सनक नहीं समझदारी

सनक नहीं समझदारी

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"लो, फिर चल दी मां जी सारे दरवाजे देखने कि कहीं कोई गलती से खुला तो नहीं रह गया, और अगर रह गया तो बच्चे तो उनसे डांट खाएंगे ही, साथ ही उनकी डांट के कुछ छींटे मुझ पर भी जरूर पड़ेंगे", मन ही मन बुदबुदाती लक्ष्मी किसी काम में खुद व्यस्त दिखाने की कोशिश करने लगी। 

पर इस से कोई फर्क नहीं पड़ा। वही हुआ जिसका उसे डर था। बच्चों ने फिर बाहर जाने वाला एक दरवाज़ा खुला छोड़ दिया था। मां जी बच्चों पर बरस पड़ी कि घर का बिल्कुल ध्यान नहीं रखते और बच्चे सारा इल्ज़ाम एक दूसरे पर डालने लगे।

 मां जी बच्चों को डांटने के बाद मुझसे कहने लगी,"लक्ष्मी तेरे बच्चे तो मेरी सुनते ही नहीं और ना ही उन्हें घर की थोड़ी सी भी कद्र है। तू ही मेरी सुन लिया कर और दरवाजों का ध्यान रख लिया कर। अब ज़माना एहतियात से चलने का है। सारे मिलकर मेरी बूढ़ी हड्डियों की ही थोड़ी चिंता कर लो। घड़ी घड़ी उठकर दरवाज़े देखने पड़ते हैं। क्या करोगे तुम सब जब मैं नहीं रहूंगी।"

लक्ष्मी मन ही मन चिढ़ती और कुढ़ती "जी मां जी" कह कर रसोई में चली गई। 

अभी मां जी को गुजरे छः महीने भी नहीं हुए कि घर में चोरी हो गई और सबसे ज्यादा दुख की बात ये थी कि चोर को अंदर आने के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ी।पहले मां जी थी तो ध्यान रखती थीं अब उनके ना रहने पर सब और बेपरवाह हो गए और इस कारण रात में भी कई बार दरवाज़ा खुला रह गया। कोई शायद बड़े दिन से निगाह रखे हुए था, मौका मिलते ही हाथ साफ कर गया।

आज लक्ष्मी बहुत शर्मिंदा थी और मां जी की फोटो से माफ़ी मांग रही थी। जब भी मां जी लड़ते हुए कहती थीं कि वो नहीं रहेंगी तो पता चलेगा तब लक्ष्मी हमेशा मन में बोलती थी कि आपके ना रहने से कम से कम आपकी सनक से तो छुटकारा मिलेगा। 

आज समझ आया उसे कि वो उनकी सनक नहीं सतर्कता थी। लक्ष्मी ने मां जी की फोटो से आशीर्वाद मांगा और ठान लिया कि अब वो भी मां जी की तरह सतर्क बन कर रहेंगी और बच्चों को भी यही सिखाएंगी। 

हम सब अक्सर बड़ों की सब बातें उनकी सनक कह कर टाल देते हैं और उनके तजुर्बे की कद्र नहीं करते। हमें ध्यान रखना चाहिए कि उनकी उम्र ही नहीं बड़ी बल्कि उनके ज़िन्दगी के अनुभव भी हमसे कहीं ज्यादा हैं। हमें उनके अनुभवों का फायदा उठाना चाहिए ना कि सनक कह कर टाल देना चाहिए।



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