शीर्षक - तन्हा जिंदगी
शीर्षक - तन्हा जिंदगी
आज दिल टूटा था उसका ज़ार ज़ार कर के आंसू बह रहे थे आँखों से बहुत संभालने की कोशिश की नितेश ने अपने मन को पर एक सीमा पर जाकर शरीर भी अपना संयम खो देता है।
कितना सुंदर और खुशहाल परिवार था उसका खुशियां तो जैसे इंतजार करती थी एक के बाद एक आने का । दुख से दो दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था।
पता नहीं किस की नजर लग गई खुशहाल परिवार पर एक-एक करके मुसीबतें रस्ता पूछते हुए आने लगी।
सबसे पहले तो उसके पिता का साया सिर से उठ गया जो किसी बज्रपात से कम ना था और फिर अचानक उसकी वैवाहिक जिंदगी में बवंडर आ गया।
कितना मनायाया था नितेश ने मंजुला को !
देखो मंजुला मुझे छोड़कर मत जाओ।
मेरे परिवार को तुम्हारी जरूरत है।
पर मंजुला ने भी एक ना सुनी वह तो एक ही रट लगाई थी की तुम अपना परिवार छोड़कर मेरे साथ अलग रहो। कैसे छोड़ देता नितेश अपनी बिलखती मां छोटे भाई बहन ।
पर लड़के किसी के सामने रोते नहीं शायद इसी वजह से मंजुला नितेश के दुख का अंदाजा नहीं लगा पाई और पूरे परिवार को दुखों के साए में छोड़कर अपने माता पिता के घर वापस चली गई।
आज अकेले पुरानी यादें और पिता का गम नीतीश को तोड़ चुका था ।
उसे आज भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह कहां गलत है।
और वह तन्हा जिंदगी गुजारने पर मजबूर है।