शताब्दी वर्ष में रौलेट एक्ट

शताब्दी वर्ष में रौलेट एक्ट

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"परमात्मा तुम लोगों की आत्मा को शांति दे... तुम्हारी हत्या करने वालों का हिसाब कैसे होगा? इस देश का न्याय तो अंधा-गूंगा-बहरा है।" कटकर गिरे तड़पते आरे के वृक्षों से बया पक्षियों के झुंडों का समवेत स्वर गूंज रहा था।


"जालियांवाला बाग के बदले से क्या बदल गया बहना! तुम लोगों के आश्रय छिनने का क्या बदला होगा?" हवस के शिकार हुए वृक्षों के अंतिम शब्द थे।


"तुम लोगों को इस देश का विकास पसंद नहीं, विकास के रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर किया ही जाता है। तुम पल भर में धरा से गगन नाप लेती हो... मनुष्यों के पास पँख नहीं तो वे जड़ हो जायें क्या? तुम्हारे आश्रय यहाँ नहीं तो और कहीं।"


भूमिगत रेल की आवाज चिंघाड़ पड़ी। दूर कहीं माइक गला फाड़ कर चिल्ला रहा था, "सच्चा जन करे यही पुकार

सादा जीवन उच्च विचार, पेड़ लगाओ एक हजार

प्यासी धरती करे पुकार, पेड़ लगाकर करो उद्धार।"


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