम्हारे मेहमान कल आ जाते तो तेरे पास पैसे होते।”
“वो कैसे ?”
“बोतलें,” मीश्का ने कहा, “हाँ, ख़ाली बोतलों के बदले में पैसे देते हैं। नुक्कड़ पे। वहाँ लिखा है काँच का सामान लिया जाता है! ”
“तूने पहले क्यों नहीं बताया! अब हम ये काम कर डालेंगे। ला इधर, वो फलों के जूस का डिब्बा दे, वहाँ खिड़की में रखा है।”
मीश्का ने मेरी ओर डिब्बा बढ़ाया, और मैंने बोतल खोली और काली-लाल वाईन डिब्बे में उँडेल दी।
“राईट,” मीश्का ने कहा। “उसे कुछ नहीं होगा ?।।।”
“बेशक, कुछ नहीं होगा,” मैंने कहा। “और दूसरी कहाँ डालूँ ?”
“वहीं,” मीश्का ने कहा, “क्या सब एक ही नहीं है ? ये भी वाईन है, और वो भी वाईन है।”
“हाँ, ठीक है,” मैंने कहा। “अगर एक वाईन होती, और दूसरा केरोसिन, तब ऐसा करना मना है, मगर इस हालत में, ये तो ज़्यादा अच्छा है। पकड़ डिब्बा।”
और हमने दूसरी बोतल भी उसी में उँडेल दी।
मैंने कहा:
“इसे खिड़की में रख दे! ठीक है। प्लेट से ढाँक दे, और चल, अब भागते हैं!”
हम दुकान में गए। इन दो बोतलों के बदले हमें चौबीस कोपेक मिले। मैंने मम्मा के लिए चॉकलेट खरीदा। मुझे दो कोपेक वापस भी मिले। मैं ख़ुशी-ख़ुशी घर वापस आया, क्योंकि मैं सूरमा बन गया था, और, जैसे ही मम्मा और पापा घर लौटे, मैंने कहा:
“मम्मा, मैं सूरमा बन गया हूँ। बोरिस सेर्गेयेविच ने हमें सिखाया था!”
मम्मा ने कहा:
“चल, पूरी बात बता!”
मैंने बताया कि कल मैं मम्मा को सरप्राइज़ देने वाला हूँ। मम्मा ने कहा:
“मगर तुझे पैसे कहाँ से मिले ?”
“मम्मा मैंने काँच का ख़ाली सामान बेच दिया। ये दो कोपेक वापस भी मिले।”
अब पापा बोले:
“शाबाश! ये दो कोपेक मुझे दे दे, टेलिफोन-बूथ के लिए!”
हम खाना खाने बैठे। फिर पापा कुर्सी की पीठ से टिक गए और मुस्कुराए:
“फलों का जूस होता तो मज़ा आ जाता।”
“माफ़ करना, आज मैं ला नहीं पाई,” मम्मा ने कहा।
मगर पापा मेरी ओर देखकर आँख मिचकाते हुए बोले:
“और ये क्या है ? मैं बहुत दिनों से देख रहा हूँ।”
और वो खिड़की की तरफ़ गए, प्लेट हटाई और सीधा डिब्बे से पीने लगे। मगर वहाँ क्या था! बेचारे पापा इस तरह खाँसने लगे, जैसे उन्होंने लौंगें पी ली हों। वो डरावनी आवाज़ में चिल्लाए:
“ये क्या है ? ये कैसा ज़हर है ?!”
मैंने कहा:
“पापा, घबराओ मत! ये ज़हर नहीं है। ये तुम्हारी दो वाईन्स हैं!”
पापा कुछ लड़खड़ा गए और उनका चेहरा बदरंग हो गया।
“कौन सी दो वाईन्स ?!” वो पहले से भी ज़्यादा ज़ोर से चिल्लाए।
“काली और पीली,” मैंने कहा, “जो क्रॉकरी वाली अलमारी में थीं। पहली बात, तुम घबराओ मत।”
पापा क्रॉकरी वाली अलमारी के पास भागे और उसका दरवाज़ा खोल दिया। फिर वो आँखें झपकाने लगे और अपना सीना सहलाने लगे। उन्होंने मेरी तरफ़ इतने आश्चर्य से देखा जैसे मैं कोई साधारण बच्चा नहीं, बल्कि नीले रंग का हूँ या मेरे मुँह पर धब्बे हैं। मैंने कहा:
“क्या पापा, तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ? मैंने तुम्हारी दोनों वाईन्स डिब्बे में उँडेल दीं, वर्ना मुझे ख़ाली बोतलें कहाँ से मिलतीं ? ख़ुद ही सोचो!”
मम्मा चीख़ी, “ओय!”
और वो दीवान लुढ़क गई। वो हँसने लगी, मगर इतनी ज़ोर से कि मुझे लगा कि उसकी तबियत बिगड़ जाएगी। मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था, मगर पापा चिल्लाए:
“हँस रही हो ? ठीक है, हँसो, हँसो! और हँसो ! मगर तुम्हारा ये सूरमा मुझे पागल बना देगा, मैं अभी इसकी धुनाई करता हूँ, जिससे कि वो हमेशा के लिए अपने सूरमाई कारनामे भूल जाए।”
और पापा ऐसा दिखाने लगे, जैसे चाबुक ढूँढ़ रहे हों।
“कहाँ है वो ? ज़रा मेरे पास लाना इस आयवेंगो को! कहाँ ग़ायब हो गया ?”
मैं अलमारी के पीछे था। मैं तो कब से वहाँ छुप गया था, न जाने कब क्या हो जाए। और पापा बड़े गुस्से में थे। वो चीख़ रहे थे:
“कहीं ऐसा सुना है कि सन् 1954 की ब्लैक ‘मुस्कात’ को डिब्बे में उण्डॆल दो और उसमें झिगुली की बियर मिला दो ?!”
मम्मा हँसते-हँसते बेहाल हो रही थी। उसने बड़े मुश्किल से कहा:
“मगर ये उसने।।।।अच्छे इरादे से।।।आख़िर, वो।।।सूरमा।।।मैं हँसी के मारे मर रही हूँ।”
और वो हँसती रही।
पापा कुछ देर और कमरे में घूमते रहे और फिर अचानक मम्मा की ओर बढ़े। उन्होंने कहा:
”तुम्हारी हँसी मुझे कितनी पसन्द है!”
और उन्होंने झुककर मम्मा को ‘किस’ कर लिया।
तब मैं आराम से अलमारी के पीछे से निकल आया।