सच्ची बात लेकिन थोड़ी कड़वी
सच्ची बात लेकिन थोड़ी कड़वी


आप अंधे हैं क्योंकि आप हर किसी के जरिए मूर्ख बन जाते है आप किसी भी विचार से उसको भगवान नहीं बना सकते क्योंकि शारीरिक रूप से वह इंसान है क्या आपने कोई चमत्कार देखा नहीं तो आप भगवान का दर्जा कैसे दे सकते हो मूर्ति वाले को भगवान कह सकते है लेकिन चलते फिरते इंसान को नहीं. आप अपनी तिजोरी खाली करके उनकी तिजोरी भरते है और आप वहीं से उल्लू बनते है क्योंकि आपके दिमाग में विचारों की छाप छोड़ दी होती है. जिससे आपके जरिए खुद का काम निकाल सके. असली वह जिसने चमत्कार दिखाया हो. विचार आपका दिमाग नहीं चलाते अर्थात् आप खुद चलाते हैं . मूर्ति वाले के चरण में कुछ डाला वह काम तो आ जाएगा लेकिन चलते फिरते इंसान के चरण में डालोगे वह सोच समझ कर काम आएगा. जो विचारों का पैसा ले वह विचार ही किस काम क्या? आपकी उल्लू बनने की प्रक्रिया बचपन से चालू हो जाती है. कभी भी विचारों की परिभाषा से ना चले चलना है तो खुद की परिभाषा से चले. अन्धविश्वास की चोट जब दिमाग में लगती है तो अच्छा खासा आदमी मूर्ख बन ही जाता है . क्योंकि मजबूरी में हर कोई हाथ सेखने की कोशिश करता है.