समाज का ताना बाना
समाज का ताना बाना
'समाज का ताना बाना बदल गया है।समाज में intolerance बढ़ रहा है।दिलों के फासले बढ़ रहे हैं।'टीवी में panelists पता नहीं और क्या क्या बोल रहे थे।डिबेट में एंकर जोर जोर से बोल कर जैसे टीआरपी बढ़ाने की कोशिश कर रहा था।
घर में बैठ कर टीवी के रिमोट से खेलते हुए मैं इधर उधर की चैनल्स देख रही थी।सारे न्यूज़ चैनल्स में कमोबेश वही कुछ आ रहा था,तभी दरवाजे की घंटी बजी।दरवाजा खोल कर देखा तो सामने हमारे पड़ोसी हाथ में दो दो प्लेट लेकर खड़े थे।मैंने स्माइल करते हुए उनको अंदर आने को कहा।घर के अंदर आते हुए उन्होंने बड़ी ही गर्मजोशी से 'ईद मुबारक' कहकर plate पकड़ा दी और शाम को घर आने की दावत भी दी।मैंने प्लेट लेते हुए ईद की मुबारकबाद दी और शाम को उनके घर जाने का वादा भी किया।
उनके जाने के बाद मुझे टी वी की बहस बिल्कुल बेमानी लग रही थी।समाज का ताना बाना जैसे और मजबूत लगने लगा था।उनके घर से आयी हुई खीर और ज्यादा मीठी लगने लगी थी...