स्कूल में पहला दिन
स्कूल में पहला दिन
गांव का खपरैल स्कूल है ,सभी बच्चे टाटपट्टी बिछा कर पढ़ने बैठते हैं। फर्श गोबर से बच्चे लीप लेते हैं फिर सूख जाने पर टाट पट्टी बिछा के पढ़ने बैठ जाते हैं । मास्टर जी छड़ी रखते हैं और टूटी कुर्सी में बैठ कर खैनी से तम्बाकू में चूना रगड़ रगड़ के नाक मे ऊंगली डालके छींक मारते हैं फिर फटे झोले से स्लेट निकाल लेते हैं। बड़े पंडित जी जैसे ही पंहुचे सब बच्चे खड़े होकर पंडित जी को प्रणाम करते हैं ।हम सब ये सब कुछ दूर से खड़े खड़े देख रहे हैं। पिता जी हाथ पकड़ के बड़े पंडित जी के सामने ले जाते हैं। पहली कक्षा में नाम लिखाने पिताजी हमें लाए हैं । अम्मा ने आते समय कहा उमर पांच साल बताना , सो हमने कह दिया पांच साल.............बड़े पंडित जी कड़क स्वाभाव के हैं पिता जी उनको दुर्गा पंडित जी कहते हैं । दुर्गा पंडित जी ने बोला पांच साल में तो नाम नहीं लिखेंगे फिर उन्होंने सिर के उपर से हाथ डालकर उल्टा कान पकड़ने को कहा। कान पकड़ में नहीं आया, तो कहने लगे हमारा उसूल है कि हम सात साल में ही नाम लिखते हैं, सो दो साल बढ़ा के नाम लिख दिया गया। पहले दिन स्कूल देर से पहुंचे तो घुटने टिका दिया गया ,स्लेट नहीं लाए तो गुड्डी तनवा दी , गुड्डी तने देर हुई तो नाक टपकी , दुर्गा पंडित जी ने खैनी निकाल कर चैतन्य चूर्ण दबाया फिर छड़ी को देखकर मुस्कराते हुए व्यंग्य भरी निगाह से हमारे पुट्ठों पर नजर डाली फिर क्या था छड़ी चालू हो गई थी। आंखें तर हो गईं थीं। बस यहीं से जीवन अच्छे रास्ते पर चल पड़ा ,अपने आप चली आयी नियमितता ,अनुशासन की लहर ,पढ़ने का जुनून , कुछ बन जाने की ललक। पहले दिन गांधी को पढ़ा ,कई दिन बाद परसाई जी का "टार्च बेचने वाला" पढ़ा , फिर पढ़ते रहे और पढ़ते ही गए ।
आज अखबार में पढ़ते हैं मास्टर जी ने बच्चे का कान पकड़ लिया तो हंगामा हो गया, स्कूल का बालक मैंडम को लेकर भाग गया, स्कूल के दो बच्चों के बीच झगड़े में छुरा चला, स्कूल के मास्टर ने ट्यूशन के दौरान बेटी की इज्जत लूटी .....और न जाने क्या क्या।
