संदेह
संदेह
ऑफिस से निकलने में काफी देर हो गयी थी आज। मेरे पति रोहित का फोन भी नॉट रीचेबल आ रहा था। बाहर आकर ऑटो किया और घर की और चल दी। अभी थोड़ी दूर ही गयी थी अचानक से ऑटो रुक गया।
" क्या हो गया भैय्या ? मुझे पहले ही देर हो रही है थोड़ा जल्दी कर लो"।
" मैडम जी -लगता है ब्रेक में कोई गड़बड़ है आप दूसरा ऑटो ले लो -ऑटो वाले ने बेफिक्री से कहा"।
ऑटो वाले को पैसे दे सड़क पर मैं जल्दी-जल्दी चलने लगी। काफी सुनसान हो गया था पूरा इलाका। तभी पीछे से एक गाड़ी धीमे-धीमे मेरे साथ चलने लगी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा और कहा - "ये क्या बदतमीजी है"।
अंदर कोई ३०-३५ साल का व्यक्ति था। खिड़की से बाहर की तरफ झाँक कर उसने कहा कि -"मैडम! आप मेरी गाड़ी में बैठ जाइये आगे रास्ता बंद है और आपको इस समय कोई ऑटो-टैक्सी भी नहीं मिलेगी। वैसे भी लॉन्ग रूट से ही मेन रोड तक पहुँच सकते हैं।
मैंने चिल्लाते हुए कहा - "आपको परेशान होने की ज्यादा जरुरत नहीं है। मैं मैनेज कर लूँगी "-कह कर जल्दी से आगे बढ़ गयी। वो भी पास से गाड़ी लेकर निकल गया। चारों और सन्नाटा था। इक्का -दुक्का कोई गाड़ी मुझे नजर आयी। कई बार रोहित को फोन किया पर फोन नहीं मिला। मुझे बहुत ही घबराहट हो रही थी।सोच रही थी -बैठ ही जाती उस आदमी की गाड़ी में, पर.... जमाना कितना खराब है। अनजान आदमी के साथ कैसे बैठ जाऊँ। इसी उधेड़बुन में आगे रेड लाइट तक पहुंची।
तभी उसी आदमी की गाड़ी रेड लाइट पर खड़ी दिखी। रात के ११ बज रहे थे। पता नहीं बिना सोचे-समझे मैंने गाड़ी की खिड़की पर नॉक किया। उसने शीशा नीचे किया गेट खोला और मुझे अंदर बैठने को कहा। मैं भी लपक कर पिछली सीट पर बैठ गयी। साँस फूल रही थी। पर्स में से बोतल निकाल कर पानी पिया। चेहरा डर से पीला पड़ चुका था। तभी रोहित का फोन बजा। उसे मैंने सारी बात बताई और गाड़ी का नंबर बता दिया तभी फोन कट गया।
अचानक यू -टर्न लेकर उस आदमी ने गाड़ी मोड़ी और रूट ले लिया।अब तो मैं इसके जाल में फंस चुकी हूँ। पता नहीं आज क्या होने वाला है मेरे साथ। सब तरह के बुरे दृश्य आँखों के सामने तैरने लगे। कहीं आज मैं भी...नहीं -नहीं … धड़कन बढ़ रही थी और लग रहा था कि अभी मेरा दम ही निकल जाएगा। बहुत ही बेबस महसूस कर रही थी।
" क्या करती हैं आप "- उसने सन्नाटा तोड़ते हुए मुझसे पूछा।
"आपसे मतलब …आप बस मुझे मेन रोड तक ड्राप कर दें" मैंने कहा।
तभी उसका फोन बजा और उसने कहा -" हाँ ! हाँ बस मैं पहुँच ही रहा हूँ करीब आधा-एक घंटा लग जाएगा। अरे बेफिक्र रहो उन्हें भी साथ ही ला रहा हूँ।"सुनते ही मेरे पसीने छूट गए और बदन ठंडा हो गया। ये मुझे लेकर कहाँ जा रहा है। दिमाग और दिल दोनों ने ही काम करना बंद कर दिया था। दूर-दूर तक सड़क सुनसान थी। हे भगवान - किसी तरह आज सही-सलामत घर तक पहुंचा दो। तभी एक टर्न लेते ही उसने गाड़ी रोकी और फटाक से एक आदमी आगे बैठ गया और गाड़ी चल दी।
तभी मैं चिल्लाई -"ये सब क्या है ? कौन हैं आप लोग ? गाड़ी रोको मुझे यहीं उतरना है"।
"आप गलत समझ रही हैं"- उसने कहा।
तभी रोहित का फोन बजा जल्दी से मैंने जोर-जोर से रोते हुए कहा -"मैं यहाँ रेड लाइट के चौक पर हूँ तुम वहीँ मुझे लेने पहुंचो"।
"मुझे आगे चौक पर उतार दें मेरे पति मुझे लेने आ रहे हैं"। बड़ी हिम्मत से मैंने कहा।
चौक पर मैंने रोहित को खड़े हुए देखा। गाड़ी रुकी मैं झट से उतरकर रोहित की ओर भागी और रोहित उस आदमी की गाड़ी की ओर बढ़ा और ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी से गाड़ी की खिड़की में से बात करने लगा।
"अरे मनीषा -जरा यहाँ आओ "-तभी रोहित ने जोर से कहा।
आगे जा कर मैं रोहित से चिपक कर खड़ी हो गयी।
" इनसे मिलो- ये हैं लेफ्टिनेंट अमान...कारगिल युद्ध में थे ये। बड़ी बहादुरी से इन्होंने दुश्मन का सामना किया था और उस युद्ध में इनकी एक बाजू चली गयी थी। साथ में इनके गार्ड सिपाही रोशन हैं।
"आपका बहुत शुक्रिया सर "-रोहित ने कहा।
"अरे नहीं ये तो हमारा फ़र्ज़ है। आप बस हिफाजत से अपनी पत्नी को घर ले जाएँ बहुत डरी हुई हैं"-अमान ने हँसते हुए कहा और जल्दी ही गाड़ी सहित ओझल हो गए ।अपनी गाड़ी में बैठ मैं रोये जा रही थी और रोहित बोल रहा था - "दूर से ही इनकी गाड़ी देख मैं समझ गया था कि ये किसी सेना के जवान की गाड़ी है और तुम पूरी तरह सुरक्षित हो"।
"अब रोना बंद करो सब कुछ ठीक है"।
मैंने धीरे से कहा -"पर तुम्हें कैसे पता ये गाड़ी"... ?
"अरे! गाड़ी पर देश का झंडा लगा था और सेना के चिन्ह के साथ-साथ अमान का नाम भी लिखा था। तुमने बैठते समय देखा नहीं था ?"
अपनी सोच व व्यवहार पर शर्मिंदा थी। पर समय की नज़ाकत के अनुसार मेरा संदेह करना ठीक भी था और दिल अमान को उनकी सलामती की हज़ारों दुआएं दे रहा था क्योंकि उनकी वजह से आज मैं सही सलामत घर जा रही थी।
