स्कूल के पावन दर्शन
स्कूल के पावन दर्शन
सभी दोस्तों ने पुनरमिलन कार्यक्रम को अपने ही स्कूल में करने की ठान ली थी। सभी मित्र इस कार्य के सफलता के लिए अपनी –अपनी एड़ियां रगड़ रहे थे। कुछ स्थानीय मित्रों और बाहर से आयें अतिथि मित्रों ने स्कूल के प्राचार्य से मिलने की योजना बनाई थी। उसे ही अंजाम देने के लिए वे सब स्कूल जाकर स्कूल के प्राचार्य से मिलने गये थे। वर्गमित्रों को उनके योजना की जानकारी प्राचार्य के साथ साझा करनी थी। कार्यक्रम करने की अनुमति मिलने पर, उन्हें और अन्य महत्वपूर्ण सदस्यों को भी आमंत्रित करने का उनका इरादा था। वे जब स्कूल पहुंच ने के लिए निकले थे, तभी उनके दिल और दिमाग में स्कूल की अपने समय के कुछ यादें थी। अपना स्कूल ऐसा था। यहाँ मैदान था, वहाँ प्रार्थना मंच था, इधर ग्रंथालय, ऐसी कई यादें आते समय चल रही थी। स्कूल तो अपने जगह पर था। लेकिन सब चीजे बदल चुकी थी। सिर्फ पुरानी इमारत जैसे के वैसे थी। लेकिन आजु-बाजु का परिसर पुरी तरह से बदल चुका था। पुरानी इमारत को देखकर यकीन हो गया था कि हम लोग अपने ही स्कूल में आये है। आज इस बात का यकीन हो चुका था कि वक्त साथ सब चीजे बदल जाती है। फिर हम सब मित्र मिलकर प्राचार्य के कमरे के पास पहुंचे थे। चपरासी के हाथ में एक परची थमाई थी। कभी -कभी गधे को भी बाप बनाना पड़ता है। चपरासी से अनुरोध किया कि ये परची साहब को दे दो। पुछने पर बताना कि हम सब बगल में खड़े है। बुलाने का इंतजार कर रहे है।
चपरासी: चपरासी अंदर गया। थोड़ी देर बाद, लौट के आने पर कहा। आप सबको साहब ने अंदर बुलाया है। हम सब ने अंदर प्रवेश किया। सबने प्राचार्य के चरण स्पर्श किये।
प्राचार्य : ने कहां, चरण स्पर्श करने की आवश्यकता नहीं। आप स्वयं इतने बुजुर्ग हो गये है कि दूसरों को आशीर्वाद दे सकते है। अभी तो आप अपने पैरों पर खड़े हो चुके है।
छात्रों : ने एक स्वर में कहां, हम चाहे, कितने भी बुजुर्ग और पद से बड़े हो जाएं। आप के लिए, और अन्य गुरुजनों के लिए छोटे और छात्र ही रहेगें। हमारे इस विचारों से प्राचार्य बहुत प्रभावित हुये थे। ये तो त्रीकाल बाधीत सत्य है।
प्राचार्य : ने कहा, आप सब कौन से साल में इस स्कूल में थे।
छात्रों : सर, हम सब नये शिक्षा नीति के प्रथम छात्र रहे है।
प्राचार्य : याने दस बारा पैटर्न के, याने, 1975 और 1977। सही है ना?।
छात्रों : हां सर। फिर सभी ने एक-एक करके अपना परिचय दिया। प्राचार्य हमारे परिचय और शालीनता से काफी प्रभावित हुये थे । हम सबको सकुशल सेवानिवृत्ती की बधाई दी , हमारा आगे का जीवन भी सुखमय, मंगलमय, आनंदमय हो इसका आशीर्वाद भी हम सबको दिया। सभी ने इसके लिए उनका आभार माना।
प्राचार्य : ने पुछा, किस मकसद से मिलने आये हो सभी?।
छात्रों : ने हँसते हुयें कहा, सर अभी हम कुछ ही छत्र आयें है। हमने सभी मित्रों ने ‘मित्र पुनरमिलन” का कार्यक्रम स्कूल में करने का सोचा है। इस कार्यक्रम में सभी पुराने मित्र सम्मिलित होना चाहते है। हम अपनी सामूहिक इकसठवीं भी मनाने चाहते है। एक दिन का पुरा कार्यक्रम निश्चित किया है। जो हमारे पुराने गुरुजन अभी जीवित है, उनका आप के साथ परंपरानुसार सम्मान करना चाहते है। यह कार्यक्रम हम दो फरवरी 2020 में रविवार के दिन करना चाहते है। अगर आप अनुमति प्रदान करे तो!। हम नियमानुसार एक दिन का जो भी शुल्क है उसका
अग्रिम भुगतान आज कर देना चाहते है।
प्राचार्य : मैं आप के प्रस्ताव और गुरुजनों के प्रती जो आस्था आपने दिखाई। भूतपूर्व छात्र होकर , इसे देखकर बहुंत प्रसन्न और प्रभावित हुआ हूँ । मैं ये कार्यक्रम करने की अनुमती आप को देता हूँ। आप जो आदर्श रखने जा रहे हो। वो आज के छात्रों के लिए आदर्श जरूर प्रस्थापित करेगा !। आप आवश्यक शुल्क जमा कर दीजिये। नियमानुसार मुझे ये करना पड़ेगा।
छात्रों : अनुमति मिलने पर सभी मित्रों में खुशी की लहर दौड़ने लगी। वो इस बात से झूम उठे थे। सिर्फ उम्र, समय और जगह का लिहाज करते हुयें नाचना शुरु नहीं किया था। उनके खुशी में चार चाँद लग चुके थे। सब को इस बात का ही इंतजार था। सभी ने प्राचार्य के इस बात के लिए आभार व्यक्त किया। झट मंगनी, पट शादी, प्राचार्य को कार्यक्रम में आने का लगे हाथ निमंत्रण भी दे डाला।
प्राचार्य : ने हमारा निमंत्रण स्वीकार कर लिया। अगर मैं यहाँ रहा तो निश्चित आऊंगा!। किसी विशेष परिस्थिति में नहीं रहा तो आप के अन्य गुरुजन तो है ही।
छात्रों : ने कहां आप रहेंगे तो हमें और भी अच्छा लगेगा। धन्यवाद देकर सभी ने बिदाई ली। बाहर बैठे चपरासी का सभी मित्रों ने सहकार्य के लिए शुक्रिया अदा किया था। उसे भी आने का और कार्यक्रम दौरान मदद करने का आग्रह किया। आवश्यक जानकारी उससे प्राप्त की। सर्वप्रथम स्कूल के कार्यालय में जाकर , संबंधित बाबू से चर्चा की थी। उसने हमें ये कार्यक्रम करने के लिए दिल से बधाई दी थी। हॉल के लिए एक आवेदन करने को कहाँ था। आवश्यक सरकारी प्रक्रिया करके ,पैसा जमा किया था।
छात्र: सभी पुराने छात्र स्कूल के आंगन में आ के खड़े हो गये थे। वे सभी उन पुराने पलों को याद कर रहे थे। कुछ पुराने यादें फिर से ताजा करने का प्रयास कर रहे। स्कूल के बच्चे हमें दूर से निहार रहे थे। हम सब उनके रडार पर आ चुके थे। उन्हें देखकर हम उन बच्चों में हम अपना बिताया छात्र जीवन तलाश रहे थे।
कुछ बच्चे अपने कक्षा के बाहर हमारी तरह मटर-मस्ती भी करते दिखे। उसे, मैं, श्रीकांत और गुनवंता भी देख रहे थे। तीनों को कुछ याद आ रहा था।
अरुण: अरे, श्रीकांत, गुनवंता, जब हम आठवीं में वो वाली कक्षा में थे। हलकी सी बारिश हो रही थी। श्रीकांत, कक्षा के सीढ़ियोंके पास सामने देख रहा था। तब मैंने उसे थोड़ा हलका धक्का देने के बजाय, जरा जोर से धक्का दिया था। वह बुरी तरह से सिने के बल गिरा था। फिर भी अपना शेर उठाने के पहिले ही उठ खड़ा हुआ था। उसका शर्ट और पतलुन बहुत गन्दा हो गया था। हम उसे पीने के पानी के नल के पास ले गयें थे। फिर हम सब मिलकर उसके कपड़े साफ कर रहे थे। इस कपड़े साफ करने में उसकी शर्ट कैसे उतार दी थी। पता ही नहीं चला।
गुनवंता :अबे, तू उस वक्त बच गया था। वर्ना लेने के देने पड जाते। वो बहुत तंदुरुस्त था। इसलिए कुछ नहीं हुआ। आज के जैसा हॉर्ट का मरीज होता। तो क्या होता। इस बात को सुनकर सभी को इस बात का ऐहसास हो गया कि समय ने हमारी तंदुरुस्ती छीन ली है। हम सबने पूरा घूमकर स्कूल देखा था। क्या-क्या बदलाव हुये उसे देखने का प्रयास कर रहे थे। फिर स्कूल से बाहर निकलते समय स्कूल की तस्वीर मोबाइल में मित्रों ने कैद की। उसे वाट्स गृप में डालने की योजना थी। हाथ कंगन को आईने की क्या जरूरत। सभी को ये बात समज आई कि वक्त किसी के लिए नहीं रुकता। वह अपना परिणाम जरुर दिखाता है।
चपरासी से प्राप्त जानकारी के आधार पर हम अपने पुराने गुरुजनों के यहां गये। हमारे कार्यक्रम की जानकारी उन सभी गुरुजनों दी। सभी गुरुजनों ने इस स्पेशल कार्यक्रम की खूब तारीफ की और कार्यक्रम में उपस्थित रहने के लिए अपनी रजामंदी दी। उस दिन के सभी तय कार्यक्रम जैसा हमने सोचा था वैसे ही उस दिन पूरे हुये थे। इसलिए सब खुश थे। सभी मित्रों ने श्रीकांत को उलटे बाँस बरेली को जैसे कार्य के लिए शुक्रिया अदा किया था। एक मन से कहां कि ये सब श्रीकांत के पहल का नतीजा है। श्रीकांत खुशी के मारे कुछ नहीं कह रहा था। मंद-मंद हँसकर अपनी सहमती जता रहा था। उस मिटींग में ये फैसला किया गया कि कार्यक्रम की तिथि वाट्स पर तुरंत डाली जाए। ताकी इच्छुक मित्र अपने- अपने सुविधानुसार , आने-जाने का आरक्षण कर ले। उन सभी से कार्यक्रम के लिए सुझाव मांगे जाए। ताकी अगले मिटींग में पुरी तरह से कार्यक्रम को अंतिम रुपरेखा तय की जा सके। इसी के साथ हम सभी नागपुर के मित्रों ने बिदाई ली ।
