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Sumit Mandhana

Others

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Sumit Mandhana

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सच्चा पारखी

सच्चा पारखी

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आज की हमारी कहानी का विषय है हमारे खेल जैसे की कबड्डी, खो-खो, वॉलीबॉल, फुटबॉल इत्यादी। खेल कोई भी हो आपको तन मन से मजबूत बनाता है और जीवन में आगे बढ़ना सिखाता है। चलिए कहानी शुरू करते है ।   

विपुल का पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। हमेशा खेलकूद में ही ध्यान रहता था। घर वालों को इस बात से उस पर बहुत गुस्सा आता था। उसके पिताजी उसे हमेशा समझाते थे। खेलकूद तेरे जीवन में काम नहीं आएगा, पढ़ाई काम आएगी। उसी के बलबूते पर तू आगे बढ़ सकेगा, जीवन में कुछ कर सकेगा। वरना तुझ से कोई लड़की शादी नहीं करेगी! उसे यह बात बहुत चुभती थी कि क्या जीवन में शादी ही सब कुछ है। उसके अलावा जिंदगी की कोई अहमियत नहीं!  

लेकिन फिर भी उसकी खेल में रुचि कम नहीं हो रही थी। खेल तो उसे सभी पसंद थे, लेकिन उनमें फुटबॉल उसका पसंदीदा खेल था। वह धीरे-धीरे उसमें निपुण होता जा रहा था ।   

वह गोलकीपर बन चुका था। वह इतने अच्छे से गोल रोकता था कि सभी उसकी बहुत तारीफ करते थे। उसकी वजह से स्कूल का स्पोर्ट्स में बहुत नाम हो रहा था। आए दिन उनके स्पर्धाओं में स्कूल के फोटो न्यूज़ पेपर में प्रकाशित होते थे। जिसे देख कर उसे बहुत अच्छा लगता था।   

एक दिन वह बहुत खुश होकर अपने घर पर आता है । वह सबको बताता है कि उसका स्टेट लेवल कंपटीशन में स्कूल से सिलेक्शन हुआ है। यह सुनकर उसके पिताजी को बहुत आश्चर्य होता है । फिर विपुल की मां उसके पिताजी से कहती है "आपने हमेशा पढ़ाई को ही महत्व दिया है । यह बात गलत नहीं है, देना भी चाहिए । लेकिन अपने बच्चे की काबिलियत जिसमें है उसे भी हमें बढ़ावा देना चाहिए।   

हाथ की पांचों उंगलियां जब एक समान नहीं होती तो सभी बच्चे एक समान कैसे हो सकते हैं ! भगवान ने सभी को बनाया है और सभी में कोई न कोई खूबी और खामी भी होती है । यह माता पिता के ऊपर है बच्चों की परवरिश कैसे करें और उनके आत्मविश्वास को कैसे बढ़ाएं ।"   

विपुल के पिताजी कहते हैं "तुमने एकदम सही बात कही है । मालती मैं तो यह बात भूल ही गया था। सच में हमारा बेटा हीरा है और हीरे की परख ज़ौहरी को ही होती है ! तुम ही वह ज़ौहरी हो जिसने हमारे बेटे को परखा है! जाओ बेटा जाओ और जीत कर आना । मुझे तुम पर बहुत नाज़ है। आज तुमने तुम्हारे बाप का सीना शान से चौड़ा कर दिया। जो तुम्हें पसंद है वह करो और उसी में आगे बढ़ो। हम सब तुम्हारे साथ हैं।"   

यह सुनकर विपुल दौड़कर पापा के गले लग जाता है और फूट-फूट कर रोने लगता है और कहता है । पापा मुझे माफ कर दीजिए मैंने आपको गलत समझा था। लेकिन अब मुझे पता चल गया कि मां बाप हमेशा बच्चों की भलाई चाहते हैं। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि पढ़ाई में भी दिल लगा सकूँ। अब मैं आपको कभी निराश नहीं करूंगा।" 


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